कांग्रेस में अंसतुष्ट नेताओं के G23 गुट पर चुटकियां लेने वाली बीजेपी राजस्थान बीजेपी में मचे घमासान पर बगलें झांक रही है। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने दो दिन की देवदर्शन यात्रा निकालकर बीजेपी आलाकमान को अपनी सियासी ताक़त दिखाने की कोशिश की है।
राजे ने 7 मार्च से देवदर्शन यात्रा शुरू की और कई मंदिरों में जाने के बाद यह 8 मार्च को समाप्त हुई। बीजेपी की मुसीबत इस बात से बढ़ी हुई है कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी, 8 सांसदों, 20 विधायकों कई पूर्व विधायकों ने इस यात्रा में हिस्सा लिया। 8 मार्च को वसुंधरा का जन्मदिन भी है।
राजनीतिक विश्लेषकों का साफ कहना है कि वसुंधरा की यह यात्रा सियासी है और जबकि पूर्व मुख्यमंत्री का कहना है कि यह राजनीतिक यात्रा नहीं है बल्कि यह उनकी धार्मिक आस्था को दिखाती है। उन्होंने यात्रा में जुटे अपने समर्थकों को धन्यवाद दिया। राजे ने यह यात्रा 7 मार्च को भरतपुर के बद्री नाथ मंदिर से शुरू की थी।
सीएम का उम्मीदवार बनाने की मांग
वसुंधरा राजे के समर्थकों ने बीते कुछ महीनों से पार्टी आलाकमान का सिरदर्द बढ़ाया हुआ है। वे चाहते हैं कि राजे को 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया जाए। राजे के समर्थकों ने वसुंधरा राजे समर्थक मंच राजस्थान का गठन किया है लेकिन इससे राजस्थान बीजेपी के अन्य नेता असहज हैं और बीजेपी आलाकमान से इस मामले में शिकायत कर चुके हैं।
वसुंधरा राजे राजस्थान बीजेपी में बड़ा क़द रखती हैं। एक ओर वसुंधरा हैं तो दूसरी ओर प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़। इसके बाद भी राजे समर्थकों का राज्य की राजनीति में बोलबाला दिखाई देता है।
राजे के नेतृत्व में बीजेपी को 2018 के विधानसभा चुनाव में हार मिली थी। उसके बाद से ही उन्हें किनारे लगाने की लगातार कोशिश की गई। नेता विपक्ष की कुर्सी से दूर रखा और केंद्र की राजनीति में लाते हुए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बनाया गया लेकिन राजे राजस्थान छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुईं।
मोदी-शाह को झुकाया था!
मोदी-शाह की ताक़तवर जोड़ी भी राजे के सामने तब घुटने टेकती दिखाई दी थी, जब अमित शाह ने राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की कोशिश की थी। तब राजे ने अपने समर्थकों के साथ दिल्ली में डेरा डाल दिया था और अंत में मोदी-शाह को पीछे हटना पड़ा था। इसके बाद जब सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तब भी राजे उनके स्वागत कार्यक्रमों से दूर रही थीं।
वसुंधरा राजे को किनारे लगाने की कोशिश के तहत ही नेता विपक्ष के पद पर गुलाब चंद कटारिया को बिठाया गया था और राजे के विरोधी माने जाने वाले राजेंद्र राठौड़ को उप नेता बनाया गया था।
ऐसा लगता है कि बीजेपी आलाकमान वसुंधरा के ख़िलाफ़ कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है क्योंकि राजस्थान में अधिकांश विधायक और सांसद वसुंधरा के खेमे के हैं। राज्य में बीजेपी के 72 में से 47 विधायक वसुंधरा खेमे के बताये जाते हैं।
राजस्थान बीजेपी में मचे इस घमासान को थामने के लिए ही राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा कुछ दिन पहले जयपुर आए थे और लेकिन इसके बाद भी यह घमासान थमता नहीं दिख रहा है।
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