ऐसा नहीं है कि राज्यों के क्षत्रपों से केवल कांग्रेस ही जूझ रही है, बीजेपी में भी कुछ ऐसे सियासी लड़ाके हैं जो मोदी-शाह के राज में भी पार्टी के अंदर आवाज़ उठाने की हिम्मत रखते हैं। ऐसे नेताओं में सबसे बड़ा नाम है-वसुंधरा राजे का।
वसुंधरा राजे को लेकर एक बार फिर राजस्थान बीजेपी में बवाल हो रहा है। कारण है कि वसुंधरा समर्थक राज्य में कई जगहों पर ‘वसुंधरा जन रसोई’ चला रहे हैं। इसके तहत लोगों को फ़ूड पैकेट बांटे जा रहे हैं। लेकिन इससे बीजेपी के बाक़ी नेताओं में नाराज़गी है क्योंकि राष्ट्रीय नेतृत्व के निर्देश पर कई राज्य इकाईयों की तरह ही राजस्थान बीजेपी भी ‘सेवा ही संगठन’ अभियान चला रही है।
‘वसुंधरा जन रसोई’ के तहत जो फ़ूड पैकेट बांटे जा रहे हैं, उनमें और इस जन रसोई कार्यक्रम में सिर्फ़ वसुंधरा राजे की ही तसवीर को दिखाया जा रहा है।
यह रसोई 21 मई को शुरू हुई थी और राजे के क़रीबी और पूर्व कैबिनेट मंत्री यूनुस ख़ान ने उस दिन 300 लोगों को फ़ूड पैकेट बांटे थे। उसके बाद राज्य के कई हिस्सों में ऐसे कार्यक्रम किए जा रहे हैं। वसुंधरा समर्थकों का कहना है कि ऐसा वे समाज सेवा के तौर पर कर रहे हैं।
राज्य बीजेपी के कार्यकर्ता पूछते हैं कि राजे के समर्थकों की ओर से इस तरह के अलग कार्यक्रम क्यों किए जा रहे हैं। वे पूछते हैं कि एक ही पार्टी में दो अलग-अलग बैनरों के तले कार्यक्रम क्यों हो रहे हैं।
हैवीवेट नेता हैं वसुंधरा
वसुंधरा राजस्थान बीजेपी में हैवीवेट नेता हैं। वसुंधरा का खेमा इतना मजबूत है कि उनके ख़िलाफ़ राज्य बीजेपी के दूसरे नेता खड़े नहीं हो पाते।
राज्य में वसुंधरा के अलावा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ का भी गुट है। लेकिन इसके बाद भी राज्य की राजनीति में वसुंधरा राजे के समर्थक हावी दिखाई देते हैं।
‘वसुंधरा राजे समर्थक मंच राजस्थान’
वसुंधरा राजे के समर्थकों ने पार्टी आलाकमान के लिए ख़ासी मुश्किल खड़ी कर दी है। वे चाहते हैं कि राजे को 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया जाए। इन समर्थकों ने ‘वसुंधरा राजे समर्थक मंच राजस्थान’ का गठन किया हुआ है। राजस्थान बीजेपी के नेता इसे लेकर भी आलाकमान से शिकायत कर चुके हैं।
देव दर्शन यात्रा
वसुंधरा राजे ने इस साल मार्च के महीने में दो दिन की देवदर्शन यात्रा निकालकर बीजेपी आलाकमान को अपनी सियासी ताक़त दिखाई थी। इस यात्रा में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी, 8 सांसदों, 20 विधायकों कई पूर्व विधायकों ने हिस्सा लिया था।
पूर्व मुख्यमंत्री राजे के समर्थकों की ओर से ‘वसुंधरा जन रसोई’ या ‘वसुंधरा राजे समर्थक मंच राजस्थान’ जैसे क़दम इस बात को साबित करते हैं कि वे उनकी नेता के अलावा किसी को भी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे।
इसका यह भी मतलब है कि राजे ने अपने समर्थकों से चुनाव आने तक इस तरह के कार्यक्रमों को करते रहने के लिए कहा है।
मोदी-शाह पस्त
2018 के विधानसभा चुनाव में टिकट बांटने का मसला हो या फिर गजेंद्र सिंह शेखावत को अध्यक्ष न बनने देने का। वसुंधरा राजे ने दोनों मौक़ों पर अपनी बात मनवाई थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद बीजेपी आलाकमान ने राजे को नेता विपक्ष नहीं बनाया और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर राजस्थान से दूर करने की कोशिश की लेकिन अब राजे और उनके समर्थकों ने साफ कर दिया है कि अगर उनकी बात नहीं मानी गई तो 2023 में बीजेपी की सत्ता में वापसी बहुत मुश्किल कर देंगे।
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