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फ़ोटो क्रेडिट - @BJP4Rajasthan

राजस्थान: अविश्वास प्रस्ताव लाकर सियासी लाज बचाने की कोशिश कर रही बीजेपी?

लगता है कि बीजेपी यह संदेश कतई नहीं देना चाहती कि राजस्थान के सियासी रण में उसे मुंह की खानी पड़ी है। रेगिस्तानों के राज्य राजस्थान में अपनी सरकार बनाने की उसकी सियासी ख़्वाहिश उस वक़्त अधूरी रह गई थी, जब कांग्रेस के बाग़ी नेता सचिन पायलट अपने समर्थकों के साथ वापस पार्टी में लौट आए थे। 

बीजेपी की ओर से कहा गया है कि वह शुक्रवार से शुरू हो रहे विधानसभा के सत्र में अविश्वास प्रस्ताव लाएगी। अगर पायलट कांग्रेस में वापस नहीं लौटे होते, तब बीजेपी के इस क़दम का मतलब समझा जा सकता था क्योंकि तब गहलोत के पास 102 विधायक थे और बहुमत साबित करने के लिए विधायकों को एकजुट रखने में उनकी सांसें उखड़ रही थीं। 

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बहुमत से ज़्यादा हैं विधायक

लेकिन अब तो कांग्रेस के पास आसानी से बहुमत है और दूसरी ओर गुरूवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने बीएसपी विधायकों के कांग्रेस में विलय को रद्द करने वाली याचिका के मामले में दखल देने से इनकार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि हाई कोर्ट इस मामले में पहले से ही सुनवाई कर रही है। इसका यही मतलब है कि बीएसपी से कांग्रेस में शामिल हुए सभी 6 विधायक 14 अगस्त को अविश्वास प्रस्ताव के दौरान गहलोत सरकार के पक्ष में मतदान कर सकेंगे। ऐसे में तो गहलोत सरकार को कोई भी दिक्कत नहीं है और उसके पास 123 विधायकों का समर्थन है जबकि बहुमत का जादुई आंकड़ा 101 है। 

बीजेपी की गुटबाज़ी 

सवाल यही है कि फिर बीजेपी अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाई। इसका एक ही कारण समझ आता है, वह यह कि राजस्थान में चले घमासान के दौरान खुलकर सामने आई आई बीजेपी की अंदरूनी गुटबाज़ी को थामना और ख़ुद के विधायकों की बग़ावत का डर। इसीलिए, कुछ दिन पहले बीजेपी ने अपने लगभग 20 विधायकों को राजस्थान से बाहर भेज दिया था, यानी पार्टी को डर था कि ये विधायक गड़बड़ कर सकते हैं। 

गहलोत सरकार को गिराने की कोशिशों में राजस्थान बीजेपी को अपनी ही दिग्गज नेता वसुंधरा राजे का साथ नहीं मिल सका था। यह बात पार्टी हाई कमान तक पहुंची थी और इसके बाद वसुंधरा राजे दिल्ली भी गई थीं।

बीजेपी अविश्वास प्रस्ताव लाकर सिर्फ़ यही दिखाना चाहती है कि उसके विधायक पूरी तरह एकजुट हैं क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव के लिए वह व्हिप जारी करेगी और इससे बग़ावत करना विधायकों के बस में नहीं होगा क्योंकि ऐसा करने पर उनकी सदस्यता जाने का ख़तरा रहेगा। वरना कोई ऐसा कारण समझ नहीं आता कि वह अविश्वास प्रस्ताव लाए। 

अविश्वास प्रस्ताव लाने का फ़ैसला राजस्थान बीजेपी के शीर्ष नेताओं की बैठक में लिया गया। बैठक के बाद नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की जानकारी दी। 

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बीजेपी के पास 72 विधायक हैं और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के तीन विधायकों का भी उसे समर्थन हासिल है। इसके अलावा एक से दो निर्दलीय विधायक भी उसके साथ हैं। यह संख्या 77 तक बैठती है, ऐसे में उसे पता है कि यह अविश्वास प्रस्ताव गिर जाना है क्योंकि 24 विधायक क्रास वोटिंग नहीं करेंगे, इतना तय है।   
कांग्रेस ने भी अपनी तैयारियों को पुख्ता करते हुए कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई। एक महीने तक चले रण के बाद यह पहला मौक़ा है जब पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आमने-सामने मिले हैं।

एक हो पाएंगे गहलोत-पायलट?

पायलट और उनके समर्थक विधायकों की वापसी के बाद गहलोत खेमे की ओर से नाख़ुशी जताई गई है और जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल गहलोत ने पायलट के लिए किया, उससे लगता नहीं कि यह दरार जल्दी भर पाएगी। वैसे भी, यह कांग्रेस आलाकमान के लिए फ़ौरी राहत है क्योंकि पायलट का सियासी लक्ष्य मुख्यमंत्री की कुर्सी है और गहलोत जानते हैं कि पायलट के आने के बाद उनके बेटे वैभव और समर्थकों का राजनीतिक भविष्य अधंकारमय हो जाएगा। इसलिए ये घमासान जारी रहेगा और हिचकोले खाती ये सरकार क्या अपना कार्यकाल पूरा कर पाएगी, यह सबसे बड़ा सवाल है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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