कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान पहुंचने से पहले पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का खेमा सक्रिय हो गया है। गहलोत सरकार के मंत्री और एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग की है। भारत जोड़ो यात्रा दिसंबर के पहले हफ्ते में राजस्थान पहुंचेगी।
राजस्थान में मुख्यमंत्री को बदले जाने का मामला बेहद गंभीर रहा है। राज्य में अगले साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं और सचिन पायलट के समर्थकों की मांग उनके नेता को मुख्यमंत्री बनाने की है।
पत्रकारों से बातचीत में राजस्थान के वन मंत्री हेमाराम चौधरी और राज्य कृषि उद्योग बोर्ड की उपाध्यक्ष सुचित्रा आर्य ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की मांग की है। हेमाराम चौधरी उन विधायकों में शामिल हैं जिन्होंने साल 2020 में सचिन पायलट के द्वारा की गई बगावत में पायलट का साथ दिया था।
हेमाराम चौधरी ने बाड़मेर में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि राजस्थान में नए चेहरे को मौका देने का वक्त आ गया है, पार्टी नेतृत्व को बिना ज्यादा इंतजार किए इस बारे में फैसला करना चाहिए, इससे पार्टी को फायदा होगा। चौधरी ने कहा कि सचिन पायलट का साल 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनाने में अहम योगदान रहा है।
उन्होंने कहा कि कठिन मेहनत के बाद भी पायलट के पास कोई पद नहीं है, उन्हें जिम्मेदारी दी जानी चाहिए और इस बारे में पार्टी को जल्द से जल्द फैसला करना चाहिए।
जबकि सुचित्रा आर्य ने जयपुर में कहा कि पायलट को मुख्यमंत्री बनाए जाना चाहिए। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा, “अगर स्थितियां नहीं बदलती हैं तो पार्टी टूट जाएगी। सचिन पायलट एक अहम चेहरे हैं और लाखों लोग उन्हें सुनने के लिए आते हैं। हर बात की एक सीमा होती है और अब उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि तभी कांग्रेस राजस्थान की सत्ता में लौट सकती है।
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एसयूवी गाड़ी वाला तंज
इस महीने की शुरुआत में गहलोत सरकार के मंत्री राजेंद्र गुढ़ा ने कहा था कि अगले चुनाव में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 10 से भी कम रह जाएगी। उन्होंने कहा था कि अगर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है तो कांग्रेस के इतने ही विधायक जीतेंगे जितने एक एसयूवी गाड़ी में आ सकें। गुढ़ा ने कहा था कि पायलट को पहले ही मुख्यमंत्री बना दिया जाना चाहिए था और अगर अभी भी उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो कांग्रेस राजस्थान की सत्ता में लौट सकती है।
कांग्रेस विधायक दिव्या मदेरणा ने भी राजेंद्र गुढ़ा के बयान का समर्थन किया था।
जबकि राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने पार्टी नेताओं को चेताया था कि वह किसी भी तरह की गैर जिम्मेदाराना बयानबाजी ना करें। गोविंद सिंह डोटासरा को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का करीबी माना जाता है।
गहलोत खेमे का पलटवार
पायलट खेमे की ओर से आ रहे लगातार बयानों के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमे के मंत्रियों ने भी जवाबी बयानबाजी की थी। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा ने कहा था कि ऐसा लगता है कि जो लोग मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं, वह कांग्रेस में आगे बने नहीं रहना चाहते।
पायलट ने भी की थी मांग
खुद सचिन पायलट ने भी सितंबर में कहा था कि कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को अब राजस्थान को लेकर कोई फैसला करना चाहिए। पायलट ने कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष को उन विधायकों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए जिन्होंने सितंबर में पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बगावत की थी।
बताना होगा कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन जब सितंबर के महीने में बतौर पर्यवेक्षक राजस्थान पहुंचे थे तो गहलोत समर्थक विधायक जयपुर में बुलाई गई कांग्रेस विधायक दल की बैठक में नहीं पहुंचे थे।
इन विधायकों ने बैठक में पहुंचने के बजाय कैबिनेट मंत्री शांति धारीवाल के आवास पर बैठक की थी और फिर स्पीकर सीपी जोशी को अपने इस्तीफ़े सौंप दिए थे। ऐसे विधायकों की संख्या 100 के आसपास बताई गई थी। इसके बाद कांग्रेस हाईकमान ने सख्त एक्शन लेते हुए गहलोत के समर्थकों- शांति धारीवाल, महेश जोशी और विधायक धर्मेंद्र राठौड़ को कारण बताओ नोटिस जारी किया था।
अगस्त-सितंबर में जब यह चर्चा शुरू हुई थी कि अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ेंगे तभी से राजस्थान में सियासी पारा चढ़ने लगा था। सीधा सवाल यही था कि आखिर अशोक गहलोत की जगह मुख्यमंत्री कौन होगा। क्या अशोक गहलोत और उनके समर्थक विधायक सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने देंगे। लेकिन विधायकों की बगावत के बाद अशोक गहलोत ने राजस्थान के घटनाक्रम के लिए पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी से माफी मांगी और कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था।
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इसके बाद एक बार फिर सचिन पायलट का इंतजार लंबा हो गया लेकिन यह जरूर कहा गया कि अध्यक्ष का चुनाव पूरा होने के बाद कांग्रेस हाईकमान राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर कोई फैसला कर सकता है। इसलिए पायलट समर्थकों का सब्र अब जवाब देता दिख रहा है।
अजय माकन का इस्तीफ़ा
राजस्थान में कांग्रेस नेतृत्व की मुश्किलें अजय माकन के राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी का पद छोड़ देने के बाद भी बढ़ी हुई हैं। अजय माकन ने 8 नवंबर को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखा था। पत्र में कहा गया था कि वह अब कांग्रेस प्रदेश प्रभारी के पद पर नहीं रहना चाहते क्योंकि शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ के खिलाफ अनुशासनात्मक कमेटी के द्वारा कारण बताओ नोटिस दिए जाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है। पत्र में कहा गया था कि इन तीनों नेताओं को राजस्थान में भारत छोड़ो यात्रा की जिम्मेदारी दी गई है।
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200 सदस्यों वाली राजस्थान की विधानसभा में कांग्रेस के पास 108 विधायक हैं और उसके पास 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन है। बीजेपी के पास 70 विधायक हैं।
गहलोत के साथ हैं अधिकतर विधायक
कहा जाता है कि पार्टी नेतृत्व ने सचिन पायलट को भरोसा दिया था कि उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाया जाएगा लेकिन कांग्रेस नेतृत्व के लिए ऐसा कर पाना बेहद मुश्किल है क्योंकि राजस्थान में कांग्रेस के 108 विधायकों में से लगभग 90 विधायक अशोक गहलोत के साथ हैं।
अगर गहलोत और पायलट खेमों में फिर से आपसी बयानबाजी शुरू हो गई तो इससे एक बार फिर कांग्रेस की वैसी ही फजीहत हो सकती है जैसी साल 2020 में हुई थी।
कांग्रेस को मजबूत और एकजुट करने के लिए पार्टी भारत जोड़ो यात्रा निकाल रही है लेकिन यात्रा के शुरू होने के कुछ दिन बाद ही गोवा में कांग्रेस के 8 विधायक पार्टी का साथ छोड़ कर चले गए और अब राजस्थान में गहलोत-पायलट का विवाद फिर से भड़कने की आशंका है।
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