राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इन दिनों दिल्ली में हैं और पहले उन्होंने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और फिर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाक़ात कर राजस्थान का सियासी तापमान बढ़ा दिया है। राजे के तेवरों के बाद दिल्ली से लेकर राजस्थान तक सवाल यह पूछा जा रहा है कि नाराज़ महारानी क्या कोई बड़ा क़दम उठाने जा रही हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की निगाहें महारानी के अगले क़दम पर टिकी हैं।
इस बार राजे की नाराजगी की वजह है राजस्थान बीजेपी की ओर से जारी की गई प्रदेश पदाधिकारियों की ताज़ा सूची। बताया गया है कि इस सूची में वसुधरा के क़रीबियों को बहुत कम जगह मिली है और विरोधियों को बड़े पदों पर नियुक्त किया गया है।
दिया को प्रदेश महामंत्री बनाना
जयपुर के राजघराने की पूर्व राजकुमारी दिया कुमारी और विधायक मदन दिलावर को प्रदेश महामंत्री बनाए जाने से राजे ख़ुश नहीं हैं। राजस्थान की राजनीति में यह कहा जा रहा है कि बीजेपी हाईकमान दिया कुमारी को राजे का विकल्प बनाना चाहता है और इस बात को राजे बख़ूबी जानती हैं। यहां दिलचस्प तथ्य यह है कि राजे ने ही दिया कुमारी को बीजेपी की सदस्यता दिलाई थी। दिया पिछले चुनाव में राजसंमद से सांसद चुनी गई थीं।
राजे ने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को राजस्थान बीजेपी का अध्यक्ष बनाने के मुद्दे पर मोदी और अमित शाह तक की नहीं चलने दी थी। मोदी और शाह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते थे लेकिन वसुंधरा इसके विरोध में थीं और अंत में शेखावत प्रदेश अध्यक्ष नहीं बन सके थे।
इससे पहले 2018 के विधानसभा चुनाव के मौके़ पर टिकटों के वितरण में भी वसुंधरा राजे की चली थी और उन्होंने हाईकमान यानी मोदी-शाह को झुकने को मजबूर कर दिया था।
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद पार्टी हाईकमान ने उन्हें राजस्थान से हटाकर केंद्र की राजनीति में लाने की कोशिश करते हुए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था। लेकिन वसुंधरा राजस्थान का खूंटा छोड़ना नहीं चाहतीं।
तब नेता विपक्ष के पद पर वसुंधरा की दावेदारी को नकारते हुए पार्टी हाईकमान ने गुलाब चंद कटारिया को इस पद पर बिठाया था और राजे के विरोधी माने जाने वाले राजेंद्र राठौड़ को उप नेता बनाया था।
राजस्थान बीजेपी में गुटबाज़ी
राजस्थान की राजनीति में कहा जाता है कि शेखावत, प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ का एक गुट है और दूसरा गुट वसुंधरा राजे का है। गहलोत सरकार को गिराने की पुरजोर कोशिशों में जुटे पहले गुट को इसमें सफलता नहीं मिल पा रही है।
बताया जाता है कि पूनिया और शेखावत ने यह बात बीजेपी हाईकमान तक पहुंचाई है कि राजे गहलोत की सरकार को नहीं गिरने देना चाहतीं। लेकिन दिक्कत बीजेपी हाईकमान के लिए भी बहुत है क्योंकि राजस्थान में अधिकांश विधायक और सांसद वसुंधरा के खेमे के हैं। राजस्थान में बीजेपी के 72 में से 47 विधायक वसुंधरा खेमे के बताये जाते हैं। ऐसे में हाईकमान राजे को साथ लिए बिना कोई रिस्क नहीं ले सकता।
पिछले साल जब सतीश पूनिया को राजस्थान बीजेपी का नया अध्यक्ष बनाया गया था तो वसुंधरा राजे उनके स्वागत कार्यक्रमों से दूर रही थीं। पूनिया को राष्ट्रीय स्वयं सेवक की पसंद और राजे का धुर विरोधी माना जाता है।
वसुंधरा राजे की सक्रियता से कांग्रेस बहुत ख़ुश है क्योंकि उसे पता है कि जब तक राजस्थान बीजेपी के इन दो गुटों में भिड़ंत होती रहेगी, उसे इसका फायदा मिलता रहेगा।
राजे की चुप्पी पर बवाल
कांग्रेस में पायलट व गहलोत खेमे में चल रहे घमासान के शुरुआती दिनों में राजे की चुप्पी को लेकर राजस्थान बीजेपी में बवाल हुआ था। बीजेपी मुख्यालय में हुई बैठकों से भी राजे दूर रही थीं।
बहुत दिन बाद महारानी ने चुप्पी तोड़ी थी। हाल ही में पत्रकारों से बातचीत में गहलोत ख़ुद इशारों-इशारों मे वसुंधरा राजे को कद्दावर नेता बता चुके हैं।
ये चर्चाएं चलती रही हैं कि राजस्थान में अशोक गहलोत को अपनी सरकार को बचाने में वसुंधरा राजे का पिछले दरवाजे से सहयोग मिलता रहा है और गहलोत और राजे एक-दूसरे की मदद करते रहते हैं।
किनारे कर पाएगा हाईकमान?
पिछले दो दशक से राजस्थान बीजेपी की राजनीति में वसुंधरा राजे ने अपना खूंटा मजबूती से गाड़ रखा है। इन सालों में या तो राजे मुख्यमंत्री रहीं या फिर नेता विपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर भी वही व्यक्ति बैठा जिसे उनका समर्थन हासिल रहा हो। लेकिन इस बार लगता है कि मोदी-शाह की जोड़ी ने पूनिया, शेखावत और राठौड़ को आगे लाकर राजे को पूरी तरह हटाने की कोशिश की है। लेकिन क्या आलाकमान ऐसा कर पाएगा?
राजे के बारे में कहा जाता है कि बीजेपी में वह अकेली ऐसी नेता हैं, जो मोदी और शाह के सामने मुंह खोल सकती हैं।
देखना होगा कि इस बार महारानी कितना दम-खम दिखा पाती हैं और क्या वह अपने करीबियों को राजस्थान बीजेपी में जगह दिला पाती हैं या नहीं।
राजस्थान में 14 अगस्त से विधानसभा का सत्र शुरू होना है और बीजेपी की पूरी नजर कांग्रेस के बागी नेता सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों के रुख पर लगी हुई है। ऐसे में बीजेपी हाईकमान राजे को नकार नहीं सकता और यही वसुंधरा की ताक़त को दिखाता है।
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