राजस्थान सरकार में उप मुख्यमंत्री और प्रदेश में कांग्रेस संगठन के सेनापति सचिन पायलट की बग़ावत के बाद राजस्थान चर्चा के केंद्र में है। पुराने और धाकड़ नेता अशोक गहलोत सरकार को बचाने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं जबकि सचिन पायलट का कहना है कि गहलोत सरकार अल्पमत में है।
कांग्रेस के घर में चल रहे झगड़े के बीच मुख्य विपक्षी दल बीजेपी पायलट की ओर से कोई सियासी पहल होने का इंतजार कर रही है। लेकिन यहां यह समझना ज़रूरी होगा कि क्या वास्तव में पायलट की बग़ावत से गहलोत सरकार गिर जाएगी या गहलोत इस सियासी तूफ़ान का बहादुरी से मुक़ाबला कर इस समर में जीत जाएंगे।
राजस्थान में विधानसभा की 200 सीटें हैं। कांग्रेस के पास 107 विधायक हैं। इन 107 में से 6 विधायक बीएसपी के भी हैं, ये सभी विधायक पाला बदल कर पिछले साल कांग्रेस में शामिल हुए थे। कांग्रेस के पास 11 निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन है। इसके अलावा भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के दो और राष्ट्रीय लोकदल के एक विधायक का समर्थन कांग्रेस के पास है। निर्दलीय और छोटी पार्टियों के कुल 16 विधायकों के समर्थन के कारण 123 विधायकों का समर्थन कांग्रेस को हासिल है।
इस बीच, कांग्रेस ने एक बार फिर कहा है कि उसके पास 109 विधायकों का समर्थन है जबकि पायलट का दावा है कि गहलोत सरकार अल्पमत में है और 30 विधायक उनके साथ हैं।
ऐसे में अगर कांग्रेस के 107 में से 30 विधायक इस्तीफा दे देते हैं तो कांग्रेस के पास 77 विधायक रहेंगे। निर्दलीय और छोटी पार्टियों के विधायकों को मिलाकर यह संख्या 93 बैठती है।
लेकिन 30 विधायकों के इस्तीफ़े की सूरत में राजस्थान की विधानसभा में विधायकों की संख्या 170 ही रह जाएगी। ऐसे में इस आंकड़े के हिसाब से बहुमत के लिए 86 विधायकों की ज़रूरत होगी, जो कि कांग्रेस हासिल कर लेगी।
निर्दलीयों पर दारोमदार
दूसरी ओर, बीजेपी के पास 72 विधायक हैं और उसे राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के तीन और दो निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल है। यह संख्या 77 बैठती है। ऐसे में सारा दारोमदार निर्दलीय विधायकों पर है। अगर बीजेपी गहलोत सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय 11 विधायकों में सें 8 को अपने पाले में खींच लेती है तो गहलोत सरकार के पास 93 से घटकर 85 विधायक रह जाएंगे और ऐसे में सरकार को बचाना मुश्किल हो सकता है क्योंकि बहुमत के लिए 86 विधायकों की ज़रूरत है।
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