राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में उतरने और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा एक व्यक्ति एक पद का समर्थन करने के बाद राजनीतिक गलियारों में सबसे बड़ी चर्चा यही है कि राजस्थान का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा।
बताना होगा कि अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष बनने की चर्चाओं के बाद से ही राजस्थान में सचिन पायलट का खेमा जबरदस्त सक्रिय है और उसे उम्मीद है कि आखिरकार सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का मौका मिलेगा।
राजस्थान की सियासत में अशोक गहलोत और सचिन पायलट की सियासी रार किसी से छिपी नहीं है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद जब कांग्रेस की सरकार बनी थी तब अशोक गहलोत और सचिन पायलट, दोनों ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। लेकिन तब कांग्रेस हाईकमान ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया था जबकि सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री बनाया था। प्रदेश अध्यक्ष जैसा अहम पद भी पायलट के पास बरकरार रहा था।
लेकिन साल 2020 में बगावत के बाद सचिन पायलट के हाथों से यह दोनों पद चले गए थे।
बीते कुछ महीनों में एक बार फिर सचिन पायलट और उनके समर्थकों ने राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन की मांग को बुलंद किया। इसमें तेजी तब आई जब पिछले महीने यह खबर सामने आई कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अशोक गहलोत से कहा है कि वह कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालें।
अब जब गहलोत का अध्यक्ष का चुनाव लड़ने और गांधी परिवार के अप्रत्यक्ष समर्थन के चलते जीतना लगभग तय है तो सवाल यही सबसे बड़ा है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुर्सी किसे मिलेगी।
पायलट के पक्ष में है नेतृत्व?
ताजा हालात में इस कुर्सी के सबसे बड़े दावेदार सचिन पायलट ही हैं लेकिन क्या पायलट की राह इतनी आसान है? क्या अशोक गहलोत सचिन पायलट को इतनी आसानी से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने देंगे। राजस्थान से आ रही खबरों के मुताबिक, अशोक गहलोत ने कांग्रेस हाईकमान के सामने विधानसभा के स्पीकर डॉक्टर सीपी जोशी और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का नाम रखा है। लेकिन कहा जा रहा है कि गांधी परिवार और कांग्रेस नेतृत्व सचिन पायलट को राज्य का मुख्यमंत्री बनाना चाहता है।
क्योंकि अशोक गहलोत जीवन भर राजस्थान में ही राजनीति करते रहे हैं इसलिए राज्य के अंदर उनके समर्थकों की एक बड़ी संख्या है।
सचिन पायलट के सामने सबसे बड़ी मुश्किल अशोक गहलोत का उनके नाम पर रजामंद होना ही है। अगर कांग्रेस हाईकमान किसी तरह अशोक गहलोत को पायलट के नाम पर मनाने में सफल हो भी गया तो यह माना जा रहा है कि गहलोत तमाम तरह की शर्तें रख सकते हैं। राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को अशोक गहलोत का करीबी माना जाता है। गहलोत के बेटे वैभव गहलोत भी राजस्थान की राजनीति में सक्रिय हैं और साल 2019 में लोकसभा चुनाव लड़े थे हालांकि तब उन्हें हार मिली थी।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा है कि राजस्थान के मामले में फैसला कांग्रेस अध्यक्ष ही लेंगी लेकिन गहलोत चाहेंगे कि राज्य का नेतृत्व उनके करीबी के हाथ में हो।
लोकप्रिय हैं पायलट
हालांकि सचिन पायलट के पास वर्तमान में कोई बड़ा पद नहीं है लेकिन बावजूद इसके कुछ दिन पहले हुए उनके जन्मदिन पर बड़ी संख्या में समर्थक उमड़े थे। इसके अलावा राजस्थान में जहां कहीं भी सचिन पायलट जाते हैं तो कार्यकर्ताओं और आम लोगों का हुजूम उनके साथ दिखाई देता है। इससे पता चलता है कि वह राजस्थान की राजनीति में खासे लोकप्रिय हैं और यह बात उनके लिए सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट है।
लेकिन उनके लिए मुश्किल यह है कि क्या गहलोत और उनका खेमा उन्हें स्वीकार करेगा।
कांग्रेस को बहुत सोच-समझकर मुख्यमंत्री का चयन करना होगा क्योंकि अगर सचिन पायलट मुख्यमंत्री बने तो गहलोत खेमा उनका विरोध कर सकता है और राज्य की सियासत में एक बार फिर साल 2020 जैसा भूचाल आ सकता है। लेकिन अगर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो उनके समर्थक राज्य में कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ सड़कों पर उतर सकते हैं। कुछ दिन पहले ही राज्य सरकार के मंत्री अशोक चांदना को सचिन पायलट के समर्थकों के जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा था। चांदना गहलोत खेमे के हैं।
सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनने के लिए गहलोत के समर्थक विधायकों का विश्वास जीतना ही होगा लेकिन क्या वे पायलट के नाम पर तैयार होंगे। अशोक गहलोत का खेमा सचिन पायलट के द्वारा की गई बगावत का सवाल भी लगातार उठाता रहा है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा जाट समुदाय से आते हैं और राजस्थान में जाट आबादी लगभग 10 से 12 फीसद है। जबकि गुर्जर छह से आठ फीसद। इसलिए कांग्रेस हाईकमान को तमाम पक्षों को ध्यान में रखना होगा।
राजस्थान उन सिर्फ 2 राज्यों में से एक है जिनमें कांग्रेस की अपने दम पर सरकार है। ऐसे में कांग्रेस हाईकमान को मुख्यमंत्री का फैसला बहुत सोच समझ कर ही करना होगा क्योंकि राज्य में विधानसभा चुनाव में 1 साल का वक्त बचा है। हालांकि कांग्रेस हाईकमान के लिए इस मसले को सुलझाना थोड़ा पेचीदा जरूर है लेकिन अगर पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के साथ ही गहलोत समर्थकों को सरकार और कांग्रेस संगठन में अच्छे पद दिए जाते हैं तो कांग्रेस इस संकट को हल कर सकती है।
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