राजस्थान में बीजेपी की ओर से जारी 131 उम्मीदवारों की पहली सूची में सीएम वसुंधरा राजे की चली है। टिकट बँटवारे को लेकर लम्बे समय तक बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व और सीएम वसुन्धरा राजे के बीच विवाद की ख़बरें आती रहीं। केन्द्रीय नेतृत्व चाहता था कि 85 विधायकों के टिकट काटकर नये चेहरे उतारे जाएँ। लेकिन सीएम चाहती थीं कि जिन विधायकों को 2013 के विधानसभा चुनाव में जीत मिली थी, उनका टिकट न काटा जाए।
सर्वे नहीं, राजे की चली
राजस्थान में बीजेपी ने एक सर्वे कराया था और पार्टी इस सर्वे के आधार पर ही टिकट बाँटना चाहती थी। सर्वे के अनुसार 50 फ़ीसदी विधायकों के टिकट काटे जाने थे। लेकिन सीएम अपने समर्थकों को टिकट दिलवाने में सफल रहीं। केन्द्रीय नेतृत्व को इस बात का डर है कि सत्ता विरोधी लहर के कारण राजस्थान में बीजेपी के हाथ से सत्ता चली न जाए। 2013 में बीजेपी को 163 सीटों पर जीत मिली थी हालाँकि कुछ जगहों पर वसुन्धरा के समर्थकों को निराश भी होना पड़ा है।प्रदेश अध्यक्ष को लेकर हो चुका है टकराव
महारानी यानी वसुन्धरा राजे का प्रदेश अध्यक्ष पद पर नियुक्ति को लेकर भी केन्द्रीय नेतृत्व से टकराव हो चुका है। अलवर और अजमेर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी ने इस्तीफ़ा दे दिया था। केन्द्रीय नेतृत्व उनकी जगह केन्द्रीय मन्त्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को अध्यक्ष बनाना चाहता था। लेकिन राजे के विरोध के कारण उसे बैकफ़ुट पर आना पड़ा और पार्टी ने सांसद मदन लाल सैनी को अध्यक्ष बनाया।
हार मिली तो लेनी होगी जिम्मेदारी
अलवर और अजमेर लोकसभा सीट और मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी को हार मिली थी। तब राजे को हटाने को लेकर काफ़ी आवाज़ें उठी थीं। पीएम मोदी की जनसभाओं में 'मोदी तुझसे बैर नहीं, रानी तेरी ख़ैर नहीं' जैसे नारे भी लग चुके हैं लेकिन इस सबके बावजूद राजे किसी तरह कुर्सी बचाने में कामयाब रहीं। पसंदीदा उम्मीदवारों को टिकट दिलवाने के बाद भी अगर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ता है तो ज़िम्मेदारी भी राजे की ही होगी।
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