लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने के बाद से ही यह आशंका जताई जाने लगी थी कि कर्नाटक, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश की विपक्षी सरकारों को ख़तरा हो सकता है। इनमें से कर्नाटक की सरकार को बीजेपी ने एक साल तक पूरी राजनीतिक तिकड़म भिड़ाकर आख़िरकार गिरा ही दिया।
पश्चिम बंगाल के बारे में तो ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव के दौरान रैली में मंच से कह चुके हैं कि तृणमूल कांग्रेस के 40 विधायक उनके संपर्क में हैं और लोकसभा चुनाव के बाद वे विधायक पार्टी छोड़ देंगे। हाल ही में तृणमूल के कई पार्षदों और पार्टी नेताओं को बीजेपी ने अपने पाले में खींचा है और कहा है कि वह आगे भी कई चरणों में ऐसा करेगी।
एमपी में तोड़े थे 2 विधायक
अब बात करते हैं मध्य प्रदेश, राजस्थान की। मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार को अल्पमत में बताते हुए इसे गिराने की बार-बार गीदड़ भभकियाँ देने वाली बीजेपी पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जुलाई में ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ कर दी थी। कमलनाथ ने बीजेपी के दो विधायकों को तोड़कर कर्नाटक में बीजेपी की राजनीतिक कार्रवाई का ‘बदला’ ले लिया था। तब कांग्रेस की ओर से यह भी दावा किया गया था कि यह तो शुरुआत भर है और बीजेपी के और पाँच विधायक उसके संपर्क में हैं।
बताया जाता है कि ये सभी विधायक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के संपर्क में थे और उन्होंने स्पीकर सीपी जोशी से मुलाक़ात कर उन्हें कांग्रेस में शामिल होने के बारे में पत्र सौंप दिया है। राजस्थान में विधानसभा की 200 सीटें हैं और बहुमत के लिए 101 विधायक होने ज़रूरी हैं। राजस्थान में कांग्रेस के पास 100 विधायक थे और कुछ समय पहले 12 निर्दलीय विधायक पार्टी में शामिल हो गये थे और अब बीएसपी का किला उखाड़ने के बाद कांग्रेस के लिए सरकार चलाना आसान हो गया है।
हालांकि बीएसपी ने कांग्रेस के किसी विधायक को किसी राज्य में नहीं तोड़ा है लेकिन राजस्थान और मध्य प्रदेश में बीएसपी के विधायकों की ओर से उनकी मांगें न मानने पर सरकार से समर्थन वापसी की ख़बरें आती रही हैं। ऐसे में कांग्रेस को सरकार चलाने में दबाव का सामना करना पड़ रहा था। कांग्रेस को यह भी याद होगा कि किस तरह उसे उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान बने महागठबंधन में शामिल न करने को लेकर बीएसपी रोड़ा बनी थी।
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