राजस्थान में भाजपा का संकट बढ़ रहा है। वैसे भाजपा के केंद्रीय पर्यवेक्षक राजनाथ सिंह, सरोज पांडे और विनोद तावड़े रविवार को जयपुर में विधायकों से बात करने पहुंच रहे हैं। पार्टी ने अपनी तरफ से सोमवार को जयपुर में विधायक दल की बैठक बुलाई है लेकिन उसकी आधिकारिक घोषणा सामने नहीं आई है। खबर है कि पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने पार्टी नेतृत्व के सामने झुकने से इनकार कर दिया है। दोनों पक्ष अब अपनी-अपनी रणनीति बना रहे हैं। भाजपा आलाकमान राजस्थान में दो डिप्टी सीएम और महिला को विधानसभा अध्यक्ष देने पर विचार कर रही है। राजस्थान भाजपा में अभी तक योगी बालकनाथ, प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और दीया कुमारी के नाम बतौर सीएम चले हैं लेकिन अब सभी नाम खारिज कर दिए गए हैं। ताजा नाम केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का भी चल रहा है।
वसुंधरा राजे की वजह से भाजपा को अब संकट से निपटने के लिए दो डिप्टी सीएम और महिला विधानसभा अध्यक्ष बनाने पर विचार करना पड़ रहा है। मीडिया में खबरें हैं कि दोनों डिप्टी सीएम को जाति संतुलन के हिसाब से बनाया जाएगा। राजपूत, जाट, दलित और ब्राह्मण के बीच संतुलन बैठाया जा रहा है। इन्हीं जातियों के लोगों को चारों पद यानी सीएम, 2 डिप्टी सीएम और विधानसभा अध्यक्ष दिया जा सकता है। वसुंधरा राजे के संभावित विद्रोह से निपटने के लिए पार्टी इसी फॉर्मूले पर विचार कर रही है। क्योंकि वसुंधरा के पास चारों ही बिरादरी के विधायक हैं।
मीडिया रिपोर्टों और सूत्रों के मुताबिक भाजपा आलाकमान को अब जो सूचनाएं मिल रही हैं वो चौंकाने वाली हैं। विधानसभा चुनाव जीतने वाले लगभग 45 भाजपा विधायक 3 दिसंबर, 2023 को जयपुर में वसुंधरा के आवास पर चले गए। हालांकि मुख्यमंत्री समर्थकों ने दावा किया कि 45 विधायक केवल उनका आशीर्वाद लेने के लिए उनसे मिले थे। इसका कोई मतलब नहीं निकालना चाहिए। लेकिन आलाकमान परेशान हो गया।
इस बीच खबर है कि केंद्रीय पर्यवेक्षक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राज्यसभा सांसद सरोज पांडे और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े रविवार को विधायकों से मिलेंगे। वसुंधरा समर्थक विधायक अपना फैसला केंद्रीय पर्यवेक्षकों को बता देंगे। हालांकि वसुंधरा समर्थकों का कहना है कि उनके पास 75 विधायकों का समर्थन है। लेकिन पार्टी के लोगों का कहना है कि वसुंधरा के पास 30 से ज्यादा विधायक नहीं हैं।
वसुंधरा राजे और उनके बेटे झालावाड़ से लोकसभा सांसद दुष्यंत सिंह ने इस सप्ताह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की। मां-बेटे ने सीएम पद की दावेदारी पेश की। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में तीसरा कार्यकाल देने के मूड में नहीं है, लेकिन नरेंद्र मोदी, अमित शाह और नड्डा समझते हैं कि वसुंधरा पार्टी के खिलाफ विद्रोह कर सकती हैं और कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सरकार भी बना सकती हैं। नई विधानसभा में कांग्रेस के पास 69 विधायक हैं।
और कहां से मिल सकता है समर्थनः वसुंधरा को भाजपा के बागी के रूप में जीते आठ निर्दलीय विधायकों, राष्ट्रीय लोक दल के एक विधायक, कांग्रेस से गए एक निर्दलीय विधायक और बसपा के एकमात्र विधायक का भी समर्थन मिल सकता है। यानी वसुंधरा के पास बाहर से पर्याप्त समर्थन है। हालांकि भाजपा आलाकमान ने वसुंधरा को स्पीकर का पद देने की कोशिश की लेकिन वो स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।
कांग्रेस की नजर सारे घटनाक्रम पर है। विपक्ष और सत्ता पक्ष में रहते हुए अशोक गहलोत और वसुंधरा के संबंध हमेशा भाई-बहन वाले रहे हैं। परस्पर विरोधी विचारधारा की पार्टियों में होने के बावजूद दोनों एक दूसरे का सम्मान करते आए हैं। अगर वसुंधरा भाजपा से अलग हो जाती हैं और सरकार बनाती हैं, तो कांग्रेस अगली गर्मियों में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए उनके गुट के साथ गठबंधन कर सकती है।
क्या वसुंधरा के साथ धोखा हुआ?
वसुंधरा राजे ने 2003 और फिर 2013 में पार्टी को जीत दिलाई। उन्हें 2003, 2008, 2013 और 2018 में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया गया था। उनका कद भाजपा में बहुत बढ़ गया था। लेकिन पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने 2023 में पाया कि उन्हें सीएम चेहरा बनाने पर पार्टी जीत नहीं पाएगी। इस फैसले से राजस्थान भाजपा में संकट आ गया। यह संकट पार्टी ने खुद से बुलाया है। वसुंधरा समर्थकों का कहना है कि पार्टी के बड़े नेता वसुंधरा और खासकर सिंधिया घराने के साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं। राजस्थान में भाजपा का मतलब वसुंधरा राजे ही हैं। पार्टी को यह जल्द समझ में आ जाएगा।
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