राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पुत्र मोह में फँसे हुए हैं। गहलोत अपने बेटे वैभव गहलोत को जोधपुर संसदीय सीट से कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतारना चाहते हैं। जोधपुर शहर में तो गहलोत ने बेटे के लिए सियासी होली भी मना डाली। 'होली मिलन' के बहाने बेटे के लिए जनसंपर्क भी किया और वैभव के टिकट की दौड़ में शामिल होने का इशारा भी किया। होली मिलन के कार्यक्रम में गहलोत ने कहा कि वैभव गहलोत टिकट की दौड़ में है। साथ में पीड़ा भी जाहिर की कि वे पिछली दफ़ा भी बेटे को टिकट दिलाना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने नहीं दिया।
अशोक गहलोत के लिए बेटे की लाँचिंग करना अभी भी आसान नहीं है। क्योंकि बेटे की सियासी पारी की शुरुआत के रास्ते में उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट रोड़ा बनकर खड़े हैं।
इससे पहले पायलट ने अशोक गहलोत पर दबाव बनाने के लिए यह तक कहा था कि पायलट परिवार का कोई भी सदस्य लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेगा। इन बयानों के जरिए पायलट, अशोक गहलोत के बेटे के लिए टिकट हासिल करने की कोशिशों पर पलीता लगाने का प्रयास कर रहे थे।
पिछली बार भी की थी कोशिश
2014 के लोकसभा चुनाव में गहलोत अपने बेटे को टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा सीट से टिकट दिलाना चाहते थे, तब गहलोत को कामयाबी इसलिए नहीं मिली थी क्योंकि 2013 के दिसंबर में उनकी अगुवाई में कांग्रेस की शर्मनाक पराजय हुई थी। इसके बाद कांग्रेस ने सचिन पायलट को राज्य में पार्टी की कमान सौंपी थी।
2018 में राजस्थान में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद गहलोत, सचिन पायलट को सीएम की रेस में मात देकर मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन इसके साथ ही गहलोत-पायलट के बीच शीत युद्ध भी शुरू हो गया।
अशोक गहलोत इस बार बतौर मुख्यमंत्री अपनी पारी को आख़िरी मान रहे हैं, इसलिए बेटे को मैदान में उतारकर वह अपनी पारिवारिक विरासत को आगे बढ़ाना चाहते हैं। लेकिन टोंक-सवाई माधोपुर से वैभव गहलोत की दावेदारी को सचिन पायलट से ख़तरा है।
ऐसा इसलिए क्योंकि सचिन पायलट टोंक-सवाई माधोपुर सीट से ही विधायक हैं। पायलट के प्रभाव को देखते हुए गहलोत ने बेटे की सियासी पारी के लिए इस बार टोंक-सवाई माधोपुर से टिकट की कोशिश नहीं की। बावजूद इसके कि पिछले 5 साल से वैभव गहलोत इसी संसदीय क्षेत्र में सक्रिय थे।
इसके बाद गहलोत ने जोधपुर के पास ही जालोर-सिरोही संसदीय क्षेत्र से बेटे को चुनाव लड़ाने की तैयारी की। लोकसभा चुनाव की तारीख़ों के एलान से 15 दिन पहले गहलोत तीन बार इस संसदीय क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं और यहाँ के प्रभावशाली मठों के मठाधीशों से मिल चुके हैं।
दरअसल, जालोर-सिरोही संसदीय क्षेत्र गुजरात की सीमा से सटा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस इलाक़े पर ख़ासा असर है। दूसरी वजह है, इस सीट पर भी पायलट गुट के एक नेता का टिकट के लिए दावा ठोकना। ऐसे में वैभव को टिकट दिलाने पर भितरघात का डर भी अशोक गहलोत को सता रहा था।
आख़िर में अशोक गहलोत ने बेटे वैभव गहलोत की लॉन्चिंग के लिए अपने गृह ज़िले और गृह क्षेत्र जोधपुर को ही चुना। ख़ुद अशोक गहलोत जोधपुर संसदीय क्षेत्र से सांसद रह चुके हैं।
शेखावत से होगा मुक़ाबला!
वैभव को कांग्रेस ने यदि जोधपुर से टिकट दिया तो उनका मुक़ाबला बीजेपी के हैवीवेट उम्मीदवार गजेंद्र सिंह शेखावत से होगा। शेखावत को बीजेपी मैदान में उतार चुकी है। शेखावत केंद्रीय मंत्री हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने छह महीने पहले गजेंद्र शेखावत को ही राज्य में बीजेपी की कमान सौंपने का मन बनाया था। मोदी और शाह का मक़सद शेखावत को वसुंधरा राजे के विकल्प के रूप में खड़ा करना था।
ऐसे में सवाल यह कि क्या अशोक गहलोत बेटे को बीजेपी के हैवीवेट नेता के सामने उतारकर कांटे के मुक़ाबले में फंसाने का जोख़िम लेंगे। अगर इस सीट से वैभव को उतारा जाता है तो फिर यहाँ अशोक गहलोत को पूरी ताकत झोंकनी होगी। ऐसे में गहलोत के सामने फिर संकट खड़ा होगा कि वह राजस्थान की 25 सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों के प्रचार और उन्हें चुनाव जितवाने में वक़्त लगाएँ या फिर बेटे के लिए जोधपुर में पसीना बहाएँ।
जोधपुर जिले के जातीय समीकरण और हालात भी वैभव के लिए ज़्यादा उत्साहजनक नहीं हैं लेकिन उम्मीद ज़रूर है। अशोक गहलोत की टीम को लगता है कि दलित, मुसलिम, माली और जाट जातियों के वोट बैंक से वैभव इस सीट पर मजबूत प्रत्याशी हो सकते हैं।
वैभव गहलोत हालाँकि सचिन पायलट की टीम में राजस्थान कांग्रेस के महासचिव हैं। लेकिन सांसद बनने के लिए वैभव को पायलट का समर्थन मिलना अभी दूर की कौड़ी है।
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