बेहद सनसनीख़ेज है ‘द हिंदू’ का ख़ुलासा
ये ढेर सारे सवाल इसलिए उठ खड़े हो रहे हैं क्योंकि शुक्रवार को ‘द हिंदू’ अख़बार में देश के बेहद सम्मानित संपादक और पत्रकार एन. राम ने रफ़ाल मामले को लेकर एक ख़बर लिखी है। रफ़ाल मामले में एन. राम का ख़ुलासा न केवल चौंकाता है बल्कि बेहद सनसनीख़ेज भी है। यह ख़ुलासा इस बात को साबित करता है कि रफ़ाल मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय ने रक्षा मंत्रालय के काम में दख़लअंदाज़ी की और रक्षा मंत्रालय इस मामले में फ़्रांसीसी सरकार से जो बातचीत कर रहा था, उसके उलट काम किया। रक्षा मंत्रालय ने रक्षा मंत्री को लिखा कि प्रधानमंत्री कार्यालय की दख़लअंदाज़ी से उनकी बातचीत को नुक़सान पहुँच रहा है।
‘द हिंदू’ अख़बार का दावा है कि रफ़ाल मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय के फ़्रांसीसी सरकार से सीधी बातचीत करने पर रक्षा मंत्रालय ने आपत्ति जताई थी और यह कहा था कि प्रधानमंत्री कार्यालय रक्षा मंत्रालय के ठीक उलट स्टैंड ले रहा है।
Congress President Rahul Gandhi: PM Modi himself robbed Air Force's Rs 30,000 crore and gave it to Anil Ambani, we have been raising this since 1 year. Now a report has come where Defence Ministry officials say that PM was holding parallel negotiations with France Govt. #Rafale pic.twitter.com/76OPEVe3Vl
— ANI (@ANI) February 8, 2019
Exclusive: The Defence Ministry had protested against PMO undermining #Rafale negotiations, reports @nramind #RafaleDeal https://t.co/xtLyJejr6p pic.twitter.com/aMpzMbICLs
— The Hindu (@the_hindu) February 7, 2019
उस वक़्त के रक्षा सचिव जी. मोहन कुमार ने फ़ाइल पर लिखा था, ‘रक्षा मंत्री जी, प्लीज इसे देखें, यह अपेक्षित है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ऐसी बातचीत से बचे जिससे हमारी बातचीत को गंभीर नुक़सान हो रहा है।’
रक्षा सचिव ने जताया था विरोध
‘द हिंदू’ अख़बार का दावा है कि रक्षा सचिव ने 24 नवंबर 2015 को आधिकारिक तौर पर अपना विरोध जताया था। रक्षा सचिव के लिए एक नोट डेप्युटी सेक्रेटरी, ‘ एआईआर - 11’ एस. के. शर्मा ने बनाया था जिसे मंत्रालय के संयुक्त सचिव - एक्विजिशन मैनेजर (एआईआर) और डायरेक्टर जनरल एक्विजिशन ने संस्तुत किया था।
पुराने सौदे से अलग था नया सौदा
हम आपको बता दें कि अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस में जिस नए रफ़ाल सौदे का एलान किया था, वह लंबी बातचीत के बाद हुए सौदे से काफ़ी अलग था। अख़बार यह लिखता है कि प्रधानमंत्री मोदी के एलान के बाद फ़्रांस के राष्ट्रपति फ़्रांस्वा ओलां 2016 में गणतंत्र दिवस के मौक़े पर जब हिंदुस्तान आए थे तब मैमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए थे।
रक्षा मंत्रालय ने लिखा नोट
23 सितंबर 2016 को आख़िरकार दोनों सरकारों के बीच 36 रफ़ाल लड़ाकू विमानों के सौदे पर हस्ताक्षर हो गए। एन. राम ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का दावा किया है कि रक्षा मंत्रालय ने रफ़ाल मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से की जा रही समानांतर बातचीत पर एक आधिकारिक नोट बनाया था। नोट में इस बात का जिक़्र था कि उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय की इस बातचीत का कैसे पता चला?
जनरल रेब ने लिखी थी चिट्ठी
रक्षा मंत्रालय के इस नोट के मुताबिक़, 23 अक्टूबर 2015 को रफ़ाल मामले में लिखी एक चिट्ठी में इस बात का ख़ुलासा होता है। यह चिट्ठी रफ़ाल मामले में फ़्रांस की तरफ़ से बातचीत कर रही टीम के मुखिया जनरल स्टीफ़न रेब ने लिखी थी। इस चिट्ठी में 20 अक्टूबर 2015 को प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव जावेद अशरफ़ और फ़्रांसीसी सरकार के रक्षा मंत्री के राजनयिक सलाहकार लुई वासे के बीच टेलीफ़ोन पर हुई बातचीत का जिक़्र था।
अख़बार आगे लिखता है कि रक्षा मंत्रालय ने जनरल रेब की इस चिट्ठी की सूचना भारत के प्रधानमंत्री कार्यालय को दी। इस बारे में भारत की तरफ़ से फ़्रांस से बातचीत कर रही टीम के मुखिया एयर मार्शल एस. बी. पी. सिन्हा, डेप्युटी चीफ़ ऑफ़ एयर स्टाफ़ ने प्रधानमंत्री कार्यालय के संयुक्त सचिव जावेद अशरफ़ को इस बारे में लिखा।
जावेद ने की थी वासे से बातचीत
एन. राम आगे लिखते हैं कि एयर मार्शल सिन्हा की इस चिट्ठी का जवाब 11 नवंबर 2015 को जावेद अशरफ़ ने दिया। जावेद अशरफ़ ने अपनी चिट्ठी में इस बात पर मुहर लगाई कि उन्होंने फ़्रांसीसी रक्षा मंत्री के राजनयिक सलाहकार लुई वासे से बातचीत की थी और उन्होंने यह भी बताया कि वासे ने उन्हें इस बारे में सूचना दी कि वह फ़्रांसीसी राष्ट्रपति के कार्यालय के निर्देश पर बातचीत कर रहे थे और इस बातचीत में जनरल रेब की चिट्ठी पर भी विमर्श हुआ था।
रक्षा मंत्रालय का नोट यह साफ़ लिखता है कि फ़्रांसीसी सरकार के रक्षा मंत्री के राजनयिक सलाहकार और भारतीय प्रधानमंत्री के संयुक्त सचिव के बीच बातचीत समानांतर बातचीत है। यह बातचीत तब हो रही है जबकि रक्षा मंत्रालय द्वारा गठित एक टीम आधिकारिक तौर पर फ़्रांसीसी टीम से बातचीत कर रही थी।
रक्षा मंत्रालय का नोट यह भी लिखता है कि इस तरीक़े की समानांतर बातचीत हमारे हितों को नुक़सान पहुँचा सकती है। क्योंकि फ़्रांसीसी टीम इस बात का फ़ायदा उठा सकती है और इससे आधिकारिक तौर पर बातचीत करने वाली भारतीय टीम की स्थिति कमज़ोर होती है।
बैंक गारंटी की ज़रूरत नहीं
अख़बार आगे लिखता है कि रक्षा मंत्रालय का नोट इस बात का साफ़ जिक़्र करता है कि जनरल रेब ने जो चिट्ठी लिखी थी, उसमें इस बात का हवाला दिया गया था कि कैसे फ़्रांसीसी रक्षा मंत्री के राजनयिक सलाहकार और प्रधानमंत्री के संयुक्त सचिव की बातचीत में यह तय हुआ है कि रफ़ाल मामले में किसी बैंक गारंटी की ज़रूरत नहीं है और सिर्फ़ लेटर ऑफ़ कम्फ़र्ट देने से काम चल जाएगा।
पहले डोवाल कर चुके थे बातचीत
अख़बार ने आगे लिखा है कि समानांतर बातचीत का यह कोई पहला मामला नहीं था, जिसमें आधिकारिक बातचीत के उलट स्टैंड लिया गया था। इसके पहले भी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल ने जनवरी 2016 में पेरिस में फ़्रांसीसी पक्ष से बातचीत की थी। डोवाल ने तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को यह सलाह दी थी कि वह रफ़ाल मामले में सार्वभौम गारंटी या बैंक गारंटी की जिद न करें।
फ़्रांस के रक्षा मंत्रालय ने जताई थी आपत्ति
फ़्रांस के रक्षा मंत्रालय ने भारत के प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखा था कि ऐसा कोई भी अफ़सर जो भारत की ओर से बातचीत करने वाली टीम का सदस्य नहीं है, वह फ़्रांसीसी पक्ष से समानांतर बातचीत न करे। और अगर प्रधानमंत्री कार्यालय को रक्षा मंत्रालय की टीम पर भरोसा नहीं है तो प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ़ से बातचीत के लिए नई प्रक्रिया अपनाई जाए।
सुप्रीम कोर्ट से छुपाई बात
रक्षा मंत्री ने यह बात सरकारी फ़ाइल पर भी लिखी थी। एन. राम ने यह दावा किया है कि रफ़ाल मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा हो रही बातचीत की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को नहीं दी गई। यानी इस पक्ष को शीर्ष अदालत से छुपा लिया गया। सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ़ से यह बताया गया था कि फ़्रांसीसी पक्ष से पूरी बातचीत रक्षा मंत्रालय द्वारा गठित 7 सदस्यीय टीम ने की थी।
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