सर्वोच्च सिख धार्मिक संस्थाओं में शुमार सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की ओर से पास किए गए ताज़ा प्रस्ताव में कहा गया है कि आरएसएस भारत में दूसरे धर्मों के लोगों और अल्पसंख्यकों की आवाज़ को दबा रहा है और यह भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश है। इसके बाद यह सवाल खड़ा हो रहा है कि आख़िर यह बयान क्यों दिया गया है, क्या वास्तव में संघ ऐसा कर रहा है? क्या इस बयान को 9 महीने बाद होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव को देखते हुए दिया गया है। इसे समझने की कोशिश करते हैं।
पंजाब में धर्म और राजनीति साथ-साथ चलते हैं। अकाल तख़्त के अलावा एसजीपीसी भी सर्वोच्च धार्मिक संस्था है और यह कई राज्यों के गुरुद्वारों का प्रबंधन करती है।
एसजीपीसी का अध्यक्ष बनने या इसकी प्रबंधक कमेटी का सदस्य बनने के लिए चुनावों में जबरदस्त मारामारी होती है, इससे इसकी अहमियत का पता चलता है। लंबे समय तक एसजीपीसी पर प्रकाश सिंह बादल की अगुवाई वाले शिरोमणि अकाली दल का ही कब्जा रहा है।
एसजीपीसी की अध्यक्ष जागीर कौर हैं, जो अकाली दल की सीनियर नेता हैं और उसकी कोर कमेटी की सदस्य भी हैं। एसजीपीसी के बारे में कहा जाता है कि वह अकाली दल की मातृ संस्था है, जैसे आरएसएस बीजेपी की है।
कुछ महीने पहले तक जब तक अकाली दल और बीजेपी गठबंधन में थे तो एसजीपीसी की सत्ता जब-जब अकाली दल के पास रही, संघ के भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश करने जैसा कोई बयान एसजीपीसी की ओर से नहीं आया। कभी छिटपुट कुछ कहा हो तो वो बात अलग है लेकिन इतना खुलकर एसजीपीसी ने कभी नहीं कहा।
9 महीने बाद पंजाब में चुनाव हैं। किसान आंदोलन के कारण राज्य में जबरदस्त उथल-पुथल है। किसानों के वोट बेहद अहम हैं और साथ ही सिख मतदाताओं के भी। ये किस ओर जाएंगे, नहीं कहा जा सकता।
निगम चुनाव और सर्वे
फरवरी में हुए नगर निगम के चुनाव में राज्य के 7 नगर निगमों में कांग्रेस को 6 पर जीत मिली थी और अकाली दल को सिर्फ एक पर। ABP News-C Voter की ओर से मार्च में कराए गए सर्वे के मुताबिक, पंजाब की कुल 117 सीटों में से कांग्रेस को 43-49, आम आदमी पार्टी को 51-57, अकाली दल को 12-18 सीटें, बीजेपी को 0 से 5 सीटें और अन्य को 0 से 3 सीटें मिल सकती हैं।
सर्वे के मुताबिक़, कांग्रेस को 32 फीसदी, आम आदमी पार्टी को 37 फीसदी, अकाली दल को 21 फीसदी, बीजेपी और अन्य को पांच-पांच फीसदी वोट मिल सकते हैं।
एबीपी न्यूज़ के सर्वे और नगर निगम चुनाव के नतीजों से साफ हो गया है कि अकाली दल की हालत बेहद ख़राब है। अकाली दल के पास अब हिंदू मतदाताओं का भी साथ नहीं रहा जो उसे बीजेपी की वजह से मिलता था। अब उसकी नज़र राज्य के 60 फ़ीसदी सिख मतदाताओं के वोटों पर है।
कट्टरपंथी भी सक्रिय
किसान आंदोलन के बीच सोशल मीडिया पर सिखों के साथ हिंदुस्तान में नाइंसाफ़ी होने की बात को जमकर शेयर किया जा रहा है। इसमें विदेशों में बैठे कट्टरपंथी सिख संगठनों से जुड़े लोग शामिल हैं और पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई का उन्हें खुला समर्थन हासिल है। इस प्रचार का असर भी विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा।
पंजाब में आरएसएस का प्रभाव
पंजाब में आरएसएस के बढ़ते प्रभाव के कारण भी अकाली दल चिंतित है। आरएसएस की सिख इकाई राष्ट्रीय सिख संगत से जुड़े कई नेताओं की पिछले कुछ सालों में हत्या हो चुकी है और कई हिंदू और सिख नेताओं पर हमले हुए हैं।
चूंकि बीजेपी को हिंदू मतदाताओं के समर्थन वाली पार्टी माना जाता है और कृषि क़ानूनों के कारण पंजाब में बीजेपी नेता किसानों के निशाने पर आ गए हैं तो इसके बहाने हिंदू मतदाताओं को गोलबंद करने की कोशिश भी की जा रही है।
पांच नदियों का राज्य पंजाब 1947 में विभाजन का दंश झेल चुका है। बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के पास चला गया और उसके बाद खालिस्तानी आतंकवादियों के कारण यह राज्य लंबे वक्त तक अशांत रहा। इसलिए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह बार-बार चेताते हैं कि वे अलगाववादियों को यहां रहने नहीं देंगे।
अंत में यही बात कि अकाली दल के सामने मुश्किल यह है कि प्रकाश सिंह बादल की उम्र ज़्यादा हो चुकी है और वह मैदान में नहीं निकल सकते। सुखबीर बादल और उनकी पत्नी हरसिमरत कौर ही बड़े चेहरे हैं।
सुखबीर चिंतित हैं कि अगर 2022 के चुनाव में पिछले विधानसभा चुनाव जैसा हाल हो गया तो फिर पार्टी को बचाना मुश्किल हो जाएगा। अकाली दल 2012 में मिली 68 सीटों से घटकर 2017 में 15 सीटों पर आ गया था जबकि आम आदमी पार्टी 20 सीटों पर जीती थी।
इसलिए यह कहा जा सकता है कि सिख वोटों पर कब्जे की लड़ाई में जीत हासिल करने और राजनीतिक ज़मीन को बचाने की जद्दोजहद में तो कहीं एसजीपीसी की ओर से यह बयान दिलवाया गया है।
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