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पंजाब में गुरबाणी प्रसारण फ्री करने को लेकर राजनीति गरमाई

पंजाब में गुरबाणी का प्रसारण मुफ्त किए जाने के फैसले पर राजनीति गरमा उठी है। इस राजनीति को आप अगली लाइन से समझ सकते हैं। गुरबाणी प्रसारण का अधिकार शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के पास है। एसजीपीसी ने गुरबाणी प्रसारण का अधिकार पीटीसी नेटवर्क चैनलों को दे रखा है। पीटीसी नेटवर्क चैनलों का मालिक बादल परिवार है। पंजाब सरकार के इस फैसले से किसी भी चैनल को गुरबाणी प्रसारण का अधिकार मिल जाएगा।

Punjab: Politics heats up for making Gurbani broadcast free  - Satya Hindi
मुख्यमंत्री भगवंत मान का गुरबाणी के संबंध में ट्वीट।
मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान कैबिनेट कल मंगलवार को एक फैसले को औपचारिक रूप देगी कि अमृतसर में हरमंदिर साहिब (गोल्डन टेंपल) से गुरबाणी का प्रसारण मुफ्त किया जाए। गुरबाणी पर सबका अधिकार और यह मुफ्त होना चाहिए। मुख्यमंत्री मान ने आज सोमवार सुबह ट्वीट कर यह घोषणा की।

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मुख्यमंत्री मान ने लिखा है "भगवान के आशीर्वाद से, हम कल (मंगलवार) एक ऐतिहासिक निर्णय लेने जा रहे हैं, सभी भक्तों की मांग के अनुसार, हम सिख गुरुद्वारा अधिनियम 1925 में एक नया खंड जोड़ रहे हैं कि हरमिंदर साहिब से गुरबाणी का प्रसारण सभी के लिए मुफ्त होगा। ... किसी टेंडर की जरूरत नहीं है... कल कैबिनेट में... 20 जून को राज्य विधानसभा में वोट कराया जाएगा।" 
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि एसजीपीसी ने राजनीतिक रूप से पावरफुल बादल परिवार के स्वामित्व वाले पीटीसी नेटवर्क को यह अधिकार दे रखा था। इसे मुफ्त करने से नेटवर्क के एकाधिकार को तोड़ने और सभी टीवी चैनलों के लिए जमीन तैयार होने की उम्मीद है। 
राजनीतिक रूप से, इससे विपक्षी दल शिरोमणि अकाली दल की पंथिक चमक कम होने की संभावना है, जिस पर बादल खानदान का वर्चस्व है। जब मुख्यमंत्री मान ने पहले गुरबानी के प्रसारण को मुफ्त करने का प्रस्ताव दिया था, तो एसजीपीसी, बादल और अकाली दल ने इसका जमकर विरोध किया था।
एसजीपीसी प्रमुख हरजिंदर सिंह धामी ने एक बयान में कहा, "मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान जी को सिखों के धार्मिक मामलों को भ्रमित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए... देश को अपने राजनीतिक हितों के लिए भ्रमित न करें। गुरबाणी का प्रसारण सामान्य प्रसारण नहीं है। इसकी पवित्रता और नैतिकता की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।" 
बादल परिवार के नेतृत्व वाले अकाली दल के दलजीत सिंह चीमा ने इस कदम को "असंवैधानिक" और "सिख समुदाय की धार्मिक गतिविधियों में सीधा हस्तक्षेप" कहा। 
दलजीत चीमा ने कहा कि "सिख गुरुद्वारा अधिनियम संसद के अधीन है। सिख समुदाय ने संसद के इस अधिनियम के तहत गुरु घर के संबंध में निर्णय लेने के लिए मतदान के माध्यम से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति का चुनाव किया है। क्या उपरोक्त समिति ने इस संबंध में ऐसा कोई प्रस्ताव पारित किया है? उसके बिना भी, संसद इस अधिनियम में संशोधन नहीं कर सकती है। केजरीवाल के आदेश के तहत किए जा रहे इस काम को सिख समुदाय कभी बर्दाश्त नहीं करेगा।

भाजपा और कांग्रेस भी इसका जमकर विरोध कर रहे हैं, उनका तर्क है कि सिख गुरुद्वारा अधिनियम 1925 संसद द्वारा बनाया गया कानून है, जिसे राज्य सरकार बदल नहीं सकती है। कांग्रेस के सुखपाल सिंह खैरा ने सवाल किया कि पंजाब सरकार एक केंद्रीय अधिनियम में कैसे बदलाव कर सकती है।

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पंजाब कांग्रेस के नवजोत सिद्धू ने हालांकि ट्वीट किया कि वह इस कदम के पक्ष में हैं। नवजोत सिद्धू ने अपने ट्वीट में लिखा है - "सरब सांझी गुरबाणी" …….. यानी बिना किसी भेदभाव के एक और सभी के लिए ... यह मेरे सहित दुनिया भर के लाखों सिखों की पोषित इच्छा थी …सराहनीय प्रयास @भगवंत मान …यश !!”

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क़मर वहीद नक़वी
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