पंजाब कांग्रेस में नवजोत सिंह सिद्धू बनाम अमरिंदर सिंह की सियासी जंग में दोनों ओर से ताक़त दिखाने का खेल जारी है। कैप्टन खेमे की ओर से यह बयान आने के बाद कि जब तक सिद्धू माफ़ी नहीं मांगते, अमरिंदर सिंह उनसे नहीं मिलेंगे, सिद्धू ने अमृतसर में अपनी सियासी ताक़त का मुज़ाहिरा किया है।
बुधवार को सिद्धू के अमृतसर स्थित आवास पर कांग्रेस के 62 विधायक जुटे। पंजाब में कांग्रेस के 80 विधायक हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि कैप्टन के क़रीबी भी उनका साथ छोड़कर सिद्धू के साथ आने लगे हैं।
जिस रात से सिद्धू को अध्यक्ष बनाने का एलान हाईकमान की ओर से हुआ है, सिद्धू ने तेज़ी से पंजाब की ज़मीन नापनी शुरू कर दी है। उनके समर्थकों का जोश देखकर साफ लगता है कि वे सिद्धू को 2022 में सूबे का मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं। सिद्धू के स्वागत कार्यक्रमों में उमड़ रही भीड़ कैप्टन को चिंता में डालने वाली है।
सिद्धू ने मंगलवार को स्वर्ण मंदिर में मत्था टेका और इसके बाद वे दुर्गियाना मंदिर भी गए।
सिद्धू के समर्थक नारा लगाते हैं- सिद्धू तेरी बल्ले-बल्ले, बाक़ी सारे थल्ले-थल्ले। मतलब सिद्धू तुम आगे निकल गए हो और बाक़ी लोग पीछे ही रह गए हैं।
अगले ‘सरदार’ हैं सिद्धू
सिद्धू के बारे में कहा जाता है कि उनकी सियासी ख़्वाहिश पंजाब का मुख्यमंत्री बनने की है। लेकिन जब तक अमरिंदर सिंह हैं, तब तक ऐसा हो पाना मुश्किल है।
लेकिन अमरिंदर सिंह अब 79 साल के हो चुके हैं और लंबे वक़्त तक सियासी सक्रियता बना पाना उनके लिए भी आसान नहीं होगा। शायद इसी को भांपते हुए और हाईकमान का सिद्धू की पीठ पर हाथ होने के कारण कई विधायकों ने सिद्धू के साथ खड़े होने में भलाई समझी है क्योंकि यह उन्हें भी समझ आ गया है कि सिद्धू ही पंजाब कांग्रेस के अगले ‘सरदार’ हैं।
अमरिंदर खेमा अड़ा
मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के मीडिया सलाहकार रवनीत ठुकराल ने मंगलवार रात को एक के बाद एक दो ट्वीट कर हाईकमान तक यह संदेश पहुंचा दिया है कि कैप्टन झुकने वाले नहीं हैं।
ट्वीट में ठुकराल ने लिखा है- इस तरह की ख़बरें ग़लत हैं कि नवजोत सिंह सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह से मिलने का वक़्त मांगा है, सिद्धू की ओर से कोई समय नहीं मांगा गया है।
ठुकराल ने आगे कहा है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने स्टैंड में कोई बदलाव नहीं किया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री तब तक सिद्धू से नहीं मिलेंगे जब तक वह उन्हें लेकर सोशल मीडिया पर किए गए हमलों के लिए सार्वजनिक रूप से माफ़ी नहीं मांग लेते। याद दिला दें कि सिद्धू ने बीते तीन महीनों में ट्विटर और अपने बयानों के जरिये कैप्टन पर जोरदार हमला बोला था।
अमरिंदर का विरोध दरकिनार
बता दें कि सिद्धू और अमरिंदर के बीच लंबे वक़्त तक चली जंग के बाद हाईकमान ने सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है जबकि कैप्टन कई बार कह चुके थे कि सिद्धू को अध्यक्ष नहीं बनाया जाना चाहिए। नवजोत सिंह सिद्धू को रोकने के लिए कैप्टन ने आख़िरी वक़्त में अपने सियासी विरोधी प्रताप सिंह बाजवा का भी नाम आगे बढ़ाया लेकिन हाईकमान इस पद पर सिद्धू को ही चाहता था।
इसके अलावा पार्टी ने जो चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए हैं, उनमें भी अमरिंदर सिंह की पसंद को नज़रअंदाज कर दिया गया है।
पंजाब में सात महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। सिद्धू और अमरिंदर के सियासी रिश्ते जगजाहिर हैं। देखना होगा कि सिद्धू सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगते हैं या नहीं और अगर माफ़ी मांगते भी हैं तो भी इन दोनों के रिश्ते क्या साथ काम करने वाले बनेंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो पंजाब में कांग्रेस को नुक़सान होना तय है।
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