पंजाब की भगवंत मान सरकार राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को राज्य सरकार के द्वारा चलाए जा रहे विश्वविद्यालयों के चांसलर के पद से हटा सकती है। इससे पहले पश्चिम बंगाल की सरकार ने ऐसा किया था और इस संबंध में वहां की विधानसभा में प्रस्ताव पास किया गया था। इस प्रस्ताव में कहा गया था कि राज्य सरकार के जितने भी विश्वविद्यालय हैं उनमें अब राज्यपाल के बजाय मुख्यमंत्री ही चांसलर होंगी।
बताना होगा कि भगवंत मान सरकार का राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित के साथ लगातार टकराव चल रहा है। पंजाब सरकार ने पिछले महीने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया था और राज्यपाल ने पहले इसकी अनुमति भी दे दी थी।
लेकिन बाद में उन्होंने इस अनुमति को वापस ले लिया था।
इसके बाद जब राज्य सरकार ने 27 सितंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया था तो राजभवन ने इसका एजेंडा मांग लिया था। तब राज्य सरकार ने इसका पुरजोर विरोध किया था। इस सत्र में भगवंत मान सरकार विश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी।
राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित ने हाल ही में हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर गुरप्रीत वांडर को बाबा फरीद यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर नियुक्त किए जाने के प्रस्ताव को रद्द कर दिया है। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से कहा है कि वह पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर डॉ. एसएस गोसल को भी उनके पद से हटाए। राज्यपाल के मुताबिक, डॉक्टर गोसल की यह नियुक्ति अवैध है और इसके लिए उनसे अनुमति नहीं ली गई है।
नियमों के मुताबिक, चूंकि राज्यपाल राज्य सरकार के विश्वविद्यालयों के चांसलर यानी कुलाधिपति होते हैं तो वाइस चांसलर को नियुक्त करने के लिए उनकी अंतिम अनुमति जरूरी होती है।
इसके बाद सदन अवकाश की अवधि में चला जाता है और जब सरकार फिर से सदन बुलाना चाहती है तो उसे इसके लिए कैबिनेट की मंजूरी की जरूरत होती है। इसके बाद सरकार राज्यपाल से सदन बुलाने के लिए मंजूरी देने की सिफारिश करती है।
बताना होगा कि आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार का भी उपराज्यपाल के साथ लगातार टकराव बना रहता है।
राज्यपालों की भूमिका पर सवाल क्यों?
राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित और भगवंत मान सरकार के बीच चल रहे टकराव के बाद सवाल यह खड़ा होता है कि देश में जहां-जहां पर विपक्षी दलों की सरकारें हैं वहां के राज्यपालों की सरकार के साथ तनातनी क्यों रहती है।
भगत सिंह कोश्यारी
इसमें पहला नाम सामने आता है महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का। भगत सिंह कोश्यारी की वजह से पिछली महा विकास आघाडी सरकार के दौरान एक साल तक महाराष्ट्र में विधानसभा के स्पीकर का चुनाव नहीं हो सका था। लेकिन बीजेपी-एकनाथ शिंदे की सरकार बनते ही विधानसभा स्पीकर का चुनाव हो गया और शिंदे गुट के राहुल नार्वेकर स्पीकर भी बन गए।
इसके अलावा उद्धव ठाकरे कैबिनेट ने 12 लोगों को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने की सिफ़ारिश साल 2020 में नवंबर के पहले सप्ताह में की थी। लेकिन राज्यपाल कोश्यारी हमेशा से इस पर आनाकानी करते रहे और मंजूरी नहीं दी। बीजेपी-शिंदे सरकार के द्वारा ठाकरे सरकार द्वारा भेजे गए 12 नामों की फाइल वापस लेने के लिए राज्यपाल कोश्यारी को पत्र लिखा गया था। राज्यपाल ने तुरंत इसे स्वीकार कर लिया था।
उद्धव ठाकरे के विधान परिषद का सदस्य बनने को लेकर भी विवाद हुआ था। राज्य कैबिनेट की ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने की सिफ़ारिश पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने लंबे समय तक जवाब नहीं दिया था।
ठाकरे को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए विधानसभा या विधान परिषद में से किसी एक सदन का सदस्य निर्वाचित होना ज़रूरी था और तब विधान परिषद में मनोनयन कोटे की दो सीटें रिक्त थीं। राज्य मंत्रिमंडल ने राज्यपाल से इन दो में से एक सीट पर ठाकरे को मनोनीत किए जाने की सिफ़ारिश की थी। लेकिन राज्यपाल अड़ गए थे।
तड़के दिला दी थी शपथ
नवंबर, 2019 में कोश्यारी ने तड़के देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और अजीत पवार को उप मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी। आज़ाद भारत के इतिहास में यह पहला मौक़ा था जब आनन-फानन में इतनी सुबह किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन हटाकर मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी।
जगदीप धनखड़
विपक्षी दलों की राज्य सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल देने वाले राज्यपालों में पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल और वर्तमान उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। राज्यपाल बनने के बाद से ही धनखड़ का राज्य सरकार के साथ टकराव होता रहा। धनखड़ से पहले उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ बीजेपी नेता केसरीनाथ त्रिपाठी पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे। उनका भी पूरा कार्यकाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से टकराव में ही बीता था।
आरिफ मोहम्मद ख़ान
केरल में भी राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच ऐसा ही टकराव पैदा हुआ था। केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए संशोधित नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ जब केरल विधानसभा में प्रस्ताव पारित हुआ था तो राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ख़ान ने उसे असंवैधानिक बता दिया था। बाद में जब राज्य सरकार ने इस क़ानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी तो राज्यपाल ने इस पर भी एतराज जताया और कहा कि सरकार ने ऐसा करने से पहले उनसे अनुमति नहीं ली।
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