पंजाब के नए मुख्यमंत्री भगवंत मान के दफ्तर में लगी एक तसवीर को लेकर विवाद हो रहा है। यह तसवीर शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की है। भगवंत मान जब से राजनीति में आए हैं वह भगत सिंह के सपनों का पंजाब बनाने की बात करते रहे हैं। उन्होंने अपनी शपथ भी भगत सिंह के गांव खटकड़ कलां में ली थी। यह जो तसवीर है इसमें भगत सिंह को पीली पगड़ी में दिखाया गया है।
भगवंत मान भी अधिकतर पीली पगड़ी में ही दिखाई देते हैं और अपने चुनावी भाषणों में इंकलाब जिंदाबाद का नारा बुलंद करते रहे हैं। इंकलाब जिंदाबाद का नारा सबसे पहले मौलाना हसरत मोहानी ने लगाया था लेकिन भगत सिंह ने इस नारे को लोकप्रियता दिलाई। भगत सिंह को साल 1931 में 23 साल की उम्र में लाहौर की जेल में फांसी दे दी गई थी।
पंजाब में चुनाव प्रचार के दौरान आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान ने एलान किया था कि अगर राज्य में उनकी सरकार बनी तो सभी दफ्तरों में भगत सिंह और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की तसवीर लगेगी।
क्या है विवाद?
भगत सिंह की जो तसवीर मान के दफ्तर में लगी है उसके बारे में कहा जा रहा है कि वह भगत सिंह की वास्तविक तसवीर नहीं है बल्कि काल्पनिक चित्र है। दिल्ली के भगत सिंह रिसोर्स सेंटर के सलाहकार और लेखक चमन लाल ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहते हैं कि भगत सिंह ने अपने जीवन में कभी भी पीली या केसरिया पगड़ी नहीं पहनी।
भगत सिंह की सिर्फ चार ही वास्तविक तसवीरें मौजूद हैं। इन 4 तसवीरों में से एक में वह अपने खुले बालों के साथ जेल में बैठे हैं जबकि दूसरी तसवीर में उन्होंने हेट पहनी हुई है और दो अन्य तसवीरों में वह सफेद पगड़ी में हैं।
चमन लाल कहते हैं कि इसके अलावा भगत सिंह की सभी तसवीरें सिर्फ कल्पना के आधार पर हैं।
चमन लाल कहते हैं कि राजनीतिक दलों को भगत सिंह की विचारधारा के बारे में बात करनी चाहिए ना कि अपने फायदे के लिए उनके नाम का इस्तेमाल करना चाहिए और काल्पनिक रूप से बनाई गई उनकी तसवीरों का भी इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।
चमन लाल ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा कि पंजाब सरकार को भगत सिंह की चार वास्तविक तसवीरों में से ही किसी एक तसवीर को सरकारी दफ्तरों में लगाना चाहिए क्योंकि आप किसी एक रंग को किसी क्रांतिकारी से नहीं जोड़ सकते।
बसंती या पीले रंग को पंजाब में क्रांति से जोड़ा जाता रहा है। पिछले साल चले किसान आंदोलन के दौरान भी बड़ी संख्या में पंजाब से आए लोग पीली पगड़ी पहने दिखते थे।
बसंती या पीला रंग खुशहाली का प्रतीक है और पंजाब में बसंत ऋतु आने का भी। इसलिए पंजाब में विशेषकर गांवों में इस रंग को काफी पसंद किया जाता है।
तसवीर को लेकर हुए इस विवाद पर भगत सिंह के 77 साल के भांजे जगमोहन संधू ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहते हैं कि यह बहस ग़ैर जरूरी है। संधू ने कहा कि यह सच है कि भगत सिंह की सिर्फ चार ही वास्तविक तसवीर मौजूद हैं और उनमें से किसी में भी उन्होंने पीली पगड़ी नहीं पहनी है। लेकिन कलाकारों को अपनी कल्पना में किसी रंग का इस्तेमाल करने से नहीं रोका जा सकता।
विचारों पर हो अमल
संधू ने कहा कि हमारे लिए जरूरी यह है कि भगत सिंह के विचारों पर अमल हो। उन्होंने कहा कि भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा का गठन किया था जो युवाओं को जातिवाद से दूर रखे और लोगों को पढ़ने, सोचने और आलोचना करने के लिए आगे बढ़ाए। उन्होंने कहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भगत सिंह के विचारों को आगे बढ़ाया और सामाजिक न्याय को हमारे संविधान में जगह दी।
संधू ने कहा कि हमें इस बात की जरूरत है कि हम इन दोनों महान शख्सियतों के विचारों पर बात करें बजाय इसके कि पगड़ी के रंग के। संधू ने कहा कि पंजाब सरकार भगत सिंह के द्वारा लिखी गई बातों को छपाए और यह सभी सरकारी दफ्तरों में उपलब्ध रहे। उन्होंने कहा कि अगर भगत सिंह और डॉक्टर अंबेडकर के विचारों पर अमल नहीं किया जाता है तो फिर उनके फोटो लगाने से क्या होगा।
निश्चित रूप से भगत सिंह के समर्थकों की एक बड़ी तादाद पंजाब के अलावा बाकी राज्यों में भी है और युवा पीढ़ी उन्हें अपने आदर्श के रूप में देखती है। लेकिन भगत सिंह के भांजे का कहना सही है कि हमें बजाय उनकी तसवीर पर बहस करने के उनके विचारों पर अमल करना चाहिए।
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