भगवंत मान पंजाब में आम आदमी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। आम आदमी पार्टी की पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी की बैठक में इस बात पर सहमति बन गई है। भगवंत मान पंजाब में आम आदमी पार्टी के प्रधान हैं और लगातार दूसरी बार सांसद बने हैं।
मान के समर्थकों की लंबे वक्त से मांग थी कि उनके नेता को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए। लेकिन सूत्रों के मुताबिक अरविंद केजरीवाल इस कोशिश में थे कि पंजाब के चुनाव में उतरे किसान संगठनों और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन हो जाए और किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल को मुख्यमंत्री पद के चेहरे के तौर पर मैदान में उतारा जाए।
लेकिन किसानों के साथ सीट बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बन पाई। ऐसे में भगवंत मान का नाम ही इस पद के लिए बाकी बचा था।
यह बताना होगा कि कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के बॉर्डर्स पर बड़ा आंदोलन करने वाले 22 किसान संगठनों ने बलबीर सिंह राजेवाल को मुख्यमंत्री पद के चेहरे के तौर पर पेश किया है।
मान को मुख्यमंत्री पद के चेहरे के तौर पर उतारने का एलान कभी भी किया जा सकता है। हालांकि पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल के कोरोना संक्रमित होने के कारण इसमें थोड़ा सा देर हो सकती है।
केजरीवाल अपने भाषणों में कई बार भगवंत मान की जमकर तारीफ कर चुके हैं। लेकिन अब तक सवाल यही उठता था कि आखिर वह भगवंत मान को मुख्यमंत्री पद के चेहरे के तौर पर आगे क्यों नहीं कर रहे हैं।
बहरहाल, अब जब इस बारे में फैसला ले लिया गया है तो देखना होगा कि पंजाब में मान को आगे करने का क्या कोई फायदा आम आदमी पार्टी को मिलता है।
चंडीगढ़ नगर निगम के चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें मिलने के बाद आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद हैं।
जोरदार होगा मुक़ाबला
पंजाब का विधानसभा चुनाव इस बार बेहद रोमांचक और जोरदार होने जा रहा है। राज्य में सरकार चला रही कांग्रेस के सामने आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल-बीएसपी गठबंधन, बीजेपी-अमरिंदर सिंह गठबंधन और किसानों की पार्टी यानी संयुक्त समाज मोर्चा ने तगड़ी चुनौती पेश की है।
देखना होगा कि किसान आंदोलन के कारण 1 साल तक बेहद गर्म रहे पंजाब में कौन सा राजनीतिक दल अपनी सरकार बनाने में कामयाब होता है।
कुछ चुनावी सर्वे में इस बात को कहा गया है कि आम आदमी पार्टी राज्य में सबसे बड़े दल के रूप में उभर सकती है। लेकिन जिस तरह का घमासान पंजाब की राजनीति में चल रहा है, उसमें यह आशंका प्रबल है कि शायद कोई भी दल स्पष्ट बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुंचने से चूक जाए।
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