पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के कांग्रेस से इस्तीफ़ा देने के बाद पंजाब कांग्रेस में भी हलचल तेज़ हो गई है। कैप्टन के द्वारा नई पार्टी का एलान करते ही मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने विधायकों और मंत्रियों की आपात बैठक बुलाई। कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने भी चन्नी और उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा को दिल्ली बुलाकर पंजाब में पार्टी के मसलों पर बात की थी।
कांग्रेस हाईकमान की चिंता इस बात को लेकर है कि क्या अमरिंदर सिंह के साथ कांग्रेस के कुछ विधायक, मंत्री जा सकते हैं। राज्य में चार महीने के भीतर विधानसभा के चुनाव होने हैं और बीते एक साल से राज्य इकाई में घमासान चल रहा है। इससे अवाम के बीच भी संदेश ठीक नहीं गया है और प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए नवजोत सिंह सिद्धू ने भी हाईकमान को हलकान किया हुआ है।
अहम बात यह रही कि इस बैठक में नवजोत सिंह सिद्धू और पंजाब के प्रभारी हरीश चौधरी भी मौजूद रहे। इससे यह उम्मीद की जा सकती है कि सिद्धू और चन्नी के रिश्तों में आई दरार शायद अब कुछ कम हुई है। लेकिन एडवोकेट जनरल एपीएस देओल के इस्तीफ़े को लेकर अभी भी सस्पेंस बना हुआ है। सिद्धू चाहते हैं कि देओल को हटाया जाए।
चरणजीत सिंह चन्नी और सिद्धू मंगलवार को अचानक जब केदारनाथ के दर्शन करने पहुंचे तो ऐसा लगा कि अब हालात ठीक हो गए हैं। लेकिन उससे पहले चन्नी द्वारा एडवोकेट जनरल एपीएस देओल का इस्तीफ़ा नामंजूर किए जाने को लेकर पंजाब और राष्ट्रीय मीडिया में काफ़ी ख़बरें चल चुकी थीं।
सुनील जाखड़ का तंज
चन्नी और सिद्धू जब अचानक केदारनाथ में दिखाई दिए तो पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने इन पर तंज कस दिया। जाखड़ ने एक फ़ोटो ट्वीट किया, जिसमें सिद्धू और चन्नी के बीच में हरीश रावत बैठे हुए हैं। रावत पंजाब में कांग्रेस के प्रभारी रहे हैं। जाखड़ ने राजनीतिक तीर्थयात्री लिखकर तंज कसा और कहा कि हर कोई अलग देवता को ख़ुश करने की कोशिश कर रहा है।
हिंदू मतदाताओं को लुभाने की कोशिश
वैसे, चन्नी और सिद्धू का केदारनाथ दौरा पंजाब में रहने वाले 40 फ़ीसदी हिंदू मतदाताओं को अपने पाले में मज़बूती से रखने की और लोगों के बीच एकजुटता दिखाने की कोशिश भी हो सकती है। क्योंकि कैप्टन अमरिंदर सिंह के चुनाव मैदान में उतरने और किसान आंदोलन हल होने पर बीजेपी के साथ सीटों का समझौता करने की बात के बाद कांग्रेस को इस बात का डर है कि हिंदू मतदाता उससे छिटक सकते हैं। इसलिए भी शायद चन्नी और सिद्धू ने एक साथ केदारनाथ का रूख़ किया हो।
पंजाब में अगर कांग्रेस को जीत चाहिए तो उसे हर हाल में इस तरह की एकजुटता दिखानी ही होगी वरना उसका बोरिया-बिस्तर बंधने में देर नहीं लगेगी।
वापसी कर पाएगी कांग्रेस?
उधर, अपनी नई पार्टी के एलान के साथ ही एक बार फिर सिद्धू पर हमलावर होने वाले अमरिंदर सिंह के तेवरों को देखकर लगता है कि वे विधानसभा चुनाव को पूरी ताक़त के साथ लड़ेंगे। अमरिंदर के पास लंबा तजुर्बा है, कई साल तक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहने के साथ ही वह 9 साल तक मुख्यमंत्री भी रहे हैं। ऐसे में कुछ हद तक तो वे कांग्रेस को नुक़सान पहुंचाएंगे, इसमें कोई शक नहीं है लेकिन अगर चन्नी और सिद्धू एकजुट होकर लड़े तो कांग्रेस सत्ता में वापसी कर सकती है।
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