सियासत में महिलाओं की हिस्सेदारी का सवाल जोर-शोर से उठाया जाता रहा है। महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में तैंतीस फीसद नुमाइंदगी का बिल संसद में पेश भी हुआ लेकिन पास नहीं हुआ। यह सालों से लंबित है। सियासी दल महिलाओं के पक्ष में बोलते-बतियाते जरूर हैं लेकिन व्यावहारिक तौर पर ऐसा करने से गुरेज करते हैं। सियासी दलों की अपनी-अपनी सोच है और नजरिया।
लेकिन इसके अलावा वोट बैंक और जातियों का गणित भी इन सबके पीछे है। इसलिए महिलाओं के आरक्षण पर बोलते तो सब हैं लेकिन इस पर अमल करने से तमाम दल कतराते हैं।
महिलाओं के सशक्तिकरण के मुद्दे पर जब-तब नारीवादी संगठन और संस्थाएं आवाज तो उठाती हैं लेकिन महिलाओं को सियासत में आरक्षण देने के मुद्दे पर सियासी दलों को वह घेर नहीं पाती हैं। नतीजा सामने है। सभा-सेमिनारों से यह मुद्दा आगे नहीं बढ़ पाता है। हालांकि बिहार में पंचायत स्तर पर सरकार ने यह प्रयोग किया।
करीब देढ़ दशक पहले बिहार में यह प्रयोग शुरू हुआ था और कमोबेश यह सफल भी हुआ। देश के दूसरे हिस्सों में इस तरह के गंभीर प्रयास नहीं हुए।
नीतीश ने की थी शुरुआत
नीतीश कुमार ने बिहार का मुख्यमंत्री बनने के बाद पंचायत और नगर निकायों के स्तर पर महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए यह प्रयोग किया था। शुरुआत में इसे लेकर संशय की स्थिति थी कि यह कितना कामयाब होगा, कितना नाकाम लेकिन पंद्रह साल के बाद इस प्रयोग ने जमीनी स्तर पर महिलाओं को ताकत तो दी है। हालांकि इस प्रयोग में कई खामियां भी थीं।
धीरे-धीरे ही सही इन खामियों को दूर करने की कोशिश भी होती रही। बहुत हद तक इन खामियों को दूर किया गया है। अभी भी सुधार की गुंजाइश है लेकिन जो मंशा नीतीश कुमार की थी, उसमें उन्हें सफलता मिली।
यूं तो बिहार में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए लगातार कोशिशें हो रहीं हैं। हालांकि इस तरह की कोशिशों पर बहुत ज्यादा चर्चा नहीं हो पाती है। विपक्ष इस मुद्दे पर बैकफुट पर है और वह खामियों को ही गिनवाने में लगा रहता है। जाहिर है कि इन खामियों के बहाने वह सरकार को घेरने की हर मुमकिन कोशिश करता है।
अब नीतीश कुमार ने एक और बड़ी लकीर खींच कर बिहार ही नहीं देश के दूसरे राज्यों के सियासी दलों को चुनौती तो दे ही डाली है। इसे जेडीयू का एक बड़ा कदम भी माना जा रहा है।
संसद और विधानसभा में भले ही तैंतीस फीसद आरक्षण को लेकर जेडीयू ने बहुत कुछ नहीं किया है लेकिन संगठन में महिलाओं की हिस्सेदारी 33 फीसद कर पार्टी ने एक संदेश तो दिया ही है।
पार्टी ने महिलाओं की हिस्सेदारी तैंतीस फीसद संगठन में कर अपने एक तीर से कई निशाने साधे। यह पहला मौका है जब किसी दल ने अपनी प्रदेश कमेटी में 33 फीसद से अधिक महिलाओं को जगह दी है। जेडीयू के इस फैसले से 72 महिलाएं पार्टी की पदाधिकारी बनी हैं।
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कुल 29 उपाध्यक्ष बनाए गए हैं, इनमें नौ महिलाएं हैं। साठ प्रदेश महासचिव बनाए गए हैं। इनमें महिलाओं की तादाद चौदह है, तो 114 सचिवों में महिलाओं की तादाद चालीस है। पार्टी ने एक महिला सहित सात लोगों को प्रवक्ता बनाया है।
बिहार चुनाव के दौरान महिलाओं की हिस्सेदारी भी बढ़ी है। महिलाएं बड़ी तादाद में घरों से बाहर निकलती हैं और वोट डालती हैं। वोटिंग के दिन महिलाओं की कतार को देख नीतीश कुमार के वोट बैंक की चर्चा भी की जाती रही है।
बीजेपी में बेचैनी
वैसे, जेडीयू के इस कदम से उसके सहयोगी दल बीजेपी में ज्यादा बेचैनी है क्योंकि उसके संगठन में महिलाओं की हिस्सेदारी न के बराबर है। कमोबेश यही स्थिति दूसरे दलों में भी है। देर-सवेर सियासत में इसका जिक्र होगा और महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए सियासी दलों पर दबाव तो बना ही है।
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