कांग्रेस की कुछ राज्य इकाइयों में चल रहे सियासी बवाल पर उसकी खिल्ली उड़ाने वाली बीजेपी को अपने घर में भी थोड़ा झांक लेना चाहिए। उत्तर प्रदेश में क्या हो रहा है, यह किसी से छुपा नहीं है, जहां एक राज्य के मुख्यमंत्री की लोकप्रियता की टक्कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से होने की चर्चाओं से पार्टी सहमी हुई है।
राजस्थान बीजेपी में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने राज्य बीजेपी के बाक़ी दिग्गजों के छक्के छुड़ाए हुए हैं, कर्नाटक में येदियुरप्पा के ख़िलाफ़ आए दिन उनके विरोधी मोर्चा खोले रहते हैं, मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ख़िलाफ़ गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा और बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की सियासी जुगलबंदी बीते दिनों परवान चढ़ती देखी गई थी।
अब इन राज्यों की फेहरिस्त में नया नाम गुजरात का जुड़ा है। उस गुजरात का जहां से बीजेपी और मरकज़ी हुक़ूमत की दो ताक़तवर शख्सियतें आती हैं यानी कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह। गुजरात बीजेपी में प्रदेश के अध्यक्ष सीआर पाटिल और मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के दरमियान सियासी रण होने की ख़बर राजनीतिक कॉरिडोर में सरेआम है।
कौन किसका क़रीबी है?
पहले यह समझना होगा कि रूपाणी और पाटिल में से कौन किसके क़रीब है। रूपाणी को गृह मंत्री अमित शाह का क़रीबी माना जाता है, कहा ये भी जाता है कि बिना शाह की हरी झंडी के गुजरात सरकार में कोई फ़ाइल आगे नहीं बढ़ती। जबकि पाटिल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद माना जाता है।
गुजरात के विधानसभा चुनाव में महज डेढ़ साल का वक़्त बचा है। ऐसे में पार्टी ने चुनावी तैयारी शुरू कर दी है लेकिन रूपाणी बनाम पाटिल के बीच चल रही सियासी खींचतान उसे मुश्किल में डाल रही है।
मोदी की पाटिल संग बैठक
एक ताज़ा वाक़या देखिए। 19 मई को मोदी गुजरात दौरे पर आए थे और उन्होंने रूपाणी के साथ ताउते तूफ़ान से प्रभावित राज्य के इलाक़ों का हवाई सर्वे किया था।
इंडिया टुडे के मुताबिक़, इसके बाद मोदी ने सीआर पाटिल के साथ अलग से बैठक की और इससे रूपाणी को दूर रखा गया। ऐसा करके यह राजनीतिक पैगाम देने की कोशिश की गई कि पाटिल की मोदी तक सीधी राजनीतिक पहुंच है और मोदी का समर्थन भी उन्हें हासिल है।
रूपाणी समर्थकों की शिकायत
मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के समर्थक कहते हैं कि पाटिल ने संगठन पर कब्जा कर लिया है और वे रूपाणी को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करते हैं। 10 अप्रैल को जब सीआर पाटिल ने रेमेडिसिवर इंजेक्शन के 5 हज़ार वाइल बांटे थे तो इसे लेकर काफी शोर हुआ था कि उनके पास इतने सारे वाइल कहां से आए। जब इस बारे में पत्रकारों ने रूपाणी से पूछा तो उन्होंने कहा कि वे लोग पाटिल से ही पूछें।
इंडिया टुडे के मुताबिक़, रूपाणी ही नहीं अमित शाह के कुछ और क़रीबियों जैसे- प्रदीप सिंह जडेजा, सुरेंद्र पटेल और शंकर चौधरी की सियासी अहमियत भी कम हुई है।
फरवरी में हुए नगर निगम चुनाव में जब बीजेपी को अच्छी कामयाबी हासिल हुई तो इसका क्रेडिट बीजेपी सरकार से ज़्यादा संगठन को मिलने की बात कही गई और उसके बाद से इन दोनों नेताओं के बीच की दूरियां और बढ़ी हैं।
सीआर पाटिल की कहानी
पाटिल के बारे में कहा जाता है कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की शानदार जीत के रचियता वही थे। इसका इनाम देते हुए उन्हें गुजरात बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया था। पाटिल गुजरात के नवासारी से सांसद हैं और राजनीति में आने से पहले वह पुलिस में कांस्टेबल थे। लेकिन 1989 में वे बीजेपी में शामिल हो गए और कुछ ही सालों में नरेंद्र मोदी के क़रीबी बन गए। उन दिनों मोदी गुजरात बीजेपी के महासचिव हुआ करते थे।
बीजेपी के लिए कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी भी थोड़ी चिंता का सबब बनी हुई है। आम आदमी पार्टी को सूरत नगर निगम के चुनाव में 27 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।
मोदी-शाह के क़रीबी माने जाने वाले और बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव गुजरात के प्रभारी हैं और वह 2022 के चुनाव के लिए पार्टी की कोर कमेटी के साथ लगातार बैठक कर रहे हैं। यादव राज्य में सरकार और संगठन के बीच बढ़ती दूरियों को कम करने में जुटे हैं।
हालांकि प्रदेश बीजेपी का कहना है कि उनके वहां ऐसा कोई झगड़ा नहीं है।
गुजरात में कांग्रेस के विधायकों को थोक में अपनी पार्टी में शामिल करने वाली बीजेपी जानती है कि हालांकि वह राज्य में काफी अच्छी हालत में है लेकिन इन दोनों नेताओं की आपसी लड़ाई से पार्टी को चुनाव आने तक नुक़सान हो सकता है। वैसे, ये दोनों नेता तो सिर्फ़ प्यादे हैं, मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वही शख़्स बैठेगा जिसे मोदी-शाह दोनों की हिमायत हासिल हो।
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