बीजेपी 2024 के आम चुनाव को लेकर यूपी में चिंतित दिखाई दे रही है।
यूपी की 14 लोकसभा सीटों पर बीजेपी ने जबरदस्त ढंग से तैयारी शुरू कर दी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कमान अपने हाथ में ले ली है। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में पूरब यानी पूर्वी उत्तर प्रदेश में 22 सीटें ऐसी थीं, जहां उसे एक भी सीट नसीब नहीं हुई थीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की यूपी में पिछले चुनाव यानी 2014 के मुकाबले 14 सीटें कम आईं थीं। हालांकि 2022 में यूपी में जो भी विधानसभा-लोकसभा उपचुनाव हुए उसमें मैनपुरी को छोड़कर बीजेपी ने सभी जगह बेहतर प्रदर्शन किया। हालांकि रामपुर की जीत की हकीकत बीजेपी अच्छी तरह जानती है।
यूपी विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी की एक कमेटी ने 82 पेज की रिपोर्ट पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को भेजी थी। जिसमें कहा गया था कि गाजीपुर, आंबेडकर नगर और आजमगढ़ में पिछड़ों के वोट पूरी तरह से बीजेपी को ट्रांसफर नहीं हो पाए। इसके लिए अपना दल और संजय निषाद की निषाद समाज पार्टी को जिम्मेदार ठहराया गया। इसके बनिस्बत ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदव समाज पार्टी ने अपना वोट सपा में ट्रांसफर करा दिया और सपा इन तीनों जिलों में सारी सीटें ले गईं। अभी जब ओमप्रकाश राजभर की बीजेपी में वापसी की जो खबरें आईं हैं, उसको इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। यानी बीजेपी 2019 और 2022 की गलतियों को सुधारने में जुटी हुई है। राजभर का बीजेपी से हाथ मिलाना निश्चित रूप से उसे मदद करेगा। इससे यह भी साबित हो रहा है कि ओमप्रकाश राजभर अपने कोर वोटर को किसी भी पार्टी में ट्रांसफर करा सकते हैं।
ताजा ख़बरें
पूर्वी उत्तर प्रदेश में आंबेडकर नगर, आजमगढ़, गाजीपुर तीन ऐसे जिले थे, जिसमें बीजेपी की हालत बाकी जगहों से खराब है। हालांकि 2022 में आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी ने जीत हासिल की थी, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 22 सीटों में एक पर भी जीत हासिल नहीं कर सकी थी। आजमगढ़ और रामपुर में बीजेपी ने लोकसभा उपचुनाव जीता और उसका बहुत बड़े पैमाने पर यादव किला ढहने और पूर्व मंत्री आजम खान का वर्चस्व ध्वस्त होने जैसा प्रचार हुआ। लेकिन बीजेपी को अंदरुनी स्थिति मालूम है। आजमगढ़ उपचुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव प्रचार के लिए नहीं पहुंचे। आजम खान तकनीकी आधार पर चुनाव नहीं लड़ सके और उन्होंने भी अखिलेश की तरह ही रामपुर लोकसभा सीट को अपने खानदान से जाता हुआ देखने की रणनीति पता नहीं क्यों अपनाई। 2024 के चुनाव में रामपुर फिर से आजम खान और अखिलेश के लिए एसिट टेस्ट साबित होने जा रहा है।
2019 के आम चुनावों में यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 64 पर जीत हासिल की थी और विपक्ष को 16 सीटें मिली थीं। जिनमें बीएसपी की 10, सपा की 5 और कांग्रेस की इकलौती रायबरेली सीट थी। 2019 आम चुनाव में सपा-बीएसपी ने मिलकर चुनाव लड़ा था। अब दोनों का गठबंधन खत्म है। अब सपा-आरएलडी यानी जयंत चौधरी की रालोद का गठबंधन है। लेकिन रालोद मुख्यरूप से पश्चिमी यूपी की पार्टी है, इसलिए इस गठबंधन का पूरे यूपी के लिए कोई महत्व नहीं है।
पूर्वी और पश्चिमी यूपी की 14 सीटों में सहारनपुर, बिजनौर, नगीना (एससी), मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, मैनपुरी, रायबरेली, अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, लालगंज (एससी), घोसी, जौनपुर और गाजीपुर ऐसी हैं, जहां बीजेपी 2019 में हारी थी।
क्या है रणनीतिः अमित शाह 20, 26, 27 और 30 जनवरी को पूर्वी यूपी का दौरा करेंगे। पार्टी ने पूर्वी यूपी में उन लाभार्थियों से बातचीत की योजना बनाई है, जिन्हें तमाम सरकारी स्कीमों के तहत वास्तविक रूप में फायदा हुआ है। इनसे बातचीत के जरिए आम चुनाव के लिए माहौल बनाया जाएगा।
सांसदों के प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं
यूपी की 14 हारी सीटों के मद्देनजर बीजेपी की हैदराबाद बैठक में मुख्य रूप से मंडल और बूथ स्तर पर जमीनी स्तर पर नेटवर्क को मजबूत करने की रणनीति तैयार की गई। सभी 14 सीटों पर 'विस्तारकों' के अलावा समर्पित कार्यकर्ताओं को जमीन पर उतारने का फैसला किया गया। इसमें दूसरे राज्यों से समर्पित कार्यकर्ता भेजे जाएंगे। सरकारी योजनाओं से लाभार्थियों से माइक्रो लेवल पर संपर्क बनाया जाएगा। बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व यूपी के कई मौजूदा सांसदों के प्रदर्शन से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। इसलिए अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और संगठन ने कमान अपने हाथ में ले ली है। इन सीटों पर कई केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी भेजा जाएगा।
राजनीति से और खबरें
अमित शाह 2024 के नजरिए से पूर्वी और पश्चिमी दोनों क्षेत्रों को कवर करते हुए राज्य का दौरा करेंगे। 20 जनवरी को पहली जनसभा गाजीपुर में रखी गई है। इससे पहले बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष और उपाध्यक्ष राधा मोहन सिंह राज्य का दौरा पूरा करके गए हैं। सूत्रों का कहना है कि इन नेताओं ने राज्य के नेताओं से स्पष्ट किया है कि उपचुनाव, पंचायत चुनाव और एमएलसी चुनाव में बीजेपी की जीत से लोकसभा चुनाव की तुलना नहीं की जाए। इन चुनावों में मिली जीत से आम चुनाव की तुलना नहीं की जा सकती। इसलिए सावधानी की जरूरत है।
अपनी राय बतायें