पटना से निकलकर बेहद कम वक़्त में मुंबई में अपनी पहचान कायम करने वाले फ़िल्म अभिनेता सुशात सिंह राजपूत की आत्महत्या पर देश का हर संजीदा व्यक्ति ग़म में है। सभी चाहते हैं कि उसे न्याय मिले। लेकिन पता भी नहीं चला और सुशांत को न्याय दिलाने का यह मुद्दा राजनीतिक बना दिया गया।
सुशांत की आत्महत्या की सीबीआई जांच की मांग को लेकर बिहार और महाराष्ट्र आमने-सामने हैं। कई दिनों तक दोनों राज्यों में तकरार चलती रही और मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा। सुनवाई पूरी हो चुकी है और फ़ैसला आना बाक़ी है। सवाल यह है कि इस पूरे मामले को बिहार बनाम महाराष्ट्र बनाया किसने, आसान जवाब है- नेताओं ने।
अब बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को बीजेपी की ओर से बिहार में बड़ी जिम्मेदारी देने की बात कही गई है। कहा गया है कि राज्य में चुनावी रणनीति बनाने का नाम फडणवीस ही करेंगे और उन्हें राज्य के प्रभारी जैसा अहम दायित्व दिया जा सकता है।
बीजेपी ने बनाया मुद्दा
महाराष्ट्र के अलावा किसी और राज्य के नेता को यह जिम्मेदारी दी जाती तो सवाल नहीं उठते। लेकिन सवाल ज़रूर उठेंगे क्योंकि बीजेपी पिछले एक महीने में सोशल मीडिया पर सुशांत की आत्महत्या मामले की सीबीआई जांच को बिहार के स्वाभिमान से जोड़कर मुद्दा बनाती रही और इसकी जांच मुंबई पुलिस से वापस लेने की मांग पुरजोर ढंग से करती रही।
बिहार बीजेपी ने छेड़ा था युद्ध
और जब महाराष्ट्र सरकार की ओर से जोर देकर कहा गया कि मुंबई पुलिस इसकी जांच करने में सक्षम है तो बिहार सरकार में शामिल बीजेपी के दर्जनों विधायकों, मंत्रियों व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी, बीजेपी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल, सांसदों सहित तमाम नेताओं ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर इस मामले की सीबीआई जांच कराने को लेकर युद्ध छेड़ दिया था।
बीजेपी ने पूरी कोशिश की है कि सुशांत के मुद्दे को इस कदर गरमा दिया जाए कि इसे बिहार के हर व्यक्ति का पहला मुद्दा बना दिया जाए और विधानसभा चुनाव तक इसे गर्माकर रखा जाए। इस काम के लिए महाराष्ट्र के किसी नेता की ज़रूरत थी और वह तलाश फडणवीस पर आकर ख़त्म हुई।
सिर्फ सुशांत याद रहे!
भले ही बिहार में लोगों को रोज़गार का अकाल, लॉकडाउन की मार, बदहाल स्वास्थ्य सुविधाएं, उद्घाटन से पहले टूटते पुलों, बारिश, बाढ़ जैसी समस्याओं से जूझना और इनके कारण दो वक्त की रोटी जुटाना भारी पड़ रहा हो लेकिन जहां तक मोबाइल और टीवी की पहुंच है, कोशिश है कि आदमी को सब भुलाकर सिर्फ सुशांत की माला रटाई जाए।
एक तीर से दो शिकार
जानकारों के अनुसार, बीजेपी को सुशांत मामले में दो राजनीतिक फ़ायदे दिखते हैं। पहला, वह बिहारवासियों को यह बताना चाहती है कि वह एक बिहारी युवा की लड़ाई लड़ रही है और दूसरा इससे महाराष्ट्र में रह रहे लाखों बिहारवासियों की सहानुभूति हासिल कर उन्हें भी वह अपने पक्ष में कर सकेगी।
सुशांत का ही सहारा है?
अब सवाल यह है कि क्या लगभग 15 साल से (दो-ढाई साल छोड़कर) साथ-साथ सरकार चला रहे जेडीयू और बीजेपी को इस बात का बिलकुल भरोसा नहीं है कि वे अपने काम के दम पर इस विधानसभा चुनाव में फतह हासिल कर पाएंगे। लगता तो ऐसा ही है क्योंकि 5 साल तक सरकार चलाने के बाद हर मुख्यमंत्री और उसके मंत्री जनता को बताते हैं कि उन्होंने जन कल्याण के लिए ये-ये काम किये।
लेकिन यहां तो बिहार की पूरी राजनीति सुशांत पर आकर टिक गई है और 9 करोड़ लोगों के माली हालात, युवाओं के रोज़गार, बच्चों की एजुकेशन, सड़क, सुरक्षा, अस्पताल, किसान, ग़रीब की कोई बात दूर-दूर तक होती नहीं दिख रही है।
जेडीयू और बीजेपी दोनों का ही जोर सुशांत को मुद्दा बनाने में रहा लेकिन बीजेपी ने तो सारी सीमाएं ही लांघ दी।
बीजेपी ने देवेंद्र फडणवीस को बिहार में अहम जिम्मेदारी देने की बात कहकर साफ कर दिया है कि बिहार में रोटी-रोज़गार, दवा-भोजन, स्वास्थ्य-सुरक्षा, किसान-ग़रीब पर कोई बात नहीं होगी, बात होगी तो सिर्फ सुशांत पर। कमाल है!
भावनात्मक मुद्दा बनाने की कोशिश
बीजेपी पूरे बिहार के चुनाव के दौरान यही साबित करेगी कि महाराष्ट्र की सरकार में भागीदार कांग्रेस और तमाम विपक्षी दल सुशांत मामले की सीबीआई जांच में रोड़ा अटकाते रहे जबकि उसने और जेडीयू ने यह लड़ाई लड़ी और हो सकता है कि जिस तरह कुछ टीवी चैनलों ने सुशांत को न्याय दिलाने के बजाय इसका तमाशा बना दिया है, लोग भावनाओं में बहकर एनडीए को वोट दे भी दें। बस, यही तो रणनीति है।
फडणवीस के अनुभव पर सवाल
हालांकि यह बीजेपी का आंतरिक मामला है कि वह किस नेता को किस राज्य की जिम्मेदारी दे लेकिन जब बिहार जैसा अहम प्रदेश जिसके प्रवासी दूसरे राज्य में भी बड़ी संख्या में फैले हुए हैं, वहां फडणवीस को बड़ी जिम्मेदारी देने की बात आएगी तो पूछा जाएगा कि क्या फडणवीस के पास महाराष्ट्र से बाहर संगठन के काम का कोई अनुभव है जो उन्हें राजनीतिक लिहाज से इतने अहम प्रदेश में उतारा जा रहा है। फिर सवाल ज़रूर खड़ा होगा कि फडणवीस को ही क्यों सामने किया गया।
इसका जवाब भी आसान है। क्योंकि महाराष्ट्र बीजेपी में फडणवीस ही ऐसे चेहरे हैं जो इस मामले की सीबीआई जांच को लेकर सबसे ज़्यादा मुखर रहे और मीडिया की सुर्खियां बटोरते रहे। फडणवीस ने कहा था कि सुशांत मामले को सीबीआई को सौंपने को लेकर 'विशाल जन भावना' है लेकिन राज्य की महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार ऐसा नहीं कर रही है।
फडणवीस द्वारा इस मुद्दे को लगातार उठाए जाने को देखते हुए बीजेपी ने उन्हें बिहार में अहम जिम्मेदारी देने का दांव खेल दिया। अब तो यह सवाल खड़ा होगा ही कि सुशांत मामले में बीजेपी क्या राजनीति नहीं कर रही है।
फडणवीस ने कभी महाराष्ट्र की राजनीति से बाहर क़दम नहीं रखा और 2014 में मुख्यमंत्री बनने से पहले शायद ही राज्य से बाहर के लोगों ने उनका नाम सुना था। वह महाराष्ट्र में ही राजनीति करते रहे हैं और वहां से बाहर कभी नहीं निकले। अचानक से बिहार और महाराष्ट्र के बीच बेवजह का मुद्दा बना दिए गए सुशांत की आत्महत्या को बीजेपी फडणवीस के बहाने बिहार चुनाव में भुनाना चाहती है, ऐसा राजनीति के जानकारों का कहना है।
मुसीबतों पर बात नहीं होगी!
भले ही कुछ भी हो लेकिन यह तय है कि इस बार बिहार में वहां के लोगों की मुफलिसी, मुसीबतों पर बात नहीं होगी, बात होगी तो सिर्फ सुशांत पर क्योंकि राज्य में सरकार चला रही बीजेपी और उसकी सहयोगी जेडीयू ने मिलकर शायद यही तय किया है कि बिहार जीतना है तो सुशांत के नाम से अच्छा और आसान सहारा, शायद दूसरा नहीं हो सकता।
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