महाराष्ट्र की सियासत में ये क्या गड़बड़झाला चल रहा है कि शिव सेना उद्धव सरकार में सहयोगी एनसीपी के प्रमुख शरद पवार की तारीफ़ में कसीदे काढ़ रही है। बात पवार की तारीफ़ तक सीमित हो तो कोई बात नहीं लेकिन वह यूपीए अध्यक्ष के लिए पवार के नाम की जोरदार हिमायत कर रही है और इससे राजनीतिक विश्लेषकों के कान खड़े हो गए हैं।
दो लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस की स्थिति बेहद ख़राब है, ऊपर से स्थायी अध्यक्ष और आंतरिक चुनाव की मांग को लेकर पार्टी में चल रहा घमासान अंदरखाने जारी है। हालांकि कुछ दिन पहले पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने असंतुष्टों के साथ बैठक की है और यह समझने की कोशिश की है कि आख़िर दिक्कत कहां पर है। लेकिन कांग्रेस की मुश्किल शिव सेना का ये स्टैंड है कि यूपीए अध्यक्ष के लिए शरद पवार सबसे योग्य व्यक्ति हैं। शिव सेना ने यह बात अपने मुखपत्र सामना के ताज़ा संपादकीय में कही है।
शिव सेना का कहना है कि विपक्षी दल तब तक ताक़तवर नहीं हो सकते जब तक वे सभी साथ नहीं आ जाते। संपादकीय में कहा गया है, ‘प्रियंका गांधी को दिल्ली में हिरासत में ले लिया गया, राहुल गांधी का देश भर में मजाक उड़ाया जा रहा है और महाराष्ट्र सरकार को उसका काम करने से रोका जा रहा है। यह लोकतंत्र नहीं है।’
किसानों के आंदोलन का जिक्र करते हुए शिव सेना ने कहा है कि आंदोलन को एक महीना पूरा हो चुका है लेकिन केंद्र सरकार को कोई परवाह नहीं है और ऐसा इसलिए है क्योंकि इस देश का विपक्ष कमजोर है।
संपादकीय कहता है कि विपक्ष की हालत किसी बंजर गांव की तरह है और इसे फिर से ताक़तवर होने के लिए किसी नए नेता की ज़रूरत है।
देखिए, महाराष्ट्र की सियासत पर चर्चा-
शिव सेना ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए पर हमला बोला है। पार्टी ने कहा है कि यूपीए को देखकर ऐसा लगता है कि यह एक एनजीओ है और एनसीपी को छोड़कर इसमें शामिल बाक़ी दलों को देखकर लगता है कि वे किसान आंदोलन को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
संपादकीय आगे कहता है कि शरद पवार राष्ट्रीय स्तर पर एक ताक़तवर शख़्सियत हैं और यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी भी उन्हें सुनते हैं और उनके अनुभवों से सीख लेते हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भी तारीफ शिव सेना ने की है और कहा है कि वह पश्चिम बंगाल में अकेले ही लड़ रही हैं।
शिव सेना ने कहा है कि राहुल गांधी व्यक्तिगत रूप से जोरदार संघर्ष करते रहते हैं और उनकी मेहनत बखान करने जैसी है लेकिन कहीं तो कुछ कमी ज़रूर है।
संपादकीय में कहा गया है, ‘तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, शिरोमणि अकाली दल, बीएसपी, एसपी, वाईएसआर कांग्रेस, टीआरएस, बीजेडी और जेडीएस जैसे कई दल बीजेपी के विरोध में हैं। लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व में वे यूपीए में शामिल नहीं हुए हैं। जब तक ये बीजेपी विरोधी यूपीए में शामिल नहीं होंगे, विरोधी दल का बाण सरकार को भेद नहीं पाएगा।’
क्या कारण हो सकता है?
अब सवाल यह उठता है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ सरकार में शामिल शिव सेना बार-बार यूपीए अध्यक्ष के लिए पवार के नाम की चर्चा करके क्या संकेत देना चाहती है। क्योंकि कुछ दिन पहले ही शिव सेना सांसद संजय राउत ने कहा था कि कांग्रेस अब कमजोर हो चुकी है इसलिए विपक्षी दलों को साथ आने और यूपीए को मजबूत करने की ज़रूरत है।
‘पवार के क़द का नेता नहीं’
राउत ने कहा था, ‘अगर एनसीपी मुखिया शरद पवार को यूपीए का चेयरपर्सन बनाने का कोई प्रस्ताव आता है तो शिव सेना उसका स्वागत करेगी।’ राउत ने पवार की हिमायत में आगे कहा था, ‘कांग्रेस की क्षमता सीमित है। क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दल शरद पवार को अपना नेता मानते हैं। मुझे नहीं लगता कि उनके क़द का कोई और नेता है।’
हालांकि तब एनसीपी की ओर से कहा गया था कि यह सब मीडिया में आई बेबुनियाद चर्चाएं हैं और इस मसले पर यूपीए में शामिल दलों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई है।कांग्रेस को शिव सेना की यह टिप्पणी नागवार गुजरी थी। मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरूपम ने ट्वीट कर राउत के बयान पर कहा था कि दिल्ली से मुंबई तक राहुल गांधी के ख़िलाफ़ जो अभियान चल रहा है, शरद पवार को यूपीए का चेयरपर्सन बनाने का शिगूफा उसी का हिस्सा है।
इसके अलावा इसी महीने जब शरद पवार ने कहा था कि राहुल गांधी में एकाग्रता की कमी है, तब भी कांग्रेस की ओर से इस पर सख़्त एतराज जताया गया था और इसे लेकर भी कई तरह की चर्चाएं राजनीतिक गलियारों में हुई थीं।
अब सवाल यह उठता है कि क्या शिव सेना और एनसीपी इस बात को नहीं जानते कि इस तरह की चर्चाओं से कांग्रेस नाराज़ हो सकती है। और अगर उसने सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो महा विकास अघाडी की सरकार का गिरना तय है जबकि ख़ुद शरद पवार और उद्धव ठाकरे कहते हैं कि ये सरकार लंबे वक़्त तक चलेगी।
महा विकास अघाडी की सरकार में शामिल कांग्रेस राष्ट्रीय दल तो है ही, देश भर में उसके पास कार्यकर्ताओं का बड़ा नेटवर्क है जबकि एनसीपी और शिव सेना की महाराष्ट्र के बाहर की राजनीति में नाम मात्र की हाज़िरी है।
लेकिन महाराष्ट्र की सियासत में पिछले एक साल में जिस तरह ठाकरे सरकार चली है, उससे ऐसा लगता है कि कांग्रेस को वो सियासी अहमियत नहीं मिलती, जिसकी वह हक़दार है। ऐसे में शिव सेना द्वारा यूपीए अध्यक्ष के लिए पवार का समर्थन क्या कांग्रेस नेतृत्व को नीचा दिखाने की कोशिश है, इस सवाल का जवाब खोजा जा रहा है।
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