क्या भारत, तालिबान बनने की राह पर है? या यह इस्लामिक स्टेट या अल क़ायदा की तरह की ज़मीन बन रही है? या फिर नक्सलवाद पूरे देश में फैल रहा है? ये वे संगठन हैं जिनकी आस्था किसी क़ानून में नहीं है। ये अपने हिसाब से तय करते हैं कि किसको सजा देनी है और किसका सिर क़लम करना है? किसकी जान लेनी है और किसको ज़िंदा रहना है? आपने वे तस्वीरें देखी होंगी जिनमें सिर पर बंदूक लगाकर आदमी का क़त्ल करते दिखाया जाता है। और बाद में इसको जिहाद या फिर सरकार के दमन के नाम पर सही ठहराया जाता है। ये तस्वीरें हमें अंदर तक हिला देती हैं। डराती हैं। क्योंकि ये जुनूनी लोग हैं, जो धर्म के नाम पर, विचारधारा के नाम पर क़त्ल कर रहे हैं। इनकी नज़र में सच वह है जो ये समझते हैं और जो इनसे सहमत नहीं हैं या उनकी आलोचना करते हैं, उन्हें जीने का अधिकार नहीं देते। मौत के घाट उतार देते हैं। सभ्य समाज इन्हें आतंकवादी कहता है।
Govind Pansare, Gauri Lankesh, MM Kalburgi, and Narendra Dabholkar
चार बुद्धिजीवियों की हुई हत्या
आपको लग रहा होगा कि मैं क्या उलजुलूल कह रहा हूँ। आख़िर भारत में ऐसी कौन सी आफ़त आ गई है? आफ़त आई नहीं है, उसकी आहट सुनाई देने लगी है। पिछले कुछ सालों में चार बड़े बुद्धिजीवियों की हत्या की गई। गौरी लंकेश का मामला सबसे बाद का है। उनसे पहले के. एम. कलबुर्गी, गोविंद पानसरे और नरेंद्र डाभोलकर को भी मौत के घाट उतार दिया गया। उनका क़सूर बस इतना था कि वे हिंदू धर्म की उन मान्यताओं के ख़िलाफ़ बोलते थे जिन्हें वे दक़ियानूसी मानते थे। यह बात उनके क़ातिलों को पसंद नहीं आईं लिहाज़ा उनको जान से मार दिया गया। ये चारों लोग समाज में प्रतिष्ठित थे। उनका बड़ा नाम था पर उन्हें हिंदू धर्म के ख़िलाफ़ बताया गया। ये सारे लोग हिंदू धर्म की दक़ियानूसी मान्यताओं के बरक्स सुधार की वकालत करते थे।
बड़े ख़तरे की तरफ इशारा
अब उनकी हत्या की जाँच में कुछ हैरतअंगेज़ जानकारियाँ सामने आ रही हैं जो सिर्फ़ चौंकाती नहीं हैं बल्कि एक बड़े ख़तरे की तरफ इशारा भी करती हैं। गौरी लंकेश की हत्या की जाँच के लिए बनी एसआईटी ने 18 लोगों की पहचान की है जिसमें से 16 लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है। असली क़ातिल परशुराम वाघमारे को भी पकड़ लिया गया है। ये सब लोग उग्रवादी संगठन सनातन संस्था से जुड़े हैं। इसके संस्थापक जयंत आठवले हैं। सनातन संस्था का हाथ कलबुर्गी, पानसरे और डाभोलकर की हत्या में भी आने लगा है। यह संस्था हिंदूवाद की बात करती है। आदर्श हिंदू राज स्थापित करना चाहती है। इसका मुख्यालय गोवा में है।हत्या में है संस्था का यक़ीन
अब पुलिस जाँच में यह बात पता चली है कि यह संस्था हत्या में यक़ीन रखती है और इस बारे में बाक़ायदा एक गाइडलाइन भी बना रखी है। ‘क्षात्र धर्म साधना’ के नाम से एक पुस्तिका भी है जो ऑनलाइन भी उपलब्ध है। इस पुस्तिका में क़त्ल की न केवल रूपरेखा स्थापित की गई है बल्कि उसका एक पुष्ट तर्क भी दिया गया है कि क्यों ऐसे लोगों की हत्या ज़रूरी है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़ जाँच अधिकारी का कहना है कि इस संस्था के लोग ऐसे लोगों को टार्गेट करते हैं जिनको ये अपनी आस्था और विचारधारा के दुश्मन मानते हैं। अगस्त 2016 में इस संस्था के प्रमुख लोगों की एक मीटिंग हुई और गौरी लंकेश को उनके लेखों और भाषणों के आधार पर दुर्जन घोषित कर दिया गया। फिर सब लोगों ने बैठ कर तय किया कि गौरी लंकेश को कैसे मारा जाएगा।
यह किताब हिंसा को सही ठहराती है और उसे धर्म और समाज की रक्षा के नाम से जोड़ती है और एक तरह से मान कर चलती है कि कलियुग में कोई युद्ध चल रहा है। ‘क्षात्र धर्म साधना’ किताब में दुर्जन की परिभाषा दी गई है। यह कहा गया है कि धन और सेक्स की वजह से समाज का नाश हो रहा है, स्थापित मूल्य ख़त्म हो रहे हैं जिससे लोगों में सघन निराशा घर कर रही है। आज इस बात की आवश्यकता है कि समाज को बचाया जाए। किताब में यह साफ़ कहा गया है कि अब समाज में राक्षस नहीं होते बल्कि वे दुर्जन के रूप में मिलते हैं। ये दुर्जन कीड़े-मकोड़ों की तरह से समाज को नष्ट कर रहे हैं। अगर इन कीड़ों को नहीं मारा गया तो पूरा समाज ही ख़त्म हो जाएगा। इसलिए खुद को बचाने के लिए इन दुर्जनों को मारना ज़रूरी है। वे दुर्जनों की हत्या को पाप नहीं मानते।किताब मौजूदा हालात की तुलना फ़्रांसीसी क्रांति के समय से करती है। वह कहती है इस समय देश में वैसे ही हालात हैं। जैसे फ़्रांसीसी क्रांति के समय दुर्जनों का कत्ल किया गया, वैसे ही आज यह ज़रूरी है। जो दुर्जनों के सहमतिकार हैं, वे भी दुर्जन है और उन्हें भी नहीं बख़्शना चाहिये। धर्मयुद्ध में यह जायज़ है। तत्व और धर्म की स्थापना के लिए यह करना पड़ता है।
किताब में कहा गया है कि हमारा धर्मयुद्ध 65% भाग आध्यात्मिक और 30% भाग मनोवैज्ञानिक लड़ाई से जीता जाएगा लेकिन 5% हिस्सा शारीरिक विधि से जीतना होगा।
किताब बेहिचक कहती है कि 100 में से 5 लोगों को शारीरिक हिंसा करने की ट्रेनिंग दी जाएगी। यह भी कहा गया है कि धर्म की स्थापना के लिए हिंसा, हिंसा नहीं होती बल्कि वह अहिंसा होती है।
क्यों नहीं लगाया जाता प्रतिबंध?
ऐसे में, अब सवाल यह है कि जब इस संस्था के बारे में इतनी जानकारी उपलब्ध है तो फिर इस पर प्रतिबंध क्यों नही लगता? इनके नेता कैसे खुलेआम घूम रहे हैं? यह किताब ऑनलाइन उपलब्ध है तो इसे रोका क्यों नहीं जा रहा है? यह संभव ही नहीं है कि ऐसे संगठन बिना किसी प्रश्रय के फले-फूलें। यह बड़े ख़तरे का संकेत है। सभ्य समाज में किसी को भी क़त्ल करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती। और अगर ऐसे विचारों पर रोक न लगे तो फिर देश को तालिबान बनने में देर नहीं लगती। ऐसी संस्थाओं पर अंकुश न लगने के कारण ही अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान आज धार्मिक कठमुल्लों की चपेट में हैं, और ये मुल्क आतंकवादियों के अड्डे बन गए हैं जहाँ सभ्य समाज ने दम तोड़ दिया है।
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