लोकसभा चुनाव में ज़बरदस्त हार के पाँच महीने बाद भी कांग्रेस हार के कारणों का विश्लेषण नहीं कर पाई है, बल्कि अभी भी पार्टी में इस बात पर चर्चा चल रही है कि ऐसा क्यों नहीं हो पाया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने कहा है कि हार के कारणों की समीक्षा इसलिए नहीं हो पाई क्योंकि राहुल गाँधी 'छोड़कर चले गए' और पार्टी में खालीपन आ गया। क्या इसका यह मतलब है कि कांग्रेस में सबकुछ राहुल के भरोसे था या है? यदि ऐसा नहीं है तो क्या कांग्रेस में वैसा काम भी इतनी धीमी गति से होता है जिसमें उसके अस्तित्व की लड़ाई का सवाल हो?
यूपीए सरकार में विदेश मंत्री रहे सलमान खुर्शीद ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' से कहा कि वह पार्टी में उस अस्थायी व्यवस्था से ख़ुश नहीं थे जिसमें सोनिया गाँधी को अंतरिम अध्यक्ष चुना गया। उन्होंने कहा कि वह अपनी व्यथा को इसलिए बता रहे हैं कि कहीं तो यह सुनी जाएगी।
खुर्शीद की यह प्रतिक्रिया ऐसे समय में आयी है जब हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव होने हैं। दोनों जगहों पर कांग्रेस की हालत ठीक नहीं है और माना जा रहा है कि बीजेपी की स्थिति काफ़ी मज़बूत है। इन दो राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे के बारे में भी खुर्शीद ने बात कही। उन्होंने कहा कि हरियाणा और अन्य जगहों पर पार्टी को नया नेतृत्व मिला है और उन्होंने उम्मीद जताई कि पार्टी चुनावी लड़ाई के लिए तैयार है।
अख़बार के अनुसार, हार के कारणों का विश्लेषण नहीं किए जाने के सवाल पर खुर्शीद ने कहा, ‘इसके लिए आपको नेतृत्व चाहिए ही। लेकिन दुर्भाग्य और दुख की बात है कि हमने अपना नेता खो दिया। हमारी समस्या यह है कि वह चले गए लेकिन हम अभी भी उनके प्रति प्रतिबद्ध हैं... यह एक अनोखी बात है। दो हार के बाद भी नेता नेता बने हुए हैं। लोग अब भी उनके प्रति निष्ठा रखते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से जब से वह नहीं हैं हम विश्लेषण नहीं कर पाए हैं।’
उन्होंने यह भी कहा, ‘यह दुखद है कि हमने अपना नेता खो दिया। काश वह हमारे पास होते। हम सब चाहते थे कि वह रहें। यह एक बड़ी बात है। पूरी पार्टी चाहती थी कि वह बने रहें। लेकिन हमारे पास वह नहीं हैं। इसलिए क्या करना है? मैं लोगों को कॉल कर यह नहीं कह सकता हूँ कि चलो विश्लेषण करते हैं। यह नेता द्वारा किया जाना है... मुझे आशा है कि चुनावों के बाद हम इसे ठीक करने में सक्षम होंगे।’
उन्होंने यह भी कहा कि जितनी जल्दी हम यह विश्लेषण करेंगे बेहतर होगा। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे पास एक शानदार घोषणा पत्र था, लेकिन हम इसे लोगों के पास ले जाने में सक्षम नहीं थे।
खुर्शीद का ऐसे बयान का साफ़ संकेत है कि कांग्रेस में कुछ ठीक नहीं है। ऐसी स्थिति में क्या बीजेपी जैसी पार्टी का सामना कांग्रेस कर पाएगी? कांग्रेस के सामने बीजेपी जैसी पार्टी है जिसमें नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे नेता हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों जगहों पर बीजेपी अच्छी हालत में है। लेकिन कांग्रेस में आपसी खींचतान भी चल रही है।
हाल ही में हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया है। यहाँ पार्टो को नया अध्यक्ष तो मिल गया है लेकिन इसके बाद भी पार्टी की स्थिति कुछ ख़ास नहीं सुधरी है।
महाराष्ट्र में भी ऐसी ही हालत है। यहाँ लगातार घमासान चल रहा है और महाराष्ट्र कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरुपम ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर पार्टी आलाकमान पर गंभीर आरोप लगाए थे। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने शिवसेना-बीजेपी का दामन थाम लिया है। राधा कृष्ण विखे पाटिल, कृपाशंकर सिंह, फ़िल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर जैसे नेताओं ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया है। पार्टी ने लोकसभा चुनाव से पहले निरूपम को हटाकर देवड़ा को अध्यक्ष बनाया था, लेकिन जब चुनाव में क़रारी हार हुई तो रार छिड़ गई और उर्मिला के इस्तीफ़ा देते ही निरूपम और देवड़ा आमने-सामने आ गए।
गोवा-तेलंगाना में झटके, राहुल नहीं दिखे
इससे पहले गोवा में जुलाई में कांग्रेस के 15 में से 10 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी थी। नेता विपक्ष चन्द्रकांत कावलेकर के नेतृत्व में सभी 10 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी कांग्रेस के पास महज 5 विधायक रह गए हैं। इससे एक महीना पहले यानी जून में तेलंगाना में भी कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था। कांग्रेस के 18 में से 12 विधायक मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की पार्टी टीआरएस में शामिल हो गए। चूँकि इन दोनों मामले में दो-तिहाई संख्या थी इसलिए दल-बदल क़ानून के तहत होने वाली कार्रवाई से वे विधायक बच गए।
इस मामले में सबसे अजीब बात यह रही कि कांग्रेस की तरफ़ से राहुल गाँधी सहित कोई भी नेता इन विधायकों को अपने पाले में रखने के लिए लड़ता हुआ नहीं दिखा। राहुल गाँधी तो कहीं दिखे ही नहीं। ऐसे राज्य में जहाँ पार्टी मज़बूत थी और जहाँ नहीं भी थी, वहाँ इतनी बड़ी संख्या में विधायक एक साथ छोड़कर जा रहे हों और यदि पार्टी का कोई शीर्ष नेता नहीं दिखेगा तो पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट जाएगा।
ऐसे में सवाल है कि खुर्शीद के सवाल उठाने के बाद क्या कांग्रेस में हार की समीक्षा जल्द की जाएगी और आगे आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी को दुरुस्त करने के प्रयास होंगे?
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