कांग्रेस में संगठन, नेतृत्व में बदलाव, चुनावी प्रदर्शन जैसे मुद्दों को लेकर उठा विवाद बढ़ता ही जा रहा है। कपिल सिब्बल ने चुनावी हार को लेकर कांग्रेस में जो ताज़ा हलचल पैदा की उसकी आग बुझती नहीं दिख रही है। एक के बाद एक कांग्रेसी नेता आपस में ही बयानबाज़ी कर रहे हैं। पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कपिल सिब्बल पर निशाना साधा था और अब बिना नाम लिए ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने आलोचना की है।
बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कमज़ोर प्रदर्शन को लेकर पार्टी के ही वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने एक इंटरव्यू में कांग्रेस नेतृत्व पर निशाना साधा था और सांगठनिक स्तर पर अनुभवी और राजनीतिक हकीकत को समझने वाले लोगों को आगे लाने की पैरवी की थी। इसी के संदर्भ में कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद का ताज़ा बयान लगता है।
खुर्शीद ने सोशल मीडिया पर अपनी बात रखी है। ट्विटर और फ़ेसबुक दोनों जगहों पर। फ़ेसबुक पर तो उन्होंने काफ़ी लंबी चौड़ी टिप्पणी लिखी है। उन्होंने अपनी टिप्पणी की शुरुआत आख़िरी मुगल शासक बहादुर शाह जफर की लाइन के साथ अपनी बात रखी। उन्होंने लिखा-
'न थी हाल की जब हमें अपने ख़बर रहे देखते औरों के ऐब ओ हुनर
पड़ी अपनी बुराइयों पर जो नज़र तो निगाह में कोई बुरा न रहा।'
इस फ़ेसबुक पोस्ट में उन्होंने साफ़ तौर पर लिखा है कि आलोचना करने वालों को पहले अपने अंदर की कमियों को देखना चाहिए। उन्होंने सलाह दी कि सफलता का कोई 'शॉर्टकट' नहीं होता है।
उन्होंने फ़ेसबुक पोस्ट में लिखा है, 'अगर मतदाताओं का मूड उन उदारवादी मूल्यों के ख़िलाफ़ है जिन्हें हमने अपनाया है... हमें सत्ता में वापस आने के लिए शॉर्टकट संघर्षों को देखने के बजाय लंबे संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए।' उन्होंने तो यहाँ तक लिखा कि जिसको काम नहीं आता है वह अपने औजार को ही दोष देता है। यानी 'नाच न जाने आँगन टेढ़ा'।
कुछ ऐसी ही टिप्पणी उन्होंने ट्विटर पर की है और लिखा है कि दूसरों की बुराई तो देखना आसान है, लेकिन अपने ख़ुद के अंदर की बुराई को कोई नहीं देखता है।
क्या बात है कि एक सरल बात लोग समझने के लिए तय्यार नहिं
— Salman Khurshid (@salman7khurshid) November 17, 2020
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
फ़ेसबुक पोस्ट में उन्होंने लिखा, 'समय-समय पर पुनर्मूल्यांकन और नई रणनीति बनाने की ज़रूरत होती है, लेकिन उन्हें मीडिया के माध्यम से नहीं सामने लाया जा सकता ताकि विपक्षी हमें तुरंत मात दे दें।'
उन्होंने आगे लिखा, 'सत्ता से बाहर किया जाना सार्वजनिक जीवन में आसानी से स्वीकार नहीं किया जा सकता लेकिन यदि यह मूल्यों की राजनीति का परिणाम है तो इसे सम्मान के साथ स्वीकार किया जाना चाहिए...।'
सलमान खुर्शीद ने यहाँ तक कहा कि यदि हम सत्ता हासिल करने के लिए अपने सिद्धांतों के साथ समझौता करते हैं तो इससे अच्छा है कि हम ये सब छोड़ दें।
बता दें कि कपिल सिब्बल ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए इंटरव्यू में कहा था, ‘हम में से कुछ लोगों ने बताया कि कांग्रेस में आगे क्या किया जाना चाहिए। लेकिन हमारी बात सुनने के बजाय उन्होंने हमसे मुंह फेर लिया। अब हम रिजल्ट्स देख सकते हैं। केवल बिहार के ही लोग नहीं, बल्कि जहां-जहां उपचुनाव हुए हैं, स्वाभाविक रूप से वहां के लोग कांग्रेस को एक प्रभावी विकल्प नहीं मानते।’
सिब्बल का संदेश साफ़ है। सिब्बल आलाकमान को चेताना चाहते हैं कि वह पार्टी में स्थायी अध्यक्ष के मसले और सीडब्ल्यूसी में चुनाव कराए जाने को गंभीरता से ले। उनका यह भी संदेश है कि जो लोग पार्टी में रहकर सुधारों की आवाज़ उठा रहे हैं, वे ऐसा पार्टी के भले के लिए ही कर रहे हैं और पार्टी उन्हें अपना दुश्मन ना समझे।
ऐसा ही कुछ महीने पहले भी हुआ था जब 23 वरिष्ठ नेताओं ने चिट्ठी लिखकर पार्टी नेतृत्व पर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने जब आंतरिक चुनाव कराने की माँग की थी तो पार्टी ने सख़्त रूख़ अपनाते हुए कुछ नेताओं के पर कतर दिए थे। इनमें लंबा सियासी तजुर्बा रखने वाले ग़ुलाम नबी आज़ाद भी थे, जिन्हें पार्टी ने कांग्रेस महासचिव के पद से हटा दिया था। याद दिला दें कि सिब्बल भी चिट्ठी लिखने वालों में शामिल थे।
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