राजस्थान में भाजपा की परिवर्तन यात्रा शनिवार से शुरू हो गई है। वो राज्य की गहलोत सरकार के खिलाफ परिवर्तन यात्रा कई जिलों में लेकर जाएगी लेकिन भाजपा की वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने उससे पहले शुक्रवार 1 सितंबर को धार्मिक यात्रा कर डाली। यह महज धार्मिक यात्रा नहीं थी। इसके अपने राजनीतिक निहितार्थ हैं। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अभी हाल ही में राजस्थान के लिए अपनी दो कमेटियों की घोषणा की थी लेकिन उनमें वसुंधरा का दूर-दूर तक कोई नाम नहीं था। वसुंधरा ने शुक्रवार को जो किया, एक तरह से इसे उनकी बगावत समझा जा रहा है।
द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे शुक्रवार को मंदिर दौरे पर निकलीं और राजस्थान के तीन लोकप्रिय हिंदू मंदिरों में पूजा-अर्चना की। राजे ने हेलीकॉप्टर से राजसमंद में चारभुजा नाथ और श्रीनाथजी मंदिर और बांसवाड़ा में त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के दर्शन किये।
वसुंधरा की धार्मिक यात्रा के बाद राज्य की राजनीति में नया मोड़ ये आया कि भाजपा नेतृत्व उन्हें सवाईमाधोपुर में शनिवार 2 सितंबर को यात्रा की शुरुआत करते हुए मंच पर ले आया। जबकि यात्रा का ऐलान करते समय वसुंधरा के बारे में भाजपा ने चुप्पी साध रखी थी। चार जिलों की किसी भी यात्रा में वसुंधरा को नेतृत्व करने का मौका नहीं दिया गया। लेकिन शुक्रवार को वसुंधरा के तेवर को देखकर भाजपा नेतृत्व ने उनको शनिवार को बुलाया। उन्हें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने बगल खड़ा किया लेकिन वसुंधरा खुद को बुलाए जाने को बहुत महत्व देती नहीं दिखीं। वसुंधरा गुट उन्हें भाजपा की सरकार आने पर भावी सीएम के रूप में पेश करने की मांग पहले से ही कर रहा है।
सवाईमाधोपुर में शनिवार को जेपी नड्डा के साथ मंच पर वसुंधरा राजे
द हिन्दू के मुताबिक भाजपा की परिवर्तन यात्रा अभियान में वसुंधरा राजे की कोई भूमिका नहीं है। भाजपा के तमाम नेता राजे के धार्मिक दौरे को राज्य विधानसभा चुनावों से पहले खुद को स्थापित करने और पार्टी के लिए अपनी प्रासंगिकता प्रदर्शित करने के एक "हताश प्रयास" के रूप में देख रहे हैं। भाजपा वसुंधरा को अपने मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में पेश करने को तैयार नहीं दिख रही है और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने घोषणा की है कि 2023 का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा जाएगा। हालांकि इससे पिछले चुनाव में भाजपा ने वसुंधरा के चेहरे पर चुनाव लड़ा था और कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी थी।
दूसरी तरफ भाजपा की परिवर्तन यात्रा शनिवार को शुरू हो गई। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा ने झंडा फहराया और उसके बाद सवाईमाधोपुर से पहली परिवर्तन यात्रा शुरू हुई। इसके बाद डूंगरपुर, जैसलमेर और हनुमानगढ़ में तीन दिन बाद ऐसी यात्राएं निकलेंगी। पार्टी ने किसी नेता विशेष का नाम लेने की बजाय सभी 200 विधानसभा क्षेत्रों में "सामूहिक नेतृत्व" पेश करने की बात कही है।
वसुंधरा राजे ने भी अपनी धार्मिक यात्रा में राजनीतिक प्रदर्शन और कटाक्ष करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता और राजे के समर्थक उनके स्वागत के लिए तीन मंदिरों में जमा हुए। चारभुजा नाथ मंदिर से बाहर निकलते हुए, राजे ने संवाददाताओं से कहा कि “जब भी उन्होंने कोई बड़ा कार्य शुरू किया” तो उन्होंने मंदिरों का दौरा किया। उन्होंने कहा, "देवताओं का आशीर्वाद और जनता का आशीर्वाद मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है... अगर मेरे पास ईश्वरीय आशीर्वाद है तो मेरे रास्ते में कोई बाधा नहीं आएगी।"
राजे की मीडिया टिप्पणी को चार यात्राओं में से किसी में भी उन्हें नेतृत्व की भूमिका नहीं देने के भाजपा के फैसले पर उनकी प्रतिक्रिया के रूप में माना गया। हालांकि यह साफ नहीं है कि वह और उनके समर्थक भाजपा की परिवर्तन यात्राओं में भाग लेंगे या नहीं। 2 से 22 सितंबर के बीच यात्राओं के दौरान 72 सार्वजनिक बैठकें आयोजित की जाएंगी।
द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सी.पी. जोशी को भी चुनौती देने की कोशिश की है। मेवाड़ क्षेत्र, जहां से दूसरी परिवर्तन यात्रा गुजरेगी, सीपी जोशी का गृह क्षेत्र है, जो लोकसभा में चित्तौड़गढ़ का प्रतिनिधित्व करते हैं। जब भाजपा सत्ता में थी या विपक्ष में भी थी, तब भी राजे राज्य में चुनाव पूर्व यात्राओं का नेतृत्व करती रही हैं। उन्हें 2003 में एक यात्रा के माध्यम से भाजपा के चेहरे के रूप में पेश किया गया था, जब पार्टी ने 120 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। ऐसे में इस बार जो कुछ भी राजस्थान में घटित हो रहा है, उससे भाजपा की राजनीति प्रभावित होते दिख रही है।
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