कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को एक वीडियो ट्वीट किया। वीडियो हाथरस की पीड़िता के गांव चंदपा का है। वीडियो में गांव के लोग ‘द क्विंट’ को बताते हैं कि वहां जातिवाद किस कदर फैला हुआ है। वीडियो से पता चलता है कि ऊंची और नीची जाति के लोगों का साथ में रहना-खाना तो छोड़िए, श्मशान तक अलग बने हुए हैं। सवर्ण बिरादरी के लोग दंभ के साथ अपनी जाति का नाम लेते हैं और कहते हैं कि हम नीची जाति वालों के वहां न खाते हैं और न जाते हैं।
इससे दो दिन पहले राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा था कि यह शर्मनाक सच है कि अधिकतर भारतीय दलित, आदिवासी और मुसलिमों को इंसान नहीं मानते हैं। उन्होंने हाथरस मामले को लेकर योगी सरकार पर तोहमत लगाते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री और उनकी पुलिस के अनुसार, हाथरस में किसी के साथ बलात्कार नहीं हुआ क्योंकि उनके लिए और अधिकतर भारतीयों के लिए वह ‘कोई नहीं’ थी। ग़ौरतलब है कि योगी सरकार जोर देकर कहती रही है कि पीड़िता के साथ बलात्कार नहीं हुआ है।
कांग्रेस विपक्ष में है और इसलिए राहुल गांधी का काम केंद्र के साथ ही बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों को घेरने का है। यहां तक तो बात सही है लेकिन दलितों के प्रति अचानक उमड़े इस प्रेम की वजह क्या हो सकती है।
अचानक से राहुल गांधी ने दलितों के उत्पीड़न के मुद्दे को इतने आक्रामक ढंग से उठाना क्यों शुरू कर दिया है। क्या इसके पीछे कोई सियासी कारण है?
आज़ादी के बाद जनता पार्टी के शासनकाल के कुछ वर्षों को छोड़ दें तो 1990 तक कांग्रेस का एकछत्र शासन देश पर रहा और उसके बाद गठबंधन के सहारे भी वह कई बार सरकार का नेतृत्व करती रही। 1990 तक राज्यों की सियासत में भी उसकी तूती बोलती थी। इसका सबसे बड़ा कारण माना जाता था कि दलित मतदाता उसके साथ खड़े रहे। इसके साथ ही हिन्दी भाषी राज्यों में ब्राह्मण और मुसलिम मतदाताओं की भी पहली पसंद कांग्रेस ही थी।
हाथरस मामले में कौन रच रहा है साज़िश?
मंदिर आंदोलन, कांशीराम बने कारण
लेकिन 1990 के राम मंदिर आंदोलन और दलित जातियों के कांशीराम के साथ चले जाने के बाद कांग्रेस की पकड़ ढीली होती चली गयी। क्योंकि राम मंदिर आंदोलन के जरिये संघ परिवार और बीजेपी ने जातियों में बंटे हिंदू समाज को ‘हिंदू एकता’ के नारे की मदद से ख़ुद के साथ जोड़ा तो कांशीराम ने ‘जिसकी जितनी संख्या भारी-उसकी उतनी हिस्सेदारी’ का नारा देकर यह बताया कि 15 फ़ीसदी सवर्ण समाज देश के 85 फ़ीसदी दलितों-पिछड़ों-मुसलमानों पर शासन कर रहा है।
दलित बीएसपी के साथ चले गए, पिछड़ों-मुसलमानों का बड़ा तबक़ा लालू-मुलायम के साथ जुड़ गया और राम मंदिर आंदोलन की वजह से ब्राह्मणों की बड़ी आबादी का समर्थन बीजेपी को मिल गया। कुल मिलाकर कांग्रेस बेहद कमजोर हो गयी।
यूपीए के सहारे कांग्रेस को दस साल तक देश की सरकार चलाने का मौक़ा फिर से मिला लेकिन 2014 और 2019 में मोदी लहर के चलते वह सत्ता से ऐसी बाहर हुई कि उसके अपने ही उसे छोड़कर जाने लगे और आज उसकी हालत पस्त है।
प्रियंका गांधी की सक्रियता
ऐसे में कांग्रेस दलित-मुसलिमों-आदिवासियों को फिर से अपने पाले में लाना चाहती है। थोड़ा-बहुत जोर वह ब्राह्मणों और के लिए भी लगा रही है। नागरिकता संशोधन क़ानून के दौरान कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की खासी सक्रियता और उसके बाद हाथरस मामले को जोर-शोर से उठाना इसी दिशा में कांग्रेस का क़दम कहा जा सकता है। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की हत्या के मसले को भी वह उठाती रही है।
कांग्रेस का मानना है कि बीजेपी-संघ पर सवर्ण राजनीति करने का आरोप लगाकर वह दलित तबक़े को अपनी ओर खींच सकती है, इसलिए उसने हाथरस मामले में पूरी ताक़त झोंकी हुई है।
राहुल गांधी ट्वीट किए गए वीडियो के साथ यह भी लिखते हैं- ‘यह वीडियो उनके लिए है जो सच्चाई से भाग रहे हैं। हम बदलेंगे, देश बदलेगा।’ इसे और उनके पिछले ट्वीट को जिसमें उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री और उनकी पुलिस के मुताबिक़, हाथरस में किसी के साथ बलात्कार नहीं हुआ’ को जोड़कर देखा जाना चाहिए। क्योंकि इस ट्वीट में वह लिखते हैं कि यह वीडियो उनके लिए है जो सच्चाई से भाग रहे हैं, इसका मतलब साफ है कि राहुल गांधी ने योगी सरकार को यह संदेश दिया है कि वह यह न कहे कि हाथरस पीड़िता के साथ बलात्कार नहीं हुआ।
इससे राहुल संदेश देना चाहते हैं कि वे बीजेपी सरकार के ख़िलाफ़ देश भर के दलित समाज की लड़ाई को पूरी ताक़त के साथ लड़ रहे हैं। शायद, कांग्रेस को उम्मीद है कि अगर वह हाथरस मामले में आक्रामक तेवरों के साथ लड़ेगी तो दलित समुदाय एक बार फिर उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश भर में उसके साथ खड़ा होगा।
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