आम चुनाव के कुछ महीने पहले कांग्रेस पार्टी ने एक बड़ा दाँव खेलते हुए अपने संगठन में बड़ा बदलाव किया और प्रियंका गाँधी को महासचिव बना दिया। वह अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ेंगी। समझा जाता है कि यह उनकी राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने की शुरुआत है। प्रियंका पहले भी रायबरेली और अमेठी में चुनाव प्रचार कर चुकी हैं, पर वे पार्टी में किसी पद पर नहीं थीं। पहली बार वे पार्टी में एक बड़े पद पर लाई गई हैं।
प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि लोकसभा चुनाव में सबसे ज़्यादा सांसद इसी राज्य से आएँगे और वहां पार्टी की स्थिति बहुत मजबूत नहीं मानी जाती है। वहां पार्टी का आलम यह है कि सप-बसपा ने अपने गठबंधन में उसे शामिल तक नहीं किया और दो सीटें छोड़ दीं। इसके बाद पार्टी ने आनन फानन में सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने की घोषणा कर दी। लेकिन समझा जाता है कि पार्टी छोटे दलों को अपने साथ जोड़ेगी और उनके लिए कुछ सीटें छोड़ेगी। ऐसे में प्रियंका की भूमिका बड़ी है, क्योंकि यह उन पर निर्भर करेगा कि वह पार्टी की नैया कैसे पार लगाती हैं।
प्रियंका गांधी अमेठी लोकसभा क्षेत्र से अपना पहला चुनावी क़दम इस साल होने वाले आम चुनाव में रखेंगी। वह दशकों से अपनी मँ सोनिया गांधी के लिए रायबरेली सीट के मतदाताओं कार्यकर्ताओं का ख़याल रखती रहीं थीं। राहुल गाँधी सोनिया गांधी की सीट रायबरेली से लड़ेंगे।
पिछले कुछ समय से अहमद पटेल उनको रोज़ राष्ट्रीय राजनीति की बारीकियों पर ब्रीफ़ सौंप रहे थे। राजस्थान विधानसभा के चुनाव के बाद नेतृत्व का प्रश्न हल करने के दौर में वह खुलकर सामने आईं थीं पर तब भी क़यास ही लग रहे थे पर आज राहुल गॉधी के दफ़्तर ने उनको आधिकारिक तौर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान थमा दी।
प्रियंका गाँधी को पार्टी महासचिव बनाने की जानकारी कांग्रेस ने एक प्रेस बयान जारी कर दी है। यह भी कहा गया है कि ज्योतिरादित्य सिन्धिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ज़िम्मेदारी दी गई है। पर्यवेक्षकों का मानना है कि प्रियंका को महासचिव यह सोच कर बनाया गया है कि इससे पार्टी में एकजुटता बढ़ेगी और कार्यकर्ताओं में नया जोश भरा जा सकेगा। यह भी माना जा रहा है कि पार्टी यह संकेत भी देना चाहती है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बड़ी चुनौती देने की तैयारी में है।
ज्यतिरादित्य सिन्धिया ने ख़ुद को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाए जाने पर पार्टी नेतृत्व को धन्यवाद देते हुए कहा, 'कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जी ने मुझ पर जो विश्वास जताया है, उसके लिए मैं उनका हृदय से धन्यवाद व्यक्त करता हूँ। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी को मजबूत करने के लिए सदैव की तरह अपनी पूरी क्षमता से कार्य करूँगा।'
कांग्रेस का गढ़
1967 में अमेठी लोकसभा सीट बनी। तब से आज तक सिर्फ दो बार कॉंग्रेस ने यह सीट गँवाई है वरना इस पर कॉंग्रेस या गाँधी परिवार का क़ब्ज़ा बना रहा है। 1967-71 में विद्याधर बाजपेयी दो बार यहाँ कॉंग्रेस की टिकट पर सांसद बने। आज की बीजेपी जो तब जनसंघ थी, यहाँ दूसरे स्थान पर रही। पर 1977 की जनता लहर में कॉंग्रेस का यह दुर्ग ढह गया। जनसंघ मूल के जनता पार्टी प्रत्याशी रवीन्द्र प्रताप सिंह ने संजय गॉधी को हरा कर तहलका मचा दिया था।संजय गाँधी क्यों हारे थे?
रवीन्द्र प्रताप वकील थे और दबंग भी। उन पर उस ज़माने के मशहूर डाकू गिरोह 'बरसाती गैंग' से सांठगांठ के भी आरोप थे। पर उन दिनों संजय गांधी के विरुद्ध चुनाव लड़ना ही बड़े जोखिम की माँग करता था, सो जनता दल का टिकट रवीन्द्र सिंह की झोली में आ गिरा और वे संसद पहुँच गए।पर अगले ही चुनाव में 1980 में अठारह फीसद से भी कम वोट पाकर संजय गांधी से ही हार भी गए। जब जीते थे तब उन्हे साठ फीसद से भी ज्यादा मत मिले थे। दूसरी बार अमेठी राजघराने के राजकुमार संजय सिंह ने बीजेपी की टिकट पर 1998 में कांग्रेस के सतीश शर्मा को हरा कर बयार बदली। संजय सिंह इसके पहले खुद कांग्रेसी थे, गाँधी परिवार के प्रिय भी थे, पर बाद में बात बिगड़ गई तो बीजेपी में चले गए। पर ज्यादा टिके नहीं, वापस लौटकर फिर कॉंग्रेस में ही विराजमान हैं। राहुल गॉधी ने अमेठी में सबसे ज्यादा समय तक सांसद रहने का रिकार्ड बनाया। इधर बीते 2014 के चुनाव में स्मृति ईरानी के रूप में उन्हे कड़ी चुनौती मिली जिन्होंने रनर अप प्रत्याशी के तौर पर करीब 35 फ़ीसद वोट पाए, जो न मेनका गांधी पा सकीं न राजमोहन गांधी और न शरद यादव।समय समय पर विपक्ष की ओर से इन लोगों ने अमेठी में ज़ोर आज़माइश की है।प्रियंका गॉधी अमेठी में बहुत लोकप्रिय हैं, वे एक ज़माने से यहाँ आती रही हैं और कांग्रेस के अधिकतर कार्यकर्ताओं को नाम से जानती हैं। उनके लिए यहाँ कोई चुनौती इसलिए भी नहीं रहेगी क्योंकि बीजेपी ढलान पर है और सपा- बसपा ने वाकओवर दे दिया है जबकि समय न दे पाने से और कुछ स्थानीय मैनेजमेंट के फेरबदल से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में राहुल गांधी को लेकर खिन्नता थी।
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