चुनावी राजनीति में प्रियंका गांधी वाड्रा की एंट्री दो दशक बाद हो रही है। 52 साल की प्रियंका को सबसे पहले 2004 के लोकसभा चुनावों के दौरान मां सोनिया गांधी और राहुल के साथ देखा गया था। इस पूरे दो दशक के सफर में उनका ध्यान उत्तर प्रदेश पर रहा। जहां अमेठी और रायबरेली कांग्रेस के गढ़ बने हुए हैं।
प्रियंका की पहली भूमिका 2017 में खुलकर दिखाई दी जब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे को लेकर तनातनी हो गई थी। उस समय प्रियंका ने पार्टी के लिए संकटमोचक की भूमिका निभाई थी।
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 110 सीटों की मांग कर रही थी, जबकि अखिलेश यादव सिर्फ 100 सीटें दे रहे थे। सपा-कांग्रेस का यह गठबंधन सोनिया गांधी की पहल पर बना था। गुलाम नबी आजाद और प्रियंका ने उस समय अखिलेश और वरिष्ठ सपा नेता आजम खान से मुलाकात की। बैठक के बाद यह घोषणा की गई कि सपा 298 सीटों पर चुनाव लड़ेगी जबकि कांग्रेस 105 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। घोषणा के कुछ दिनों बाद, एसपी ने 208 उम्मीदवारों की सूची जारी की।
प्रियंका को जनवरी 2019 में सिर्फ पूर्वी उत्तर प्रदेश का महासचिव बनाया गया और अमेठी, रायबरेली की पूरी कमान सौंपी गई। सितंबर 2020 में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी से बाहर हो गए तो प्रियंका को पूरे उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव नियुक्त किया गया। उस समय वाराणसी से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के लिए संभावित चुनौती के रूप में प्रियंका को देखा जाता था, जबकि ज्यादातर लोग उन्हें रायबरेली में सोनिया गांधी के संभावित उत्तराधिकारी के रूप में देखते थे। सोनिया गांधी के पूरे चुनाव की जिम्मेदारी प्रियंका पर रहती थी।
हालांकि प्रियंका ने जब यूपी संभाला तो पार्टी सिमट कर एक सीट पर आ गई। लेकिन राजनीति में उतार चढ़ाव तो समय के साथ चलता ही है। 2019 में भले ही कांग्रेस एक सीट पर सिमट गई लेकिन न तो कांग्रेस हिम्मत हारी और न प्रियंका गांधी।
भाषण के मामले में प्रियंका को कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेताओं में समझदार माना जाता है। कई विश्लेषक कहते हैं कि राहुल से कहीं बेहतर भाषण प्रियंका के होते हैं। वो अपने भाषण में महिलाओं पर जरूर पूरा फोकस करती हैं। प्रियंका ने एक बार एक रैली में कहा था, “मैं आपकी बहन, आपकी बेटी हूं। मैं आपके मुद्दों को समझने और समाधान खोजने आई हूं।'' 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों से पहले, उन्होंने नारा दिया था- 'लड़की हूं लड़ सकती हूं।' कांग्रेस ने 40 फीसदी टिकट महिला उम्मीदवारों देने की घोषणा की। लेकिन पार्टी सिर्फ दो सीटों पर ही जीत सकी।
प्रियंका के राजनीतिक जीवन में उतार चढ़ाव जारी रहा। दिसंबर 2022 में हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत हुई, लेकिन उसके बाद पार्टी छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान हार गई। दिसंबर 2023 में वह महासचिव तो बनी रहीं लेकिन उनसे उत्तर प्रदेश का प्रभार उनसे छीन लिया गया।
आम चुनाव 2024 की घोषणा हुई तो प्रियंका गांधी शेष भारत के अलावा यूपी में खासतौर पर सक्रिय हुईं। प्रधानमंत्री मोदी जब अपने भाषणों में हिन्दू-मुसलमान करने लगे और मुसलमानों पर हमले करके ध्रुवीकरण की कोशिश की तो प्रियंका ने भी तीखा अटैक शुरू कर दिया। नरेंद्र मोदी ने जब मंगलसूत्र छीने जाने का जुमला अपनी रैलियों में बोला तो प्रियंका ने रैली में अपने भाषण से जवाब दिया कि "मेरी मां का मंगलसूत्र इस देश के लिए बलिदान कर दिया गया।" उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से राजीव गांधी की शहादत का जिक्र किया। उन्होंने मोदी के इस बयान का बहुत मजाक उड़ाया कि जिसके पास दो भैंस होगी, कांग्रेस एक भैंस छीनकर मुसलमान को दे देगी। मोदी के भाषणों की मार को कुंद करने का काम प्रियंका ने किया। लेकिन राहुल की तरह प्रियंका ने महंगाई, बेरोजगारी को भी मुद्दा बनाया।
प्रियंका ने 16 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में 108 रैलियां और रोड शो किए। उन्होंने लोगों से धर्म और जाति जैसे भावनात्मक मुद्दों के बजाय रोटी-रोटी के मुद्दों पर वोट करने का आग्रह किया। प्रियंका के लिए वायनाड आसान नहीं होगा। सभी की नजरें अब उन्हीं पर हैं। उनकी जीत का मतलब संसद में गांधी परिवार के तीनों सदस्यों की मौजूदी होगी, जिसमें राहुल लोकसभा में रायबरेली का प्रतिनिधित्व करेंगे और सोनिया गांधी राज्यसभा में।
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