राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी एकजुटता की कवायद धड़ाम हो गई है। 5 राजनीतिक दल ऐसे हैं जिन्होंने ममता बनर्जी की ओर से दिल्ली में बुलाई गई बैठक से किनारा कर लिया। इन दलों में टीआरएस, आम आदमी पार्टी और कुछ अन्य दल शामिल हैं।
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी भी इसमें शामिल नहीं हो रही है जबकि शिरोमणि अकाली दल ने भी कांग्रेस को बैठक में बुलाए जाने की वजह से इससे किनारा कर लिया है।
आंध्र प्रदेश में सरकार चला रही वाईएसआर कांग्रेस भी बैठक से गैरहाजिर रहेगी।
के. चंद्रशेखर राव की अगुवाई वाली टीआरएस ने इसके पीछे कांग्रेस को इस बैठक में बुलाए जाने का हवाला दिया है। टीआरएस ने कहा है कि कांग्रेस के साथ किसी भी मंच को साझा करने का सवाल ही खड़ा नहीं होता। हालांकि कांग्रेस इस बैठक में शामिल हो रही है और उसकी ओर से मल्लिकार्जुन खड़गे, जयराम रमेश और रणदीप सिंह सुरजेवाला बैठक में शामिल होंगे।
टीआरएस की ओर से बयान जारी कर कहा गया है कि उसकी आपत्ति के बावजूद कांग्रेस को इस बैठक में बुलावा भेजा गया। टीआरएस ने कहा है कि राहुल गांधी ने तेलंगाना में हाल ही में हुई एक सभा में केसीआर सरकार पर निशाना साधा जबकि बीजेपी के बारे में कुछ नहीं कहा। ऐसे में यह लगता है कि राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार के मुद्दे पर विपक्ष का एकजुट रहना मुश्किल है।
एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि उन्हें इस बैठक में नहीं बुलाया गया है। ओवैसी ने कहा कि वह इस बैठक में बुलाने पर भी नहीं जाते क्योंकि कांग्रेस को इस बैठक में आने का निमंत्रण दिया गया है।
ममता बनर्जी ने विपक्षी दलों को पत्र लिखकर इस बैठक में आने की अपील की थी।
इससे पहले मंगलवार शाम को नई दिल्ली में ममता बनर्जी ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की थी। बता दें कि राष्ट्रपति के चुनाव के लिए 18 जुलाई को मतदान होगा जबकि नतीजे 21 जुलाई को आएंगे। नामांकन की अंतिम तारीख 29 जून है।
कौन होगा उम्मीदवार?
विपक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती साझा उम्मीदवार उतारने की है। शरद पवार के राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष का उम्मीदवार बनने से इनकार करने के बाद विपक्ष की मुश्किलें बढ़ गई हैं। अब विपक्ष को किसी बड़े चेहरे को सामने करना होगा और मजबूती के साथ चुनाव लड़ना होगा। लेकिन उसमें पहले ही फूट पड़ गई है।
यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद को विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनाया जा सकता है। एक चर्चा राज्यसभा के सांसद और कांग्रेस के पूर्व नेता कपिल सिब्बल को भी उम्मीदवार बनाए जाने की है।
लेकिन अब सवाल यह है कि विपक्ष किसे अपना उम्मीदवार बनाएगा। इससे बड़ी बात यह है कि क्या विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव में संयुक्त उम्मीदवार उतार पाएगा। अगर विपक्षी दलों के बीच संयुक्त उम्मीदवार उतारने को लेकर सहमति नहीं बनी तो बीजेपी और एनडीए के उम्मीदवार की राह इस चुनाव में आसान हो जाएगी।
हालांकि शरद पवार इस मुद्दे पर विपक्षी दलों के बीच एक राय कायम करने में अपनी भूमिका निभाएंगे।
एनडीए को 13000 वोट की जरूरत
राष्ट्रपति के चुनाव में 776 सांसद और 4033 विधायक मतदान करेंगे। इस तरह इस चुनाव में कुल 4809 मतदाता हैं। सांसदों के वोट की कुल वैल्यू 5,43,200 है जबकि विधायकों के वोट की वैल्यू 5,43,231 है और यह कुल मिलाकर 10,86,431 होती है। इसमें से जिस उम्मीदवार को 50 फ़ीसद से ज्यादा वोट मिलेंगे, उसे जीत हासिल होगी। बीजेपी और उसके सहयोगी दल 50 फीसद वोटों के आंकड़े से 13000 वोट पीछे हैं।वाईएसआर कांग्रेस, बीजेडी
2017 के राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए को के. चंद्रशेखर राव यानी केसीआर की टीआरएस के साथ ही वाईएसआर कांग्रेस और बीजेडी का भी समर्थन मिला था। लेकिन इस बार केसीआर विपक्षी दलों का गठबंधन बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। ऐसे में वे एनडीए का समर्थन नहीं करेंगे।
इस सूरत में वाईएसआर कांग्रेस और बीजेडी की भूमिका अहम होगी। बीजेपी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर इन दोनों दलों के नेताओं के संपर्क में है और इनका समर्थन जुटाने की कोशिश कर रही है।
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