प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि निर्णायक जनादेश के साथ स्थिर सरकार की वजह से सुधार हुए हैं। उन्होंने कहा है कि ऐसे सुधार दशकों से नहीं हो पाए थे क्योंकि स्थिर सरकार नहीं थी। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी ताजपोशी से पहले के वर्षों की याद दिलाते हुए कहा कि 2014 से पहले तीन दशकों में सरकारें अस्थिर थीं और इसलिए बहुत कुछ करने में असमर्थ थीं। उन्होंने कहा कि स्थिर सरकार के कारण पिछले नौ वर्षों में क्षेत्रों में कई सुधार किए जा सके हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने यह टिप्पणी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में की है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इंटरव्यू में इस बात पर जोर दिया कि उनकी सरकार को निर्णायक मैनडेट मिला। पीएम ने कहा, 'इस स्थिरता के कारण पिछले नौ वर्षों में कई सुधारों को लाया गया। ये सुधार, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, वित्तीय क्षेत्र, बैंकों, डिजिटलाइजेशन, कल्याण, समावेशन और सामाजिक क्षेत्र से संबंधित हैं। इसी स्थिरता ने एक मजबूत नींव डाली और विकास किया है। भारत द्वारा की गई तेजी से और निरंतर प्रगति ने दुनिया भर में स्वाभाविक रूप से रुचि पैदा की और कई देश हमारी विकास की कहानी को बहुत बारीकी से देख रहे हैं।'
उनकी यह टिप्पणी इसलिए अहम है कि पीएम मोदी ने पिछले जिन तीन दशकों की बात की उनमें अधिकतर गठबंधन सरकारें रही थीं और कई बार कुछ सरकारें अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई थीं। इसमें बीजेपी की नेतृत्व वाली एनडीए सरकार भी शामिल थी जिसमें एक बार अटल बिहारी वाजपेयी सरकार सिर्फ़ कुछ दिनों के लिए ही चल पाई थी। हालाँकि बाद में उसने पाँच साल का कार्यकाल पूरा किया था।
अब विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' 2024 के लिए बीजेपी के सामने कड़ी चुनौती पेश कर रहा है। 28-दलों का विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' आगामी लोकसभा चुनावों में अधिक सीटों पर सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ एक सामान्य उम्मीदवार को उतारने की योजना बना रहा है।
नई दिल्ली में आगामी जी20 शिखर सम्मेलन के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया अब मार्गदर्शन के लिए भारत को देखती है।
उन्होंने कहा, 'आज भारतीयों के पास विकास की नींव रखने का शानदार मौक़ा है जिसे अगले हजारों वर्षों तक याद रखा जाएगा। लंबे समय तक भारत को एक अरब भूखे पेट वाले देश के रूप में देखा जाता था, अब यह एक अरब महत्वाकांक्षी मस्तिष्क और दो अरब कुशल हाथों वाला देश है।' प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि निकट भविष्य में भारत दुनिया की शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में होगा।
चुनावी घोषणाओं के रूप में लोगों के लिए आर्थिक सहायता देने का मुद्दा उन्होंने फिर से छोड़ दिया और इसे 'रेवड़ी कल्चर' कहा। उन्होंने पिछले साल अक्टूबर में भी इसे 'रेवड़ी संस्कृति' क़रार दिया था। उन्होंने कहा था कि गैर-जिम्मेदार वित्तीय नीतियाँ, लोकलुभावन अल्पकालिक राजनीतिक परिणाम दे सकते हैं, लेकिन लंबी अवधि में इसकी बड़ी सामाजिक आर्थिक क़ीमत चुकानी पड़ सकती है।
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