चार राज्य और मोदी की 6 रैलियां। शुरुआत रविवार से। भाजपा और पीएम मोदी के एक्शन से लग रहा है कि सभी पांच राज्यों (एमपी, तेलंगाना, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम) में विधानसभा चुनाव के तारीखों की घोषणा इन रैलियों के बाद हो जाएगी। मोदी भाजपा के लिए चुनाव जिताने की मशीन बन गए हैं। यह मशीन दिनरात काम करती है। जिसका एक ही लक्ष्य है चुनाव जीतना।
मोदी के लिए हालांकि भाजपा के पोस्टर ब्यॉय शब्द का इस्तेमाल भी किया जाता है। लेकिन वो पोस्टर मोदी की छवि के सामने फीका पड़ गया है। मोदी उसके भी आगे चले गए हैं। लेकिन जरा ठहरिए...पिछले दो विधानसभा चुनाव कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश भाजपा हार गई। इन दोनों ही राज्यों में भाजपा की सरकारें थीं। इसके बाद कुछ उपचुनाव हुए, जिसमें मिले जुले नतीजे आए लेकिन इनमें भी इंडिया गठबंधन को ज्यादा सीटें मिलीं।
यूपी के घोसी में प्रयोग के तौर पर इंडिया गठबंधन ने मिलकर एक ही प्रत्याशी उतारा। नतीजा भाजपा के खिलाफ गया। योगी आदित्यनाथ की आधा दर्जन रैलियां ध्वस्त हो गईं। यानी मोदी मैजिक कमजोर पड़ता दिखा। चुनावी पंडितों ने फौरन घोषणा कर दी कि मोदी मैजिक के दिन गए। लेकिन मोदी ने हार नहीं मानी। वो नई ऊर्जा के साथ फिर तैयार हैं।
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कैसी है तेलंगाना की पिच
मोदी रविवार 1 अक्टूबर को तेलंगाना के महबूबनगर जिले में आ रहे हैं। वहां वो 13,500 करोड़ रुपये से अधिक की कई विकास योजनाओं का उद्घाटन या शिलान्यास करेंगे। इन परियोजनाओं में उच्च शिक्षा के साथ-साथ सड़क, रेलवे, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और बुनियादी ढांचे जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, प्रधान मंत्री वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए एक ट्रेन सेवा की शुरुआत करेंगे। इसके अलावा, प्रधान मंत्री मोदी आधिकारिक तौर पर हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पांच नए प्रोजेक्ट का उद्घाटन करेंगे, जिसमें स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स एंड स्टैटिस्टिक्स, स्कूल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, लेक्चर हॉल कॉम्प्लेक्स - III और सरोजिनी नायडू स्कूल ऑफ एनेक्सी शामिल हैं, जो कला एवं संचार से जुड़ा है। इसके बाद 3 अक्टूबर को मोदी फिर तेलंगाना लौटेंगे और निजामाबाद में रैली को संबोधित करेंगे। प्रधानमंत्री इससे पहले तेलंगाना नहीं आए, जितना अब आ रहे हैं। वजह कोई अनबूझ पहेली नहीं है। वजह चुनाव है।तेलंगाना में त्रिकोणी मुकाबले की संभावना है। सत्तारूढ़ भारतीय राष्ट्रीय समिति (बीआरएस) के मुकाबले पहले भाजपा को मुकाबले में माना जा रहा था लेकिन कांग्रेस ने वहां गेम बदल दिया। दरअसल, एक रणनीति के तौर पर बीआरएस प्रमुख और तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव ने प्रधानमंत्री मोदी के तेलंगाना वाले कार्यक्रमों में जाना बंद कर दिया। उनके मोदी बहिष्कार को बड़ा उछाला गया। यानी राजनीतिक मैदान में मामला केसीआर बनाम मोदी और भाजपा हो गया। हालांकि केसीआर तेलंगाना में कांग्रेस को ही दुश्मन नंबर 1 मानते हैं लेकिन वो मोदी से लड़ते दिखे। लेकिन वो कुछ और भी कर रहे थे और यहीं से शक पैदा हो रहा था। उन्होंने भाजपा के खिलाफ 26 विरोधी दलों के इंडिया गठबंधन में शामिल होने से इनकार कर दिया। उन्होंने अपनी खिचड़ी पकानी चाही।
कांग्रेस ने इस खेल को ठीक से समझा। कांग्रेस ने अपना प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी को बनाया और उसके बाद कांग्रेस ने तेलंगाना के राजनीतिक खेल में वापसी की। हाल ही में राहुल गांधी की रैलियों में वहां सैलाब उमड़ा। हालांकि मुख्यधारा के मीडिया ने उसे महत्व नहीं दिया। लेकिन तेलंगाना में ये भी हो रहा था कि लोग बीआरएस और भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं। जिनमें कई प्रमुख नेता भी शामिल हैं। राजनीतिक पंडितों की मानें तो तेलंगाना में अब कांग्रेस पहले नंबर पर, बीआरएस दूसरे नंबर पर भाजपा तीसरे नंबर पर चल रही है। मोदी की अब दो होने वाली रैलियों से कितना फर्क पड़ेगा, इसका इंतजार करना होगा।
मोदी का एमपी दौराः मध्य प्रदेश में मोदी पिछले चार महीनों में पांच बार आ चुके हैं और अब सोमवार 2 अक्टूबर को एक दिवसीय दौरे पर फिर आ रहे हैं। वो ग्वालियर संभाग में दो रैलियां करने वाले हैं। इसके बाद मोदी 6 अक्टूबर को एमपी का दौरा फिर से करेंगे। क्योंकि उस दिन उन्हें वहां से राजस्थान भी जाना है। 6 अक्टूबर को वो जबलपुर जा सकते हैं।
पांच राज्यों के चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा मध्य प्रदेश की हो रही है। उसकी वजह भी पीएम मोदी हैं। मध्य प्रदेश में इस बार चुनाव खुद मोदी और अमित शाह लड़ रहे हैं। अमित शाह के दौरे तो मोदी से भी ज्यादा हो रहे हैं। यहां पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को स्पष्ट तौर पर किनारे कर दिया गया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया का रुतबा भाजपा ने मटियामेट कर दिया है। केंद्र से भेजे गए मंत्री और सांसद एमपी में विधायकी का चुनाव लड़ने जा रहे हैं। मीडिया का एक वर्ग इसमें भी अमित शाह का मास्टर स्ट्रोक खोज लाया है। लेकिन ये गतिविधियां बता रही हैं कि मध्य प्रदेश में भाजपा परेशान है। तमाम भाजपा नेता कांग्रेस में जा चुके हैं। 2018 के चुनाव में एमपी में कांग्रेस सरकार ही बनी थी। लेकिन ऑपरेशन लोटस चलाकर उस सरकार को गिरा दिया गया। तमाम विधायक भाजपा में आ गए। शायद मध्य प्रदेश उस राजनीतिक घटना को भूला नहीं है। ऐसे में अब जब परीक्षा की घड़ी आई है तो भाजपा को पसीने आ रहे हैं।
राजस्थान के रण में भी मोदीः पीएम वहां 2 अक्टूबर को चित्तौगढ़ में रैली करने आ रहे हैं और फिर 6 अक्टूबर को भी उनकी रैली जोधपुर में रखी गई है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। इस बार उम्मीद की जा रही थी कि परंपरा के मुताबिक भाजपा आसानी से वापसी कर लेगी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत फिर से भूतपूर्व हो जाएंगे। लेकिन राजस्थान में अभूतपूर्व घटनाएं हो रही हैं।
राजस्थान की पूर्व सीएम और भाजपा की वरिष्ठ नेता वसुंधरा राजे को भाजपा ने सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया है, इसलिए वो पीछे हट गई हैं और भाजपा को उसके हाल पर छोड़ दिया है। राजस्थान में भाजपा की परिवर्तन रैलियों से भी वो दूर रहीं। अलबत्ता पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के आने पर वो अनमने ढंग से मंच पर या आसपास खड़ी हो जाती हैं लेकिन किसी भूमिका में नजर नहीं आतीं। इसका नतीजा यह निकला की राजस्थान में भाजपा वसुंधरा के वफादारों और पार्टी कैडर के बीच बिखर गई। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ताबड़तोड़ ऐसी योजनाएं पेश कर दी हैं कि जनता को उन्हें नजरन्दाज करना मुश्किल हो रहा है। हालांकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी अभी भी राजस्थान में भाजपा-कांग्रेस में नजदीकी लड़ाई बता रहे हैं लेकिन फिलहाल कांग्रेस को बढ़त हासिल है, यह कहने में कोई संकोच नहीं है।
छत्तीसगढ़ में संभावनाओं की तलाशः छत्तीसगढ़ पर हालांकि कांग्रेस का कब्जा है और तमाम सर्वे में शुरू से ही बताया जा रहा है कि भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस को यहां से हटाना बहुत ही मुश्किल है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम रमन सिंह का पिछले पांच वर्षों से दूर-दूर तक कोई अतापता नहीं है। यहां तक कि वो सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी नहीं दिखाई देते। लेकिन पीएम मोदी यहा भी संभावनाएं तलाशने में कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
मोदी अभी 30 सितंबर को बिलासपुर में आए थे और मोदी की गारंटी पर लंबा चौड़ा भाषण करके गए हैं। हालांकि भाजपा यहां जिस भीड़ की उम्मीद कर रही थी, वो भीड़ यहां उमड़ी नहीं है। अब पीएम मोदी 3 अक्टूबर को फिर से छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं और जगदलपुर में रैली को संबोधित करेंगे। जगदलपुर दरअसल आदिवासी बहुल इलाका है। भाजपा के कद्दावर आदिवासी नेता नंदकुमार साय काफी पहले भाजपा से कांग्रेस में जा चुके हैं। भाजपा जगदलपुर के बहाने इसका असर भी देखना चाहती है।
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कुल मिलाकर चार राज्यों में इन छह रैलियों से भाजपा जमीन तलाशने की उम्मीद कर रही है। पीएम की इन ताबड़तोड़ रैलियों का तो यही मतलब है। क्योंकि इन चार राज्यों में भाजपा का प्रदेश स्तरीय और स्थानीय नेतृत्व कहीं दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है। मोदी और अमित शाह ने जिस तरह से इन चार राज्यों में चुनाव को हाथ में लिया है, उसका सीधा संबंध 2024 के लोकसभा चुनाव से भी है। ऐसे में गाड़ी इस पार या उस पार। देखना है कि मोदी मैजिक और कमजोर होगा या थोड़ी बहुत चमक फिर से बिखेरेगा। कांग्रेस के पास दो राज्य बचाने और दो राज्य जीतने का मौका है।
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