संसद की एक संयुक्त समिति अभी "एक देश, एक चुनाव" पर विचार कर रही है, लेकिन बीजेपी किसी और खेल में जुटी हुई है। समानांतर चुनावों के पक्ष में आमराय बनाने के लिए बीजेपी ने देशव्यापी अभियान शुरू किया है।
जनवरी में दिल्ली में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में भाजपा के नेताओं की एक बैठक आयोजित की गई। जिसमें इस अभियान के लिए जनसंपर्क कार्यक्रम पर चर्चा की गई। इसके तहत दल विभिन्न सामाजिक संगठनों, गैर-सरकारी संगठनों, शिक्षाविदों, वकीलों और व्यापारिक समूहों को अपने स्तर पर चर्चा करने के लिए शामिल करने की योजना बनाई गई। भाजपा इन चर्चाओं में अपने नेताओं को भेजकर जनता को अपनी राय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजने का आह्वान करेगी। यानी आयोजन एनजीओ करेंगे, बीजेपी के नेता इसमें जाकर अपनी बात रखेंगे। फिर जनता से कहा जायेगा कि वो अपनी राय राष्ट्रपति को भेजे।
अभियान के मकसद पर एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, "हम केंद्र और विभिन्न राज्यों में बहुमत में हैं। इस बिल को राज्यों में पारित करने में कोई बाधा नहीं है। लेकिन हम एक देश, एक चुनाव को एक जन आंदोलन बनाना चाहते हैं।" यानी वो इसे ऐसा नहीं दिखाना चाहते कि देश पर इसे बीजेपी थोप रही है। बल्कि वो ऐसे हालात बनाना चाहते हैं कि जनता खुद इसके लिए मांग करे।
इस अभियान की योजना तब तैयार की गई जब बिल को संसदीय सत्र के दौरान संयुक्त समिति को सौंपा गया था। समिति की तीसरी बैठक 25 फरवरी को है।
भाजपा सूत्रों के अनुसार, शिवराज सिंह चौहान, राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल और राष्ट्रीय सचिव ओम प्रकाश धनखड़ इस अभियान को राष्ट्रीय स्तर पर देख रहे हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में इस कार्यक्रम का संचालन बिहार और मेघालय के पूर्व राज्यपाल फागू चौहान के नेतृत्व में गठित दल के नेता कर रहे हैं। जबकि इसके लिए कोऑर्डिनेशन का काम धनखड़ को सौंपा गया है।
उत्तर प्रदेश के भाजपा के राज्य महासचिव और राज्य विधान परिषद के सदस्य अनूप गुप्ता ने कहा, "हम विभिन्न सामाजिक संगठनों और लोगों के साथ बातचीत कर रहे हैं और उन्हें अपनी राय देने पर जोर दे रहे हैं। उनकी जो भी राय हो – समर्थन में या विरोध में – उनसे आग्रह कर रहे हैं कि वे इसे लिखित रूप में राष्ट्रपति को भेजें।"
उत्तर प्रदेश के कानपुर में, कारोबारी समूह के साथ बातचीत की जा चुकी है, जबकि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में शिक्षाविदों और छात्रों के साथ भी ऐसी बैठकें होने की उम्मीद है। भाजपा के एक नेता ने कहा, "इन बैठकों में 'एक देश, एक चुनाव' के समर्थन में प्रस्ताव पारित किए जाएंगे।" उन्होंने यह भी कहा कि कई स्थानीय निकाय यानी नगर निगम, नगर पालिका, पंचायत स्तर पर भी ऐसे प्रस्ताव पारित कराये जायेंगे।
"एक देश, एक चुनाव" के मुद्दे पर जनसमूहों में उसके नेता-कार्यकर्ता क्या बोलेंगे, इसकी भी योजना को अमली जामा पहना दिया गया है। कार्यकर्ताओं को तैयार करने के लिए, भाजपा ने एक 20-पेजों का दस्तावेज बांटा है। जिसमें इस प्रस्ताव का इतिहास, वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में इसकी जरूरत, फायदे और अन्य देशों में हो रहे इस पैटर्न के चुनावों की पूरी जानकारी इसमें दी गई है। कार्यकर्ता जनता के बीच इनके आधार पर बात करेंगे और आमराय तैयार करेंगे।
भाजपा के दस्तावेज में कहा गया है कि समानांतर लोकसभा और विधानसभा चुनाव "बेकार खर्च" और शासन में "रुकावट" को खत्म करेंगे। इसमें 1951 से 1967 तक के समानांतर चुनावों के इतिहास को भी बताया गया है, जब राज्यों में अल्पमत सरकारें बनने लगीं थीं। यह भी उल्लेख किया गया है कि भाजपा ने 1984 में समानांतर चुनावों को फिर से लागू करने का वादा किया था और पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के चुनावी घोषणापत्र में इस प्रस्ताव को शामिल किया था।
दस्तावेज में स्वीडन और दक्षिण अफ्रीका के समानांतर चुनावों के मॉडल का उदाहरण दिया गया है, जहां राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चुनाव एक साथ होते हैं।
भाजपा के दस्तावेज में वर्तमान चुनाव प्रणाली की "चुनौतियों" पर एक खंड भी है, जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी के चुनावी राजनीति पर ध्यान केंद्रित करने के कारण नीतियों को लागू करने में देरी की बात शामिल है। इसमें एक चैप्टर का शीर्षक है- "एक और चुनौती है 'मुफ्तखोरी की राजनीति का उदय', जो राज्यों की वित्तीय स्थिति को प्रभावित करती है।"
- इसमें यह तक कहा गया है कि चुनाव के दौरान मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट (MCC) लागू करने से जनता के लिए कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में देरी होती है।
"एक देश, एक चुनाव" के बारे में एक सवाल का जवाब देते हुए इस दस्तावेज में कहा गया कि क्षेत्रीय दल प्रासंगिक बने रहेंगे और एक देश, एक चुनाव उनके हितों के खिलाफ नहीं है।
(रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी)
अपनी राय बतायें