Glad to meet #Bihar Chief Minister Shri @NitishKumar in #Bhubaneswar. #Odisha shares a special bond with Bihar and the people of the neighbouring state. Hope he had a pleasant and fruitful stay in Odisha. pic.twitter.com/tPGtvRisAz
— Naveen Patnaik (@Naveen_Odisha) May 9, 2023
नीतीश 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के ख़िलाफ़ एक महागठबंधन बनाने के लिए समान विचारधारा वाले विपक्षी दलों को एकजुट करने के मिशन पर हैं, जबकि नवीन पटनायक हाल के वर्षों में किसी भी गठबंधन से दूरी बनाए रखे हुए हैं, चाहे वह भाजपा या कांग्रेस के नेतृत्व में हो। बहरहाल, समझा जाता है कि नीतीश कुमार ने उन दलों को भी साथ जोड़ने की पहल की है जो कांग्रेस के साथ विपक्षी एकता में आने में असहज महसूस करते हैं। इसमें टीएमसी, आप और समाजवादी पार्टी प्रमुख हैं। इसी कड़ी में नीतीश की नवीन पटनायक से मुलाक़ात बेहद अहम है।
पटनायक देश के किसी भी राज्य के सबसे लंबे समय तक रहने वाले मुख्यमंत्रियों में से एक हैं और वह नीतीश कुमार की तरह बीजेपी के पूर्व सहयोगी हैं। 2008 में एनडीए से बाहर निकलने के बाद से उन्होंने कांग्रेस और बीजेपी से समान दूरी बनाए रखने की कोशिश की है। हालांकि, उन्होंने संसद में कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने में बीजेपी सरकार का समर्थन किया है।
नीतीश कुमार गुरुवार को मुंबई में एनसीपी प्रमुख शरद पवार और शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे से भी मुलाकात करेंगे। समझा जाता है कि नीतीश की ऐसी बैठकें लगातार जारी रहेंगी। हाल के कई महीनों से नीतीश इसी प्रयास में लगे हुए हैं।
अखिलेश यादव से मुलाक़ात से पहले कोलकाता में नीतीश कुमार-तेजस्वी यादव की बैठक बेहद सफल रही थी। बैठक के बाद नीतीश और ममता ने कहा था कि हम सब एकजुट हैं। कहीं कोई मसला नहीं है।
ममता ने कहा था, 'मैंने नीतीश जी से अनुरोध किया है कि विपक्षी एकता की बैठक बिहार से हो। क्योंकि वहीं से जयप्रकाश नारायण जी ने अपना आंदोलन शुरू किया था। बिहार में बैठक के बाद हम लोग तय करेंगे कि हमें आगे कैसे बढ़ना है। लेकिन उससे पहले हमें यह संदेश देना चाहिए कि हम एकजुट हैं। मैंने पहले भी इसके बारे में कहा है कि मुझे विपक्षी एकता को लेकर कोई आपत्ति नहीं है। मैं चाहती हूं कि बीजेपी जीरो हो जाए, जो मीडिया के समर्थन से हीरो बन गए हैं।'
इन मुलाक़ातों को लेकर अहम बात यह है कि नीतीश उन दलों से भी मुलाक़ात कर रहे हैं जिन दलों की कांग्रेस के साथ तालमेल उतनी अच्छी नहीं है। कुछ दिन पहले उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल से भी मुलाक़ात की थी। केजरीवाल ने भी उनको विपक्षी एकता का भरोसा दिया। उस दौरान नीतीश ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से भी मुलाक़ात की थी।
नीतीश के साथ बैठक में राहुल गांधी सहित कई नेताओं ने कहा था, 'हमने यहाँ एक ऐतिहासिक बैठक की। बहुत सारे मुद्दों पर चर्चा की गई और हमने फ़ैसला किया कि हम सभी दलों को एकजुट करेंगे और आगामी चुनाव एकजुट तरीके से लड़ेंगे। हमने यह फैसला किया है और हम सभी इसके लिए काम करेंगे।'
पहले बीजेपी के लिए विपक्षी एकता बड़ी मुश्किल नहीं पेश कर पाई थी तो इसकी कई वजहें रहीं। उनमें से एक तो यही है कि विपक्ष की सभी बड़ी पार्टियाँ एक साथ नहीं आ पाईं।
और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने साफ कह दिया था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी अमेठी और रायबरेली से अपने प्रत्याशी खड़े करेगी। अमेठी और रायबरेली गांधी परिवार की परंपरागत सीट है और सपा हमेशा से उनके सम्मान में यहां से प्रत्याशी नहीं खड़े करती रही है।
हाल में आए कांग्रेस और सपा में बयानबाजी के बाद से तनाव बढ़ गया था और दोनों दलों के बीच दूरियाँ बढ़ गई थीं।
उन्होंने तब विपक्षी एकता को धता बता दिया था जब वह नवंबर 2021 में दिल्ली पहुँची थीं। दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मिलने वाली ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी से मुलाक़ात को लेकर एक सवाल के जवाब में पहले तो कहा था कि 'वे पंजाब चुनाव में व्यस्त हैं', लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि 'हमें हर बार सोनिया से क्यों मिलना चाहिए? क्या यह संवैधानिक बाध्यता है?' ममता बनर्जी के इस बयान में तल्खी तो दिखी ही थी, इसके संकेत भी साफ़-साफ़ मिले थे। तब उनके उस बयान को उस संदर्भ में देखा गया था जिसमें ममता अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस का पूरे देश में विस्तार करने में जुटी थीं और उसमें कई नेता कांग्रेस छोड़कर शामिल हो चुके थे।
तब दिल्ली में कीर्ति आज़ाद टीएमसी में शामिल हुए थे। गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरो के अलावा महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं सुष्मिता देव, उत्तर प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे ललितेश पति त्रिपाठी और राहुल गांधी के पूर्व सहयोगी अशोक तंवर भी कांग्रेस से टीएमसी में शामिल हो गए थे।
पहले माना जाता रहा था कि ममता बनर्जी और सोनिया गांधी के बीच अच्छे समीकरण रहे हैं। दोनों नेता अक्सर विपक्षी एकता की बात करती रही हैं और बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए के ख़िलाफ़ एकजुटता की बात करती रही थीं।
कुछ ऐसी ही स्थिति अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप और कांग्रेस के बीच संबंधों को लेकर भी रही है। लेकिन नीतीश ने अब आप के साथ ही टीएमसी और सपा से बातचीत को काफ़ी आगे बढ़ा दिया है और उन्हें काफ़ी सकारात्मक संदेश मिले हैं। इससे पहले वह टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू, तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव से भी मिले हैं। वैसे, कांग्रेस के साथ आरजेडी, डीएमके, शिवसेना, एनसीपी के साथ ही एनसी, पीडीपी जैसे कई दलों के साथ आने की संभावना है। ऐसे में नीतीश क़रीब-क़रीब सभी प्रमुख विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने में कामयाब हो सकते हैं।
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