नीतीश कुमार पहले दिन में ममता बनर्जी से मिले थे, शाम को अखिलेश यादव से। कयास लगाए जा रहे हैं कि अब वह नवीन पटनायक से मिल सकते हैं। इसके क्या मायने हैं? विपक्षी एकता। लेकिन क्या यह पहले कई बार बनी विपक्षी एकता की तरह ही है या फिर इस बार कुछ अलग है? कहीं ज़्यादा विपक्षी पार्टियों की एक बड़ी छतरी के नीचे आने की संभावना कितनी है? यह पहले से कैसे अलग है? इन सवालों के जवाब बाद में पहले यह जान लें कि आज नीतीश की ममता और अखिलेश से मुलाक़ात में क्या निकला।
लखनऊ में मुलाक़ात के बाद अखिलेश यादव के साथ प्रेस कॉन्फ़्रेंस करने के लिए नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव पहुँचे। अखिलेश यादव ने कहा कि लोकतंत्र व संविधान को बचाने के लिए, बीजेपी को हटाने में हम नीतीश, तेजस्वी के साथ हैं। नीतीश कुमार ने भी कुछ इसी तरह की बात कही कि विपक्षी एकता के लिए सभी दल साथ आ रहे हैं।
अखिलेश यादव से मुलाक़ात से पहले विपक्षी एकता के मिशन पर कोलकाता पहुंचे नीतीश कुमार-तेजस्वी यादव की बैठक बेहद सफल रही। बैठक के बाद नीतीश और ममता ने कहा कि हम सब एकजुट हैं। कहीं कोई मसला नहीं है। ममता ने कहा, 'मैंने नीतीश जी से अनुरोध किया है कि विपक्षी एकता की बैठक बिहार से हो। क्योंकि वहीं से जयप्रकाश नारायण जी ने अपना आंदोलन शुरू किया था। बिहार में बैठक के बाद हम लोग तय करेंगे कि हमें आगे कैसे बढ़ना है। लेकिन उससे पहले हमें यह संदेश देना चाहिए कि हम एकजुट हैं। मैंने पहले भी इसके बारे में कहा है कि मुझे विपक्षी एकता को लेकर कोई आपत्ति नहीं है। मैं चाहती हूं कि बीजेपी जीरो हो जाए, जो मीडिया के समर्थन से हीरो बन गए हैं।'
इन मुलाक़ातों को लेकर अहम बात यह है कि नीतीश उन दलों से मुलाक़ात कर रहे हैं जिन दलों की कांग्रेस के साथ तालमेल उतनी अच्छी नहीं है। कुछ दिन पहले उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल से मुलाक़ात की थी। केजरीवाल ने भी उनको विपक्षी एकता का भरोसा दिया। उस दौरान नीतीश ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से भी मुलाक़ात की थी।
नीतीश के साथ बैठक में राहुल गांधी सहित कई नेताओं ने कहा था, 'हमने यहाँ एक ऐतिहासिक बैठक की। बहुत सारे मुद्दों पर चर्चा की गई और हमने फ़ैसला किया कि हम सभी दलों को एकजुट करेंगे और आगामी चुनाव एकजुट तरीके से लड़ेंगे। हमने यह फैसला किया है और हम सभी इसके लिए काम करेंगे।'
पहले बीजेपी के लिए विपक्षी एकता बड़ी मुश्किल नहीं पेश कर पाई थी तो इसकी कई वजहें रहीं। उनमें से एक तो यही है कि विपक्ष की सभी बड़ी पार्टियाँ एक साथ नहीं आ पाईं।
पिछले महीने ही टीएमसी चीफ ममता बनर्जी ने अचानक कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से ख़बर आई थी कि ममता ने अपनी पार्टी की बैठक में कहा था- "अगर राहुल गांधी विपक्ष का चेहरा हैं, तो कोई भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना नहीं बना पाएगा। राहुल गांधी पीएम मोदी की 'सबसे बड़ी टीआरपी' हैं।"
और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने साफ कह दिया था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी अमेठी और रायबरेली से अपने प्रत्याशी खड़े करेगी। अमेठी और रायबरेली गांधी परिवार की परंपरागत सीट है और सपा हमेशा से उनके सम्मान में यहां से प्रत्याशी नहीं खड़े करती रही है। लेकिन हाल में आए कांग्रेस और सपा में बयानबाजी के बाद से तनाव बढ़ गया था और दोनों दलों के बीच दूरियाँ बढ़ गई थीं।
क़रीब डेढ़ महीने पहले ही ममता ने घोषणा कर दी थी कि तृणमूल कांग्रेस अगले साल लोगों के समर्थन से अकेले ही चुनाव लड़ेगी। उससे पहले विपक्षी दलों के बीच राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान भी सहमति नहीं बन पाई थी। वे कोई आपसी सहमति से उम्मीदवार भी नहीं उतार पाए थे। टीएमसी ने प्रयास किया और एक चेहरा उतारा भी था, लेकिन बाद में ममता ही पलट गई थीं। ममता ने बाद में कहा था कि अगर उन्हें पता होता कि द्रौपदी मुर्मू सरकार की तरफ़ से उम्मीदवार होने वाली हैं तो वो कभी भी सिन्हा का नाम आगे नहीं बढ़ातीं। उपराष्ट्रपति के नाम पर मार्ग्रेट अल्वा का नाम इसलिये पसंद नहीं है कि उनसे इस बारे में कोई सलाह नहीं ली गई।
उन्होंने तब विपक्षी एकता को धता बता दिया था जब वह नवंबर 2021 में दिल्ली पहुँची थीं। दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मिलने वाली ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी से मुलाक़ात को लेकर एक सवाल के जवाब में पहले तो कहा था कि 'वे पंजाब चुनाव में व्यस्त हैं', लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि 'हमें हर बार सोनिया से क्यों मिलना चाहिए? क्या यह संवैधानिक बाध्यता है?' ममता बनर्जी के इस बयान में तल्खी तो दिखी ही थी, इसके संकेत भी साफ़-साफ़ मिले थे।
तब ममता बनर्जी लगातार कांग्रेस के नेताओं को तोड़ रही थीं। गोवा से लेकर दिल्ली, हरियाणा और यूपी में जिन नेताओं को तृणमूल अपने खेमे में ला रही थी उनमें सबसे ज़्यादा नुक़सान कांग्रेस का ही हो रहा था।
तब दिल्ली में कीर्ति आज़ाद टीएमसी में शामिल हुए थे। गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरो के अलावा महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं सुष्मिता देव, उत्तर प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे ललितेश पति त्रिपाठी और राहुल गांधी के पूर्व सहयोगी अशोक तंवर भी कांग्रेस से टीएमसी में शामिल हो गए थे।
पहले माना जाता रहा था कि ममता बनर्जी और सोनिया गांधी के बीच अच्छे समीकरण रहे हैं। दोनों नेता अक्सर विपक्षी एकता की बात करती रही हैं और बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए के ख़िलाफ़ एकजुटता की बात करती रही थीं।
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