बंगाल के मुकुल रॉय और महाराष्ट्र के अजीत पवार भारतीय राजनीति के दो ऐसे नेता है, जिनका कोई भरोसा नहीं है कि वे कब बीजेपी से हाथ मिला रहे होते हैं और कब अपनी अपनी पार्टी के साथ खड़े हैं। मुकुल रॉय बीजेपी नेता थे, एक दिन टीएमसी में चले आए, अब फिर बीजेपी में जाने को बेकरार हैं। कल कोलकाता से दिल्ली के लिए चले थे, दिल्ली आकर गायब हो गए। अजीत पवार दो दिन पहले तक नागपुर में महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के मंच पर आस्तीन फेंट रहे थे और अब उनके बारे में खबर है कि वो एमवीए और एनसीपी के लिए आस्तीन का सांप हो रहे हैं। हालांकि वो खंडन भी कर रहे हैं।
मुकुल रॉय की कहानी
पहले मुकुल रॉय के बारे में जानिए वो किन केसों का और किन हालात का सामना कर रहे हैं। टीएमसी विधायक मुकुल रॉय कल शाम को कोलकाता से दिल्ली के लिए फ्लाइट से रवाना हुए। फ्लाइट रात 10 बजे दिल्ली में लैंड कर गई। लेकिन मुकुल रॉय का घर से कोई संपर्क नहीं है। उनके बेटे शुभ्रांशु रॉय ने एफआईआर करा दी है। खबर है कि मुकुल रॉय बीजेपी नेताओं के संपर्क में हैं और उनके नेतृत्व में टीएमसी के कुछ विधायकों को तोड़ने की योजना को अंजाम दिया जा रहा है।
मुकुल रॉय 1998 में बंगाल की राजनीति में एक्टिव थे। किसी समय वो टीएमसी में ममता बनर्जी के बाद नंबर 2 पर थे। मुकुल रॉय के खुद के बयान के मुताबिक उनके खिलाफ 44 केस दर्ज हैं। लेकिन शारदा चिट फंड घोटाले में मुकुल का नाम आया तो वो 2017 में टीएमसी छोड़कर बीजेपी में चले गए। उनके खिलाफ शारदा चिट फंड घोटाला मामला दब गया। बीजेपी और टीएमसी अब उसकी बात नहीं करते। किसी समय ईडी और सीबीआई दोनों ही शारदा चिट फंड घोटाले की जांच कर रहे थे।
2021 में जब बीजेपी बुरी तरह बंगाल का चुनाव हार गई तो मुकुल रॉय फिर से टीएमसी में लौट आए। लेकिन हाशिए पर पड़े थे। अब वो फिर से बीजेपी को अपनी सेवाएं देने को बेकरार हैं।
वजह यही है कि टीएमसी में आने के बावजूद मुकुल रॉय को टीएमसी भाजपाई ही मानते रहे। 2022 में टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष ने शारदा और नारद घोटाले में मुकुल रॉय को भाजपाई नेता बताते हुए गिरफ्तारी की मांग की थी। हालांकि मुकुल रॉय उस समय और अभी भी टीएमसी में हैं। कुणाल घोष ने ट्विटर पर लिखा था कि ईडी और सीबीआई अब शारदा और नारद घोटाले में मुकुल रॉय को क्यों नहीं अरेस्ट कर रही है। वैसे मुकुल रॉय के खिलाफ एक टीएमसी विधायक सत्यजीत विश्वास की 2019 में हुई हत्या का मामला पेंडिंग है। बंगाल पुलिस जनवरी 2020 में हवाला के एक मामले में मुकुल रॉय से पूछताछ कर चुकी है।
अजित पवार की कहानी
अजित पवार कई महीने से गायब थे। वे एनसीपी की बैठकों में भी नहीं आ रहे था। हालांकि उनके पास नेता विपक्ष जैसा महत्वपूर्ण पद है। हाल ही में वो नागपुर में एमवीए की रैली में दिखे और कहा कि बीजेपी में जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता। लेकिन इसके बाद उन्होंने पुणे में होने वाली अपनी रैली टाल दी। एनसीपी प्रमुख शरद पवार के बयान पहले से ही आ रहे थे। वो अडानी केस में जेपीसी का विरोध कर चुके थे। वे प्रधानमंत्री की डिग्री पर सवाल उठाने पर आपत्ति जता चुके थे। अजीत पवार ने भी मुखर होकर पीएम मोदी की डिग्री पर सवाल उठाने के मुद्दे पर कड़ा बयान दिया। अभी यह सब चल रहा था कि शरद पवार ने संकेत दिया कि एनसीपी तो विपक्षी दलों के साथ खड़ी है लेकिन उनकी पार्टी के कुछ विधायक टूट सकते हैं। फिर खबर आई कि अजीत पवार ने 40 विधायकों का समर्थन हासिल कर लिया है और बीजेपी की मदद से महाराष्ट्र के सीएम बनने जा रहे हैं।
अजीत पवार और हसन मुश्रीफ और कुछ और लोगों पर कई साल पहले महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक में बतौर संचालक बड़ा घोटाला करने का आरोप लगा। आरोप है कि अजीत पवार और बाकियों पर 25 हजार करोड़ के स्कैम का आरोप इस बैंक के जरिए करने का आरोप है। यह स्कैम कभी दब जाता है तो कभी एकदम उभर जाता है। 2019 में जब एनसीपी से बगावत कर अजीत पवार ने बीजेपी की सरकार बनवाई थी और खुद उपमुख्यमंत्री बने तो अजीत पवार ने आनन-फानन में अपने खिलाफ कई सारे मुकदमों को वापस ले लिया। महाराष्ट्र एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के मुताबिक अजीत ने 9 केस वापस ले लिए। ये सभी 9 केस सिंचाई घोटाले से जुड़े हैं। सिंचाई घोटाले में 11 केस दर्ज हुए थे और उसमें अजीत पवार पर 70 हजार करोड़ के स्कैम का आरोप है।
अजीत पवार ईडी के निशाने पर हमेशा रहे हैं। अभी एक चीनी मिल को बेचने और उसमें करोड़ों की रकम से हवाला करने का आरोप लगा है। लेकिन अभी 15 दिनों पहले ईडी ने जो चार्जशीट कोर्ट में पेश की, उसमें अजीत पवार और उनकी पत्नी का नाम नहीं था। इस चार्जशीट के दायर होने के बाद ही अजीत पवार के रुख में बदलाव हो गया था। जबकि ईडी इससे पहले सूत्रों के हवाले से मीडिया को खबर दे रही थी कि महाराष्ट्र के कोऑपरेटिव घोटाले में अजीत पवार बच नहीं सकते। मॉरल ऑफ द स्टोरी ये है कि 2019 में जब अजीत पवार ने एनसीपी से बगावत कर बीजेपी सरकार बनवाई थी तो सिंचाई घोटाले का सारे केस वापस हो गए थे। इस बार की बगावत या मधुर भाजपाई संबंध उनको कोऑपरेटिव घोटाले से मुक्ति दिला देंगे।
हालांकि एनसीपी के और भी नेता ईडी और सीबीआई जांच का सामना कर रहे हैं। जिनमें छगन भुजबल, प्रफुल्ल पटेल, नवाब मलिक, हसन मुश्रीफ प्रमुख हैं। इसलिए एनसीपी में अगर कोई विभाजन होता है तो जाहिर है कि उसका संबंध केंद्रीय एजेंसियों की जांच से ही जोड़ा जाएगा।
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