यूपी में सोशल इंजीनियरिंग कर सत्ता में आने के लिए ख़्यात मायावती क्या अब एक नया प्रयोग कर रही हैं? एक समय ब्राह्मण और दलितों को साथ लाकर प्रयोग करने वाली मायावती अब दलितों और आदिवासियों को साथ लाने का प्रयोग कर रही हैं। इसके लिए उन्होंने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी यानी जीजीपी के साथ गठबंधन किया है। लेकिन सवाल है कि क्या यह गठजोड़ उस तरह कारगर होगा जैसा कि यूपी में ब्राह्मण-दलित गठजोड़ हुआ था और मायावती को सीएम की कुर्सी मिली थी?
बीएसपी ने जीजीपी के साथ उन राज्यों में गठजोड़ किया है जहाँ आम तौर पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही मुक़ाबला रहा है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इस बार भी दोनों दलों के बीच ही मुकाबला बताया जा रहा है। हालाँकि, दोनों राज्यों में बीएसपी कुछ सीटें ज़रूर जीतती रही है।
2018 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने मध्य प्रदेश में दो सीटें जीती थीं और 5 फीसदी मत पाए थे। छत्तीसगढ़ में भी इसने 2 सीटें जीती थीं और क़रीब 4 फ़ीसदी वोट हासिल किए थे। हालाँकि, जीजीपी का भी खास जनाधार नहीं रहा है और पिछले चुनावों तो उसके अधिकतर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। तो सवाल है कि इन दोनों राज्यों में कितना असर पड़ेगा? और क्या मायावती की नज़र इस गठबंधन को लेकर इन दोनों राज्यों पर ही है या फिर यूपी के लिए भी कुछ तैयारी है?
ऐसा कहा जा रहा है कि मायावती की रणनीति 2024 के लोकसभा चुनावों और 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए 'दलित और आदिवासी मतदाताओं को एक साथ' लाने की कोशिश करने की है। यह एक नई सोशल इंजीनियरिंग की तरह है।
बीएसपी को उम्मीद है कि अगर जीजीपी के साथ गठबंधन का उसका प्रयोग एमपी और छत्तीसगढ़ चुनावों में काम करता है, तो इससे पार्टी को यूपी के आदिवासी बहुल जिलों में भी चुनावी फायदा हो सकता है।
बता दें कि क़रीब 10 दिन पहले ही 230 सदस्यीय एमपी विधानसभा और 90 सदस्यीय छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव के लिए सीट-बँटवारा हो गया है। इसके अनुसार मध्य प्रदेश में बसपा 178 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि जीजीपी 52 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। छत्तीसगढ़ में बसपा 53 सीटों पर चुनाव लड़ेगी जबकि जीजीपी 37 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी।
एमपी में अनुसूचित जनजाति के लिए 47 और अनुसूचित जाति के लिए 35 सीटें आरक्षित हैं। छत्तीसगढ़ में 29 सीटें एसटी-आरक्षित हैं और 10 सीटें एससी के लिए आरक्षित हैं। मध्य प्रदेश की आबादी में दलित लगभग 17 प्रतिशत हैं जबकि आदिवासी 22 प्रतिशत से अधिक हैं। छत्तीसगढ़ में दलितों की आबादी 15 फीसदी है जबकि आदिवासियों की हिस्सेदारी 32 फीसदी है। जीजीपी 2018 के विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों में कोई भी सीट जीतने में विफल रही थी, और उसके अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी।
इधर, उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से केवल दो एसटी-आरक्षित हैं, लेकिन अनुमान है कि राज्य में आदिवासी आबादी 17 जिलों में लगभग 2 प्रतिशत है। गोंड की इन सभी जिलों में मौजूदगी है। हालाँकि जीजीपी की स्थिति उत्तर प्रदेश में ठीक नहीं रही है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार जीजीपी 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ी थी, लेकिन 2017 में उसने 11 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से सभी की जमानत जब्त हो गई थी।
1991 में स्थापित जीजीपी गोंड लोगों के अधिकारों के लिए काम करती है और अलग गोंडवाना राज्य की मांग का समर्थन करती है।
अब सवाल है कि क्या मायावती इस जीजीपी के साथ गठबंधन कर राजनीति की दिशा उस तरह से बदल पाएँगी जिस तरह से क़रीब डेढ़ दशक पहले उन्होंने यूपी में बदली थी? साल 2007 में बहुजन समाज पार्टी ने सर्व समाज का नारा दिया था। सर्व समाज यानी ब्राह्मण से लेकर दलित तक सबका साथ। तब मायावती ने ब्राह्मण समुदाय को अपनी ओर जोड़ने का अभियान चलाया था। इस राजनीतिक समीकरण की सफलता पर ब्राह्मणों को भी भरोसा नहीं हुआ था। लेकिन यह समीकरण बेहद सफल रहा। इतना कि बहुजन समाज पार्टी की राज्य में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी। तो क्या फिर से कुछ वैसा ही कमाल मायावती कर पाएँगी?
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