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यहां यह बताना जरूरी है कि बसपा के ज्यादातर सांसद और विधायक जीतने के बाद भाजपा में चले गए। यानी वफादारी के मामले में मायावती को धोखा मिला या फिर उनकी सोशल इंजीनियरिंग की मिट्टी पलीत हो गई।
बसपा के शीर्ष नेतृत्व ने अपनी रैलियों का जो प्लान बनाया है। वो सभी मुस्लिम बहुल इलाकों में है। जाहिर है कि वहां मायावती की रैली होने पर मुस्लिम और दलित वोट बंट जाएगा। मुस्लिम हमेशा सपा का कोर वोटर रहा है। बसपा के राष्ट्रीय को-ऑर्डिनेटर आकाश आनंद ने अपने दौरे की शुरुआत नगीना से की। नगीना मुस्लिम बहुल इलाका है। यहां पर उन्होंने बाबरी मसजिद की बात की। उन्होंने कहा जहां भी नई बाबरी मसजिद बनेगी, बसपा उसमें सहयोग करेगी। नगीना से भाजपा, सपा, बसपा के अलावा भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद चुनाव लड़ रहे हैं। बसपा चाहती तो अपना प्रत्याशी हटाकर चंद्रशेखर आजाद का समर्थन कर सकती थी। लेकिन बसपा ने ऐसा नहीं किया। अब बसपा चाह रही है कि चंद्रशेखर चुनाव हार जाए। बसपा सिर्फ और सिर्फ चंद्रशेखर के खिलाफ प्रचार कर रही है।
मायावती ने भी पश्चिमी यूपी की मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर रैलियों की हैं। जिनमें मुरादाबाद, पीलीभीत, नगीना और बिजनौर शामिल हैं।
बसपा ने जिन 11 मुसलमानों को मैदान में उतारा है, उनमें से गोरखपुर से जावेद सिमनानी भी हैं। बसपा ने हाल के दिनों में यहां से कभी भी किसी मुस्लिम को मैदान में नहीं उतारा है, उसने भाजपा की पारंपरिक सीट से किसी ब्राह्मण या निषाद उम्मीदवार को आगे बढ़ाया है। 2019 में, उसने अपने तत्कालीन सहयोगी सपा के लिए यह सीट छोड़ दी थी।गोरखपुर में मुस्लिम और ओबीसी निषादों की अच्छी खासी संख्या है। भाजपा ने एक ब्राह्मण रवि किशन को मैदान में उतारा है, और यह देखते हुए कि निषाद पार्टी उसके सहयोगियों में से एक है, वह निषाद समर्थन पर भरोसा कर रही है। बसपा के सिमनानी सपा के मुस्लिम वोट काट सकते हैं तो जाहिर है कि इससे भाजपा को फायदा होगा।
इसी तरह एटा से बसपा ने पूर्व कांग्रेस नेता मोहम्मद इरफान को मैदान में उतारा है। इस सीट का प्रतिनिधित्व भाजपा के ओबीसी लोध दिग्गज और पूर्व सीएम कल्याण सिंह ने किया था। उनके बेटे राजवीर सिंह दो बार लोकसभा इस सीट से जा चुके हैं। एसपी ने इस सीट से एक शाक्य नेता को मैदान में उतारा है, क्योंकि उसके पास इस समुदाय के मतदाताओं की एक बड़ी संख्या है, और वह ओबीसी और मुस्लिम वोटों को भी अपने पक्ष में करने की उम्मीद कर रही थी। लेकिन बसपा के मोहम्मद इरफान ने अगर मुस्लिम वोट काटा तो भाजपा को सीधा फायदा होगा।
बसपा ने वाराणसी से पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ अतहर जमाल लारी को मैदान में उतारा है। लारी ने 2004 के लोकसभा चुनाव में अपना दल के टिकट पर वाराणसी से चुनाव लड़ा था और लगभग 93,000 वोट हासिल किए थे। हालांकि बसपा ने पिछले दो चुनावों में वाराणसी से मोदी के खिलाफ कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा था, लेकिन 2009 में उसने भाजपा के मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ इस सीट से मुख्तार अंसारी को मैदान में उतारा था। मुख्तार चुनाव हार गए थे, लेकिन करीब 1.8 लाख वोट हासिल हुआ था। यानी कहने का आशय यह है कि बसपा का मुस्लिम प्रत्याशी सीधे-सीधे मुस्लिम वोट काटेगा। हालांकि मोदी का हारना नामुमकिन है लेकिन उनकी जीत का अंतर अब और बढ़ जाएगा। कांग्रेस ने यहां से अजय रॉय को उतारा है। वाराणसी में मुस्लिम आबादी को देखते हुए अजय रॉय को काफी वोट मिल सकते थे लेकिन बसपा ने समीकरण बदलने की कोशिश की है।
सहारनपुर में भी यही हाल है। यहां से इंडिया गठबंधन के इमरान मसूद काफी मजबूत उम्मीदवार माने जाते हैं। लेकिन बसपा ने यहां से हाजी फजलुर्रहमान का टिकट काट कर माजिद अली को उतारा है। यहां पर इंडिया और भाजपा की सीधी टक्कर है लेकिन बसपा प्रत्याशी के आने से भाजपा को फायदा हो सकता है।
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