दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सभी विपक्षी दलों के नेताओं को पत्र लिखकर कहा है कि कि 23 जून को पटना बैठक में सबसे पहले दिल्ली अध्यादेश पर बात हो। उन्होंने अपने पत्र में विपक्ष से सामूहिक रूप से संसद में अध्यादेश को हराने का प्रयास करने का आग्रह किया है। केजरीवाल का कहना है कि दिल्ली अध्यादेश केंद्र सरकार का एक प्रयोग है। अगर इस पर वो जीत गई तो फिर इसे अन्य गैर बीजेपी राज्यों में भी पेश करके उन्हें परेशान किया जाएगा।
केजरीवाल के बयान की भाषा बार-बार बदल रही है। उन्होंने कल मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में सभी विपक्षी दलों से कहा कि वे लोग पहले कांग्रेस से पूछें कि दिल्ली अध्यादेश पर उसकी क्या राय है। लेकिन केजरीवाल का आज जो पत्र सामने आया है, उसमें कांग्रेस का जिक्र नहीं है। पीटीआई ने केजरीवाल के उस पत्र के आधार पर जो खबर जारी की है, उसमें कांग्रेस का दूर-दूर तक जिक्र नहीं बताया है।
बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के नेता नीतीश कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से मुकाबला करने के लिए संयुक्त रणनीति बनाने के लिए विपक्षी दलों की शुक्रवार 23 जून को बैठक बुलाई है।
केजरीवाल, जो आप के राष्ट्रीय संयोजक भी हैं, ने इस बात पर जोर दिया कि बैठक में चर्चा की जाने वाली पहली बात केंद्र के दिल्ली अध्यादेश से संबंधित विधेयक के इर्द-गिर्द होनी चाहिए।
केजरीवाल ने लिखा है कि केंद्र ने यह अध्यादेश लाकर दिल्ली में एक प्रयोग किया है। यदि यह सफल होता है, तो यह गैर-बीजेपी राज्यों में समान अध्यादेश लाएगा और समवर्ती सूची में विषयों के संबंध में राज्यों की शक्तियों को छीन लेगा।
केंद्र ने 19 मई को दिल्ली में ग्रुप-ए के अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग के लिए एक प्राधिकरण बनाने के लिए एक अध्यादेश जारी किया था, जिसे आप सरकार ने सेवाओं के नियंत्रण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ धोखा बताया था।
केंद्र सरकार का यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक हफ्ते बाद आया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया था कि पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर, दिल्ली सरकार का सेवाओं पर नियंत्रण है। वो अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग भी कर सकती है।
शीर्ष अदालत के 11 मई के फैसले से पहले दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग लेफ्टिनेंट गवर्नर के कार्यकारी नियंत्रण में थे।
अध्यादेश के बाद, केजरीवाल गैर-बीजेपी दलों के नेताओं से अध्यादेश के खिलाफ समर्थन हासिल करने के लिए पहुंचे ताकि संसद में विधेयक लाए जाने पर इसे बदलने की केंद्र की कोशिश विफल हो जाए।
अपनी राय बतायें