दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उम्र पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत से जवाब मांगा। केजरीवाल जब हाल ही में जमानत पर छूटकर बाहर आये और दो दिन बाद जब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया, तब भी उन्होंने आरएसएस प्रमुख से यही सवाल किये थे। केजरीवाल इस मुद्दे को बार-बार क्यों उठा रहे हैं, इसके पीछे उनकी पार्टी की क्या रणनीति है, इस पर इसी रिपोर्ट में आगे बातचीत होगी लेकिन पहले पढ़िये कि केजरीवाल ने बुधवार को और क्या लिखा है।
भागवत को संबोधित अपने पत्र में केजरीवाल ने कहा, 'आप सभी ने मिलकर एक कानून (पार्टी नियम) बनाया कि बीजेपी नेता 75 साल की उम्र के बाद रिटायर हो जाएंगे। इस कानून का व्यापक प्रचार किया गया और इसके तहत लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे कई दिग्गज नेताओं को रिटायर कर दिया गया।
आप प्रमुख केजरीवाल ने अपने पत्र में यह भी जानना चाहा कि क्या आरएसएस पार्टियों को तोड़ने और विपक्षी सरकारों को गिराने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जैसी केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करने की भाजपा की राजनीति से सहमत है।
केजरीवाल का चुभता सवाल
केजरीवाल ने एक और चुभता हुआ सवाल किया है। आप प्रमुख ने मोहन भागवत से पूछा कि उन्हें कैसा लगा जब भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि उनकी पार्टी को आरएसएस की जरूरत नहीं है, जो कि भाजपा की वैचारिक गुरु है। केजरीवाल ने सवाल किया कि “क्या बेटा अब इतना बड़ा हो गया है कि अपनी माँ को एटीट्यूड दिखा रहा है?”अमित शाह का जवाबः केजरीवाल जब इससे पहले लोकसभा चुनाव के दौरान प्रचार करने के लिए जेल से बाहर आये तो भी यही सवाल उठाये थे। उस समय ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जवाब दिया था। इस साल लोकसभा चुनाव से पहले, शाह ने केजरीवाल पर उनके इस दावे के लिए निशाना साधा था कि मोदी केंद्रीय गृह मंत्री को पीएम बनाने के लिए वोट मांग रहे थे क्योंकि प्रधानमंत्री अगले साल 75 साल के हो जाएंगे। शाह ने कहा कि भाजपा के संविधान में ऐसी किसी आयु सीमा पर कुछ भी नहीं लिखा है और इस मामले पर भाजपा में कोई भ्रम नहीं है।
क्या है केजरीवाल और आप की रणनीति
केजरीवाल जिस तरह मोदी की उम्र और जेपी नड्डा के बयान को बार-बार मुद्दा बना रहे हैं, उसके पीछे सोची समझी रणनीति काम कर रही है।- 1. बार-बार मुद्दा उठाने से आरएसएस और भाजपा के बीच भ्रम की स्थिति या खाई और बढ़ेगी, जिसका फायदा केजरीवाल को 2025 के दिल्ली विधानसभा में मिल सकता है। आरएसएस के काडर को प्रभावित करने की कोशिश दिखाई देती है।
- 2. बार-बार मुद्दा उठाने से केजरीवाल और आम आदमी पार्टी इस आरोप से मुक्त होना चाहती है कि वो बीजेपी की बी टीम और आरएसएस एजेंट के रूप में काम कर रही है। आप के मुस्लिम मतदाता उसे शक की नजर से देख रहे हैं।
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3. केजरीवाल और उनका संगठन कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर सत्ता में आये थे। लेकिन हरियाणा-पंजाब में गठबंधन नहीं होने के बावजूद केजरीवाल अब कांग्रेस को निशाना बनाने से बच रहे हैं। हरियाणा में उनके 3 रोड शो और 2 रैलियां हो चुकी हैं लेकिन उन्होंने कांग्रेस पर अटैक नहीं किया। 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में वो कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ना चाहते हैं, ताकि जो मुस्लिम वोट कांग्रेस में जा चुके हैं, वे गठबंधन को मिल जायें और उनकी सरकार फिर से आ जाए।
- 4. जेल से बाहर आने के बाद, सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद उन्हें अच्छी तरह समझ आ गया है कि आप अपने बूते दिल्ली का अगला चुनाव नहीं जीत सकती है। उसे किसी न किसी बड़े राजनीतिक दल का हाथ थामना ही पड़ेगा। ऐसे में कांग्रेस से बेहतर उसके लिए कुछ भी नहीं है। कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी का सॉफ्ट कॉर्नर अभी भी आप के लिए बना हुआ है। राहुल हरियाणा में सीट शेयरिंग करना चाहते थे लेकिन वहां भूपिंदर सिंह हुड्डा ने उन्हें रोक दिया था।
- 5. मोदी की लोकप्रियता दिनोंदिन कम होती जा रही है। भाजपा सिर्फ मोदी-शाह के दम पर टिकी हुई है। केजरीवाल मोदी की गिरती लोकप्रियता पर इसलिए भी प्रहार कर रहे हैं ताकि उनकी छवि एक राष्ट्रीय नेता की बन सके। हालांकि उनकी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्ज मिल चुका है लेकिन आप के किसी भी नेता की छवि राष्ट्रीय नेता की नहीं है। संजय सिंह में इस तरह का गुण दिखता है लेकिन केजरीवाल अपने सामने किसी को इस रूप में नहीं आने देना चाहते।
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