क्या एक बार फिर जनता दल यूनाइटेड और बीजेपी के रिश्ते ख़राब हो रहे हैं? यह सवाल इसलिए उठ खड़ा हुआ है कि क्योंकि जद (यू) ने कहा है कि वह राज्यसभा में नागरिकता विधेयक का विरोध करेगी। इसके अलावा जद (यू) अपने दो वरिष्ठ नेताओं को असम में इस विधेयक के विरोध में होने वाले प्रदर्शन में शामिल होने के लिए भी भेजेगी। बता दें कि लोकसभा में भी जद (यू) ने नागरिकता विधेयक के लिए हुई वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया था और उससे पहले तीन तलाक विधेयक का भी विरोध किया था।
नागरिकता विधेयक का विरोध करने का फ़ैसला पटना में हुई जद (यू) की एक बैठक में लिया गया। जद (यू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता के. सी. त्यागी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि यह विधेयक असम के लोगों की अस्मिता के ख़िलाफ़ है, इसलिए हमने इसका विरोध करने का फ़ैसला किया है। पार्टी ने त्यागी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर को 27 जनवरी को गुवाहाटी भेजने का फ़ैसला किया है। अहम बात यह है कि इस बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मौजूद थे।
जद (यू) प्रवक्ता त्यागी ने कहा कि हमने इस बारे में अभी फ़ैसला नहीं लिया है कि हम असम में उम्मीदवार उतारेंगे या नहीं। उन्होंने साफ़ कहा कि हम एक आज़ाद दल हैं और अपना स्टैंड ख़ुद ले सकते हैं।
इस ख़बर के सामने आने के बाद से ही राजनीतिक गलियारों मे यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या बीजेपी और जद (यू) के रिश्तों में खटास आ चुकी है? यहाँ एक बात और अहम है कि आख़िर जद (यू) इस मामले में इतना सख़्त रवैया क्यों अपना रही है। असम में उसका कोई जनाधार नहीं है, नागरिकता विधेयक से उसकी बिहार की राजनीति पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ने । बावजूद इसके इस मामले में खुलकर विरोध और अपने दो वरिष्ठ नेताओं को असम भेजने का यही मतलब है कि जद (यू) और बीजेपी के रिश्तों में खटास आ चुकी है।
2013 में अलग हुए थे दोनों दल
इससे पहले साल 2013 में जद (यू) ने बीजेपी के साथ कई सालों से चला आ रहा गठबंधन तोड़ दिया था। तब जद (यू) को यह आशंका थी कि बीजेपी, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर सकती है।
लोकसभा में नागरिकता विधेयक 8 जनवरी को पास हो चुका है और इसे अभी राज्यसभा में पेश किया जाना है। लेकिन जद (यू) का इसे लेकर कड़ा स्टैंड और पूरे पूर्वोत्तर में इस विधेयक के विरोध में हो रहे आंदोलन से 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सियासी राह ज़रूर मुश्किल होने जा रही है।
बता दें कि सिटिज़नशिप विधेयक की वजह से असम और उत्तर-पूर्व के राज्यों में बीजेपी के ख़िलाफ़ काफ़ी गुस्सा है। इस विधेयक के ख़िलाफ़ लोग लामबंद हैं और उग्र प्रदर्शन कर रहे हैं।
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