भारत के इतिहास में ऐसे मौक़े बहुत कम आये हैं जब किसी व्यक्ति ने देश के एक कोने से दूसरे कोने की पदयात्रा की हो। महान दार्शनिक शंकराचार्य और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का बरबस ही ख़्याल हो आता है। शंकराचार्य की यात्रा ने हिंदू धर्म को बुनियादी तौर पर बदल दिया था और चंद्रशेखर ने जनता पार्टी की पराजय से उपजी निराशा को दूर करने के लिये भारत यात्रा की थी। वो कामयाब होते इसके पहले ही इंदिरा गांधी की हत्या ने देश का परिदृश्य बदल दिया।
अब राहुल गांधी भारत को कन्याकुमारी से कश्मीर तक पैदल मथ रहे हैं और अटकलें लग रही हैं कि क्या भयानक राजनीतिक संकट में घिरी कांग्रेस को इससे नया जीवन मिल पायेगा?
ये यात्रा सिर्फ़ राहुल गांधी के पैदल चलने का नाम नहीं है, ये दरअसल कांग्रेस के अपने अंतर्मन में झांकने की यात्रा भी है, अपनी ग़लतियों और कमियों को नये सिरे से खोजने की भी यात्रा है? क्या पार्टी यात्रा के सौ दिनों में किसी निष्कर्ष पर पंहुच पायी? क्या उसे कोई नया मंत्र मिला?
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कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश पूरी यात्रा में राहुल के साथ रहे। वह आज की तारीख़ में पार्टी के बड़े रणनीतिकार माने जाते हैं। उनका कहना है, “आज़ादी के बाद कांग्रेस पार्टी एक चुनावी मशीन में तब्दील हो गई थी और विचारधारा पीछे छूट गई थी। ये यात्रा पार्टी की विचारधारा और उसके संगठन की ऊर्जा को नये सिरे से खोजने की प्रक्रिया का नाम है।”
सत्य हिंदी से बातचीत में वह आगे कहते हैं कि यात्रा से पहले बीजेपी का नैरेटिव सब तरफ़ था। यात्रा के बाद अब लोग कांग्रेस के नैरेटिव की बात करने लगे हैं। जब उनसे पूछा गया कि कांग्रेस का नया नैरेटिव क्या है, तो वह कहते हैं कि हम सिर्फ़ आज़ादी के बाद के वक्त में नहीं रह सकते हैं। बहुत कुछ बदला है।
कांग्रेस जब चुनाव की मशीन बन गई तो बीजेपी ने अपनी विचारधारा को देश के सामने रखा और उसे लोगों ने अपना भी लिया। हमें भी बदलना होगा। पुराने को छोड़ना नहीं है लेकिन नये हालात के हिसाब से तब्दीली लानी होगी। वह कहते हैं, “बीजेपी के हिंदुत्व के बरक्स कांग्रेस कहती है अनेकता में ही एकता है। यहाँ एकरूपता नहीं चल सकती। ये देश बहुधार्मिक देश है। सभी धर्मों का सम्मान होना चाहिये। किसी एक धर्म को वरीयता नहीं मिलनी चाहिये। सरकार किसी एक धर्म के साथ नहीं हो सकती। उसका काम धर्मों के बीच फ़र्क़ करना नहीं है।”
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क्या राहुल अपने को हिंदू साबित करना चाहते हैं, इसलिये वह उज्जैन में हिंदू रंग में रंगे दिखायी पड़ते हैं? इस सवाल के जवाब में रमेश कहते हैं कि जब हम गुरुद्वारे जाते हैं, मस्जिद जाते हैं तो मीडिया हमें नहीं दिखाता लेकिन मंदिर जाते हैं तो दिखाता है। हम सर्वधर्म सद्भाव की बात करते हैं। फिर वह हिंदुत्व अपनाने के सवाल पर कटाक्ष करते हैं और कन्हैया कुमार के हवाले से कहते हैं कि हिंदुत्व कोई फ़ेयर एंड लवली है कि जब चाहो मुँह पर लगा लो।
जयराम रमेश आगे कहते हैं, “कांग्रेस की विचारधारा सेकुलरिजम है, संविधान में उसकी पूरी निष्ठा है और आर्थिक क्षेत्र में पब्लिक सेक्टर पर ज़ोर हमारी विचारधारा के मुख्य अंग हैं।”
‘हाथ से हाथ जोड़ो’
यात्रा को लेकर राजनीतिक पंडितों के मन में काफ़ी आशंका है कि इससे कांग्रेस को कोई चुनावी फ़ायदा नहीं होगा और यात्रा ख़त्म होते ही फिर पहले जैसे हालत हो जायेंगे। लेकिन रमेश का कहना है कि यात्रा से पार्टी में नई ऊर्जा का संचार हुआ है और यात्रा के बाद भी ‘हाथ से हाथ जोड़ो’ तथा दूसरे और कार्यक्रमों के ज़रिये संगठन को मज़बूत करने का काम जारी रहेगा।
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जयराम रमेश ने साफ़ तौर पर कहा कि अगर कोई ये सोचे कि विपक्षी एकता के नाम पर कांग्रेस को 200 सीट दे देंगे और पार्टी मान जायेगी, ये संभव नहीं है। उनका साफ़ कहना है कि मज़बूत कांग्रेस देश के हित में है और कांग्रेस को कमजोर कर के विपक्षी एकता मज़बूत नहीं हो सकती है।
साफ़ है कि कांग्रेस को एहसास है कि पार्टी को नये सिरे से अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा, विचारधारा और संगठन पर काम करना होगा। भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल की छवि को बदलने का काम किया है और कांग्रेस को इसका फायदा मिलेगा, ऐसा कांग्रेस को लगता है।
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