चुनाव में नेता हर मौके को भुनाना चाहता है। यूपी के विधानसभा उपाध्यक्ष नितिन अग्रवाल ने आज इस्तीफा दिया और समाजवादी पार्टी भी छोड़ दी और इसे इस तरह बताया गया कि यह यूपी की बहुत बड़ी राजनीतिक खबर है। मीडिया के एक खास वर्ग ने इसे सपा को झटका जैसे भारी भरकम शब्दों से बड़ी खबर बता दी लेकिन यह नहीं बताया कि अक्टूबर 2021 में ही बागी हो चुके नितिन अग्रवाल की और असलियत क्या है।
नितिन अग्रवाल ने आज सपा प्रमुख अखिलेश यादव को भेजे गए इस्तीफे में दो लाइनें लिखी हैं। उनका इस्तीफा वैसा भी नहीं है, जैसा बीजेपी छोड़कर आने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य आदि ने पार्टी पर आरोप लगाकर छोड़ा था। नितिन अग्रवाल ने बस सूचना भर दी है कि मैं विधानसभा उपाध्यक्ष और समाजवादी पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देता हूं।
हुआ यह कि नितिन अग्रवाल ने सपा से पिछले साल ही बगावत कर दी थी और अपनी अलग लाइन ले ली थी। अक्टूबर 2021 में यूपी विधानसभा उपाध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ। आमतौर पर यह पद विपक्षी दल को मिलता है। सपा ने अपना प्रत्याशी नरेंद्र सिंह वर्मा को घोषित कर दिया। बीजेपी ने नितिन अग्रवाल को आशीर्वाद दे दिया और नितिन ने पार्टी से बगावत कर खुद को इस चुनाव में उम्मीदवार घोषित कर दिया था। बीजेपी ने राजनीतिक दांव चलते हुए नितिन अग्रवाल की उम्मीदवारी का समर्थन कर दिया। नितिन उपाध्यक्ष बन गए।
अब जब विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी तय होने लगे तो नितिन को हरदोई से अपनी उम्मीदवारी की चिन्ता हुई लेकिन सपा ने उनका टिकट काट दिया। अब नितिन अग्रवाल के सामने सपा छोड़ने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
अब देखना यह है कि बीजेपी नितिन अग्रवाल को टिकट देती है या नहीं। वैसे नितिन ने बीजेपी के भरोसे ही सपा छोड़ी है। लेकिन अभी तक किसी सूची में उनका नाम बीजेपी के संभावित प्रत्याशियों में नहीं आया है।
नितिन अग्रवाल के पिता नरेश अग्रवाल पुराने दलबदलू हैं। वो 2019 से बीजेपी में हैं। उन्होंने कांग्रेस से विद्रोह करके लोकतांत्रिक पार्टी बनाई थी। फिर वे सपा में आ गए। वे मुलायम सिंह यादव के सहयोगियों में हैं। उन्होंने मुलायम और अखिलेश के लिए वैश्य और व्यापारी सम्मेलन आयोजित कराए। नरेश अग्रवाल सत्ता के साथ रहने को मशहूर हैं। 2019 में वो सपा से सीधे बीजेपी में पहुंचे थे। अक्टूबर 2021 में बीजेपी ने जिस तरह उनके बेटे को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाया, उसकी व्यूह रचना नरेश अग्रवाल ने ही रची थी।
नरेश अग्रवाल बेटे के राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं। अब वो चाहते हैं कि बीजेपी उनके बेटे को हरदोई से टिकट देकर इस नुकसान की भरपाई करे। अगर बीजेपी ने नितिन अग्रवाल को टिकट नहीं दिया तो पिता-पुत्र बीजेपी के साधारण नेता-कार्यकर्ता बनकर रह जाएंगे। जबकि नरेश अग्रवाल की एक समय सपा में तूती बोलती थी। अब देखना यह है कि परिवारवादी राजनीति की विरोधी बीजेपी अपने नेता नरेश अग्रवाल के सुपुत्र को टिकट देती है या नहीं। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने गांधी परिवार और अखिलेश यादव पर वंशवाद की राजनीति करने का आरोप लगाया था।
नितिन अग्रवाल को बड़ी खबर बताने वाले मीडिया ने सपा से उसकी प्रतिक्रिया तक नहीं पूछी कि क्यों सपा ने नितिन के इस्तीफे और सपा से जाने को महत्व क्यों नहीं दिया।
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