भारतीय जनता पार्टी के उग्र राष्ट्रवाद का सामना करने के लिए कांग्रेस ने ग़रीबी और बेरोज़गारी जैसे आम जनता से जुड़े मुद्दों को आगे लाने का फ़ैसला कर लिया है। पुलवामा आतंकवादी हमला और बालाकोट में भारतीय वायु सेना के हमले के बाद सत्तारूढ़ बीजेपी ने जिस तरह कांग्रेस पर निशाना साधा था और राष्ट्रवाद को बहस के बिल्कुल केंद्र में ला खड़ा किया था, उससे कांग्रेस पार्टी हक्की-बक्की थी। पार्टी न तो इसका विरोध कर पा रही थी, न ही ख़ुद पर लगे आरोपों का क़रारा जवाब दे रही थी। बड़े नेता भी ख़ुद को असहाय पा रहे थे। लेकिन मंगलवार को पार्टी महासचिव प्रियंका गँधी ने अहमदाबाद में पार्टी कार्यसमिति की बैठक में यह खुल कर कहा कि कार्यकर्ता आम जनता के मुद्दों को सामने लाएँ।
यह बैठक इस मामले में अहम है कि पार्टी ने अपना स्टैंड तो साफ़ कर ही दिया है, कार्यकर्ताओ को भी साफ़ संकेत है कि राष्ट्रवाद के मुद्दे पर रक्षात्मक मुद्रा में आने के बजाय वे बीजेपी से पाँच साल के उसके कामकाज पर सवाल पूछें। प्रियंका गाँधी ने कहा, 'जागरुकता से बड़ी देशभक्ति नहीं हो सकती। आपकी जागरुकता ही आपका हथियार है। आपका वोट ही आपका हथियार है। यह ऐसा हथियार है जो आपको मजबूत बनाता है।' बात साफ़ है, कार्यकर्ता लोगों को आम मुद्दों पर जागरूक बनाएँ और उन्हीं मुद्दों पर लोगों से वोट देने को कहें।
कांग्रेस पार्टी का यह फ़ैसला इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि बीजेपी बड़ी होशियारी से उन मुद्दों को पीछे धकेलने में कामयाब हो रही थी, जिन पर कांग्रेस ने उसे निशाने पर लिया था। इनमें रफ़ाल सौदा और बेरोज़गारी दो बड़े मुद्दे हैं।
इन दोनों मुद्दों पर ही बीजेपी के पास ठोस और संतोषजनक जवाब नहीं है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक इस पर सीधा जवाब देने के बजाय 'क्वत्रोच्ची मामा' और 'मिशेल अंकल' जैसी बातें कह कर सीधे राहुल गाँधी पर तंज कसने की कोशिश कर रहे थे, पर ख़ुद पर लगे आरोपों के जवाब नहीं दे रहे थे।
बालाकोट हमले के बाद बीजेपी ने जिस तरह मारे गए आतंकवादियों की तादाद पर दावे किए, और उसके दावे ग़लत साबित होने लगे थे, पार्टी ने इसे सीधे सैनिकों से जोड़ दिया। बीजेपी यह प्रचार करने लगी कि विपक्ष सैनिकों पर सवाल खड़े कर रहा है, वे बातें कह रहा है जो पाकिस्तान कहता है। इस तरह के तीखे हमलों का जवाब कांग्रेस के पास नहीं था। यह साफ़ था कि राष्ट्रवाद के मुद्दे पर बीजेपी के सामने वह बिल्कुल नहीं टिक सकती।
इसकी काट के रूप में ग़रीबी को मुद्दा बनाया जा रहा है। प्रियंका गाँधी ने यह भी कहा कि कार्यकर्ता न्यूनतम आमदनी स्कीम को लेकर आम जनता में जाएँ। पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी ने बीते दिनों इस मुद्दे को उछाला था और कहा था कि कांग्रेस सत्ता मे आई तो आयकर नहीं चुकाने वालों को आमदनी के हिसाब से पैसे दिए जाएँगे। कांग्रेस कार्यसमिति ने न्यूनतम आमदनी योजना के प्रस्ताव को मंजूरी दे कर इस सवाल पर मुहर लगा दी।
कांग्रेस जिस समय मोदी सरकार पर हमलावर हो रही थी, उसी समय पुलवामा जैसी वारदात हो गई और मोदी सरकार ने बालाकोट में बमबारी कर दी। इसके बाद पूरी बहस बदल गई। बहस के केंद्र में राष्ट्रवाद आ गया और इस मुद्दे पर बीजेपी आक्रामक थी।
कांग्रेस पार्टी कुछ दिन चुपचाप तमाशा देखती रही। मामला थोड़ा ठंडा होने के बाद उसने पुराने मुद्दों को निकाला है और अब हमले की तैयारी कर रही है।
गाँधीनगर में हुई रैली में भी ये मुद्दे छाए रहे। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कृषि विकास पर बात की और पिछड़ते औद्योगिक विकास और बढ़ती बेरोज़गारी पर मोदी सरकार को घेरा। सोनिया गाँधी ने कहा कि मोदी सरकार की ग़लत नीतियों का ख़ामियाज़ा लोगों को भुगतना पड़ा है।
मंगलवार की बैठक और रैली की एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कांग्रेस ने अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़ों के मुद्दों को एक बार फिर सामने लाने और उन मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरने की रणनीति साफ़ कर दी।
कांग्रेस कार्यसमिति ने संविधान पर हमले और पिछड़ों की उपेक्षा पर चिंता जता कर यह साफ़ कर दिया कि वह इसे भी चुनावी मुद्दा बनाने जा रही है। इन मुद्दों पर बीजेपी को रक्षात्मक रवैया ही अपनाना होगा, क्योंकि उसके साशनकाल में ये वर्ग निशाने पर रहे हैं और मोदी सरकार ज़्यादा कुछ कर नहीं पाई है।
कांग्रेस पार्टी की बैठक और बातों से यह भी साफ़ हो गया कि वह जाति के मुद्दे को भुनाने की कोशिश करेगी। पहले पार्टी में यह सोच थी कि सांप्रदायिकता का जवाब देने के लिए जातिवाद की राजनीति को हवा दिया जाए। राम मंदिर कार्ड नहीं चलने पर बीजेपी ने इसे पीछे किया और राष्ट्रवाद को सामने ले आई। अब कांग्रेस जातिवाद को सामने लाकर राष्ट्रवाद को काटना चाहती है।
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