कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए घोषणापत्र समिति का गठन किया है। वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम समिति की अध्यक्षता करेंगे। संयोजक छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंह देव हैं। कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया भी इस समिति का हिस्सा हैं, जिसमें जयराम रमेश, शशि थरूर और प्रियंका गांधी वाड्रा भी शामिल हैं।
कांग्रेस की रणनीति दोनों मोर्चों को मजबूत करने की है। पार्टी इंडिया गठबंधन को सदस्य के रूप में मजबूत करने के साथ-साथ अपने संगठन को भी सक्रिय कर रही है। चुनाव घोषणापत्र कमेटी बनाने को कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) के प्रस्ताव के दौरान सर्वसम्मति से अपनाया गया था। कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने इसकी घोषणा की थी। लेकिन कांग्रेस को असली लड़ाई जमीन पर लड़नी है। जहां उसके नेताओं और काडर की परीक्षा होगी।
सीडब्ल्यूसी के प्रस्ताव के जरिए चुनाव अभियान के मद्देनजर सदस्यों के बीच एकता और समर्पण का आह्वान किया गया था। यह अनुशासन और सामूहिक प्रयास की आवश्यकता पर जोर देता है। एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पैदा हुए मतभेद ने पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाया। इस बात को पार्टी शिद्दत से महसूस कर रही है। राजस्थान में जीतने की स्थिति थी लेकिन अशोक गहलोत और सचिन पायलट के आपसी मतभेदों ने सब गुड़गोबर कर दिया।
कांग्रेस इस बात को समझ चुकी है कि बिना जमीनी सक्रियता के कुछ हासिल नहीं होने वाला है। नागपुर में आगामी 'हैं तैयार हम' रैली कांग्रेस की चुनावी तैयारियों में एक महत्वपूर्ण कदम है। कांग्रेस अध्यक्ष की राज्यवार समीक्षाएं इन प्रयासों को दिशा दे रही हैं। सीडब्ल्यूसी ने सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से पार्टी के वित्त को मजबूत करने की पहल को भी स्वीकार किया। हर सदस्य इन प्रयासों की स्थिरता तय करने के लिए प्रतिबद्ध है।
पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं से कहा कि वे आर्थिक असमानता, सामानों की ऊंची कीमतें यानी महंगाई और युवकों में बढ़ती बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठाएं।
राहुल गांधी से उम्मीदें
कांग्रेस अपने नेता राहुल गांधी से काफी उम्मीद लगाए बैठी है। इसीलिए उनकी भारत जोड़ो यात्रा 2.0 की योजना बनाई जा रही है। यह यात्रा जनवरी के पहले या दूसरे हफ्ते में शुरू हो सकती है। 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन है। पार्टी की योजना है कि उसी के आसपास राहुल की यात्रा आयोजित करके कांग्रेस के नेरेटिव को जनता के बीच ले जाया जाए।
राज्य इकाईयों की निष्क्रियता
कांग्रेस सबसे ज्यादा राज्यों में अपनी यूनिट की निष्क्रियता से जूझ रही है। यूपी में उसने अब तक कई अध्यक्ष बदले और अब अजय रॉय को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। वो भी बस पदाधिकारियों की नियुक्तियां करने में व्यस्त हैं। पार्टी का माइक्रो लेवल पर कहीं कोई काम नजर नहीं आता। जबकि लोकसभा चुनाव में असली लड़ाई यूपी में होना है। पिछले कई चुनाव से यूपी में देखने में आया है कि मतदान केंद्रों पर कुर्सी मेज लगाकर बैठने वाले कार्यकर्ता तक कांग्रेस के पास नहीं हैं। भाजपा का काडर जहां बूथ लेवल पर भी सक्रिय रहता है, वहां कांग्रेस का कहीं अतापता भी नहीं होता। हालांकि कांग्रेस के कार्यकर्ता और समर्थक गांव-गांव हैं, लेकिन पार्टी उन्हें चुनाव में सक्रिय नहीं कर पाती। यूपी तो सिर्फ एक उदाहरण है। लेकिन हिन्दी बेल्ट के अन्य राज्यों में भी कांग्रेस सक्रिय नजर नहीं आ रही। हरियाणा इसका जीता जागता उदाहरण है। हरियाणा में लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव हो सकते हैं या उसके आसपास हो सकते हैं। पार्टी वहां भी कई अध्यक्ष बदल चुकी है। हरियाणा में उदयभान को पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा की मर्जी के तहत प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। लेकिन पार्टी जमीन पर नजर नहीं आ रही है। हरियाणा की महिला पहलवानों का मुद्दा पूरे देश में चर्चा का विषय है। प्रियंका गांधी तक साक्षी मलिक के घर होकर आ गईं लेकिन हरियाणा कांग्रेस को इस मुद्दे में रुचि नहीं है। हालांकि कुछ पूर्व विधायक और नेता अपने स्तर पर सक्रिय हैं लेकिन पार्टी की ओर से कोई कार्यक्रम जारी नहीं किया गया है। मसलन तिगांव के पूर्व विधायक ललित नागर अपने इलाके में जन समस्याओं को उठा रहे हैं, पदयात्राएं निकाल रहे हैं लेकिन उस तरह के कार्यक्रम प्रदेश में बाकी जगहों पर नहीं हो रहे हैं।
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