कई राज्यों में अपने नेताओं के बग़ावती तेवरों का सामना कर रही कांग्रेस के लिए एक और मुश्किल खड़ी हो गई है। मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक़, पार्टी नेताओं का एक वर्ग आलाकमान के काम करने के तरीक़े से नाख़ुश है। इस बीच, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की ओर से 22 अगस्त को कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक बुलाए जाने की चर्चा है। माना जा रहा है कि पार्टी के कुछ नेता बैठक में नेतृत्व संकट के मुद्दे को उठाएंगे।
नेतृत्व में बदलाव की मांग?
इस संभावित बैठक के बुलाए जाने से चंद दिन पहले ही कांग्रेस से निलंबित नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे संजय झा के ट्वीट को लेकर कांग्रेस के अंदर खलबली मच गई थी। झा ने ट्वीट कर कहा था कि कांग्रेस के लगभग 100 नेता पार्टी के आंतरिक मामलों के कारण नाराज हैं और इन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर नेतृत्व में बदलाव की मांग की है।
झा ने कहा था कि इन नेताओं में पार्टी के सांसद भी शामिल हैं और ये नेता कांग्रेस में निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था सीडब्ल्यूसी में पारदर्शी ढंग से चुनाव चाहते हैं। कांग्रेस ने इस पर तुरंत रिएक्शन दिया था और कहा कि झा द्वारा कही गई बात पूरी तरह झूठ है और यह फ़ेसबुक-बीजेपी मुद्दे से ध्यान हटाने की कोशिश है।
अपने बयानों से पहले भी कई बार कांग्रेस नेतृत्व को मुसीबत में डाल चुके झा पर निशाना साधते हुए कांग्रेस ने कहा था कि बीजेपी की कठपुतलियों द्वारा ऐसा प्रचार किया जा रहा है। लेकिन तब भी सवाल उठा था कि कांग्रेस आख़िर कब तक अध्यक्ष के चयन के सवाल से बचेगी।
सोनिया-राहुल गुट का झगड़ा
कांग्रेस के अंदर से कई बार यह बात निकलकर आती है कि यहां पार्टी दो खेमों में बंटी हुई है। यानी सोनिया और राहुल गुट। राहुल गांधी ने 2004 में पहली बार पार्टी सांसद बनने के बाद युवाओं को पार्टी में वरीयता देनी शुरू की थी। 2009 की मनमोहन सिंह सरकार में उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, जितिन प्रसाद जैसे कई युवा चेहरों को मंत्री बनवाया और संगठन में भी राजीव साटव, अमरिंदर राजा वडिंग और तमाम युवाओं को जिम्मेदारियां सौंपी।
राहुल ने युवक कांग्रेस और एनएसयूआई में आंतरिक चुनाव भी कराए। इससे वे युवा नेता जो अब तक पद के लिए बड़े नेताओं के सहारे थे, अपने दम पर आगे आने लगे और सरकार व संगठन के पदों को लेकर दावेदारी करने लगे जिससे वरिष्ठ नेताओं के अहं को चोट पहुंची।
संजय निरूपम के आरोप
इस बीच, युवा बनाम बुजुर्ग का घमासान तब और बढ़ा जब मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरूपम ने ये आरोप लगाया था कि एआईसीसी दफ़्तर में राहुल गांधी के ख़िलाफ़ साजिश रची जाती थी। तब यह बात पहली बार लोगों के सामने आई थी कि कांग्रेस में वास्तव में सोनिया और राहुल गुट का झगड़ा है क्योंकि पार्टी का एक वरिष्ठ नेता प्रेस कॉन्फ़्रेन्स करके इतने गंभीर आरोप लगा रहा था।
पिछले डेढ़ साल में ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर अशोक तंवर, कुलदीप बिश्नोई, मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, संदीप दीक्षित, सचिन पायलट जैसे कई नेता हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि पार्टी हाईकमान उनकी बात नहीं सुनता।
राहुल के पक्ष में बनेगा माहौल
इकनॉमिक टाइम्स (ईटी) की एक ख़बर के मुताबिक़, सीडब्ल्यूसी की इस संभावित बैठक के लिए संस्था के ग़ैर नियमित सदस्यों को भी आमंत्रण भेजा गया है। इन सदस्यों में कांग्रेस के फ्रंटल संगठनों के प्रमुख शामिल हैं और इन्हें यह निमंत्रण नियमित सदस्यों से पहले भेजा गया। सीडब्ल्यूसी में शामिल किए गए ग़ैर नियमित सदस्यों में से अधिकांश को राहुल गांधी ने नियुक्त किया था।
इसलिए पार्टी के एक वर्ग में यह चर्चा है कि ऐसा बैठक में राहुल के पक्ष में सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए किया गया है जिससे उनकी वापसी का रास्ता तैयार हो सके। ईटी के मुताबिक़, इन ग़ैर नियमित सदस्यों की ओर से यह संकेत दिया गया है कि वे राहुल को अध्यक्ष बनाने की मांग उठा सकते हैं।
मध्य प्रदेश से लेकर राजस्थान और पंजाब से लेकर उत्तराखंड सहित कई राज्यों में पार्टी के क्षत्रपों में झगड़ा जोरों पर है और ऐसे में नेतृत्व संकट का मसला और गंभीर हो गया है। क्योंकि ऐसे झगड़े बढ़ने से पार्टी के अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो रहा है।
कांग्रेस में नेतृत्व संकट का मसला अब एआईसीसी दफ़्तर से निकलकर न्यूज़ चैनलों और आम आदमी की जुबान तक आ चुका है। सवा सौै साल से ज़्यादा पुरानी इस पार्टी की ऐसी हालात पर कट्टर कांग्रेसी बेहद चिंतित हैं।
थरूर, सिंघवी, दीक्षित...
कांग्रेस के तमाम नेता जो नेतृत्व संकट के मसले को लेकर दबी जुबान में बात करते थे, कुछ नेताओं द्वारा खुलकर अपनी बात कहने के बाद वे भी बोलने लगे हैं। ऐसे नेताओं में अभिषेक मनु सिंघवी से लेकर शशि थरूर और संदीप दीक्षित तक शामिल हैं। पार्टी नेताओं के लिए यह मसला इस कदर अहम हो चुका है कि वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी को ‘सत्य हिन्दी’ के साथ बातचीत में कहना पड़ा था कि नेतृत्व का संकट हल नहीं होने से कांग्रेस को नुक़सान हो रहा है और यदि राहुल गांधी अध्यक्ष न बनने को लेकर ज़िद पर अड़े हैं तो फिर चुनाव के जरिये नया अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए।
‘पार्टी भटकी हुई है’
सिंघवी के इस बयान के दो-तीन बाद ही पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने और ज़्यादा गंभीर बयान दिया था। न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के साथ बातचीत में थरूर ने कहा था कि कि राहुल एक बार फिर से पार्टी का नेतृत्व कर सकते हैं। लेकिन अगर वह ऐसा नहीं करना चाहते हैं तो पार्टी को नया अध्यक्ष चुनने की दिशा में क़दम उठाने चाहिए। उन्होंने कहा था कि ऐसा इसलिए ज़रूरी है क्योंकि जनता के बीच में यह धारणा बढ़ती जा रही है कि पार्टी भटकी हुई है और बिना पतवार की है। थरूर ऐसे नेता हैं, जिन्होंने मोदी लहर में भी 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की थी।
अपनी राय बतायें