कांग्रेस में नेतृत्व में बदलाव और पार्टी की कार्यशैली में सुधार की मांग को लेकर चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को हाशिए पर धकेलने का सिलसिला जारी है। एक के बाद एक समितियों के गठन में इन नेताओं को अनदेखा करके साफ़ संदेश दिया जा रहा है कि पार्टी आलाकमान इन्हें इनके किए की सज़ा देने पर उतारू है।
सोमवार को हुई कार्यसमिति की हंगामेदार बैठक के बाद से ही पार्टी ने एक के बाद एक सख़्त क़दम उठाते हुए चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को उनकी हैसियत समझानी शुरू कर दी। अध्यादेशों का अध्ययन करने वाली समिति में चिट्ठी लिखने वाले नेताओं में से किसी को जगह नहीं दी गई है।
संसद में सरकार को घेरने के लिए बनी समितियों से भी इनका पत्ता साफ़ करके पार्टी ने अपने इरादे ज़ाहिर कर दिए हैं। संसद में ज़िम्मेदारियों का बंटवारा करते वक़्त कई दिग्गजों को पूरी तरह दरकिनार किया गया है और कईयों के पर कतर दिए गए हैं।
थरूर और तिवारी की अनदेखी
अभी तक लोकसभा में पार्टी की मुखर आवाज़ रहे तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर और पंजाब के आनंदपुर साहिब से सांसद मनीष तिवारी की अनदेखी की गई है। थरूर और तिवारी उन 23 नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने सोनिया को पत्र लिखा था। पार्टी ने सांसद और प्रवक्ता गौरव गोगोई को लोकसभा में उपनेता बनाया है। वहीं, रवनीत सिंह बिट्टू को पार्टी का चीफ़ व्हिप बनाया गया है।
गौरव गोगोई असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बेटे हैं तो रवनीत सिंह बिट्टू आतंकी हमले में शहीद होने वाले पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते हैं और लुधियाना से सांसद हैं।
पार्टी का यह क़दम लोकसभा में शशि थरूर और मनीष तिवारी को पूरी तरह हाशिए पर धकेलने की कोशिश माना जा रहा है। बता दें कि सत्रहवीं लोकसभा के अब तक हुए सत्रों में शशि थरूर और मनीष तिवारी ने कई बार कई अहम मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरा है। इनके भाषणों की काफ़ी तारीफ़ भी हुई है।
लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी के बाद मोदी सरकार के ख़िलाफ़ ये ही दोनों नेता काफ़ी आक्रामक रहते हैं। दोनों ही यूपीए-2 में मंत्री रहे हैं। शशि थरूर जहां विदेश राज्यमंत्री रहे हैं वहीं मनीष तिवारी स्वतंत्र प्रभार के साथ सूचना और प्रसारण मंत्री रहे हैं।
शशि थरूर और मनीष तिवारी के मुक़ाबले कम संसदीय अनुभव रखने वाले इन सांसदों को अहम ज़िम्मेदारी दिए जाने के पीछे इन दोनों का राहुल गांधी की ‘गुडलिस्ट’ में होना बताया जाता है।
रवनीत सिंह बिट्टू 2008 में पंजाब में चुनाव जीतकर यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बनने वाले पहले नेता रहे हैं। उस समय राहुल गांधी बतौर कांग्रेस महासचिव यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई के प्रभारी थे। तब राहुल गांधी ने ही पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र मज़बूत करने के नाम पर इन दोनों संगठनों में चुनाव शुरू कराए थे।
गौरव गोगोई 2014 में पहली बार लोकसभा का चुनाव जीत कर आए और उन्होंने राहुल गांधी को प्रभावित किया। राहुल ने पहले उन्हें प्रवक्ता बनवाया और अब सीधे लोकसभा में पार्टी का उपनेता बनवा दिया।
पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस के भीतर हो रहीं घटनाएं इस तरफ़ इशारा कर रही हैं कि पार्टी में अध्यक्ष के पद पर राहुल गांधी की धमाकेदार वापसी होगी।
किलेबंदी कर रहे राहुल
अपनी वापसी से पहले राहुल पार्टी संगठन और संसदीय दल में अपने भरोसेमंद नेताओं को अहम ज़िम्मेदारी देकर अपने चारों तरफ़ क़िले की दीवार को मज़बूत करना चाहते हैं। पिछले कुछ दिनों से पार्टी में हो रहीं नियुक्तियों में इसकी झलक साफ़ दिखती है। राहुल चुन-चुन कर अपने भरोसेमंद नेताओं को अहम ज़िम्मेदारियां दिलवा रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि दोबारा बतौर अध्यक्ष पार्टी की कमान संभालने से पहले वो पार्टी में अपने पैर जमाने के लिए ज़मीन तैयार कर रहे हैं।
पार्टी पर नियंत्रण चाहते हैं राहुल
ग़ौरतलब है कि राहुल ने अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देते वक़्त आरोप लगाया था कि वो अकेले मोदी से लड़ते रहे और पार्टी का कोई वरिष्ठ नेता उनके साथ नहीं खड़ा हुआ। राहुल यह स्थिति नहीं दोहराना चाहते। इस बार राहुल पूरी तैयारी के साथ अध्यक्ष पद पर बैठकर पार्टी का नियंत्रण पूरी तरह अपने हाथों में रखना चाहते हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने राजस्थान में सचिन पायलट की बग़ावत से पनपे संकट के समय की। जब राजस्थान में संकट गहराया तो पार्टी में ही कुछ लोगों ने कहा कि सचिन राहुल के भरोसेमंद हैं लिहाजा उन्हें ही सचिन को मनाने के लिए आगे आना चाहिए। राहुल ने चुनौती क़ुबूल की।
इससे पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया की बग़ावत के बाद राहुल और प्रियंका गांधी दोनों पर सवाल उठ रहे थे। सचिन को साधने के लिए दोनों ने आगे बढ़कर कोशिशें शुरू की। आम तौर पर ऐसे संकट के समय कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं को संकट सुलझाने की ज़िम्मेदारी दी जाती थी। यह पहली बार था जब राहुल ने अपने सबसे भरोसेमंद रणदीप सुरजेवाला और अजय माकन को सचिन से बात करने भेजा। मामला सुलटने पर अजय माकन को ही राजस्थान का प्रभारी बना दिया। यह साफ़ संकेत था कि राहुल की उम्मीदों पर खरा उतरने वालों को पार्टी मे ख़ास जगह और बड़ी ज़िम्मेदारी दी जाएगी।
अब 23 नेताओं की चिट्ठी से उपजे विवाद के बाद जहां राहुल गांधी के इशारे पर बुज़ुर्ग और अनुभवी नेताओं को हाशिए पर धकेलने की बात कही जा रही है वहीं राहुल के नज़दीकी और भरोसेमंद नेताओं को अहम ज़िम्मेदारियां देकर यह संदेश और साफ़ तरीक़े से देने की कोशिश हो रही है।
दिसंबर, 2017 में राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद दिग्विजय सिंह को राष्ट्रीय महासचिव के पद से हटा दिया गया था। तब से उन्हें पार्टी में कोई बड़ी ज़िम्मेदारी नहीं दी गई थी। अब मोदी सरकार के अध्यादेशों पर अध्ययन करने वाली समिति में शामिल करके पार्टी की मुख्यधारा में उनकी वापसी का संकेत दिया गया है।
जयराम रमेश का क़द बढ़ाया
जयराम रमेश को इस समिति के संयोजक के साथ ही राज्यसभा में चीफ़ व्हिप बनाकर उनका क़द बढ़ाया गया है। जयराम और आनंद शर्मा की आपस में पुरानी खुन्नस है। 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले से ही दोनों के बीच एक-दूसरे को पछाड़ने की होड़ रही है। जहां आनंद शर्मा सोनिया गांधी के भरोसेमंद माने जाते हैं, वहीं जयराम रमेश राहुल गांधी के ख़ास हो गए हैं। राहुल के चलते ही जयराम को यूपीए सरकार में मंत्री बनाया गया था। अब राहुल ने राज्यसभा में उन्हें चीफ़ व्हिप बनाकर सदन में उपनेता आनंद शर्मा के लगभग बराबर खड़ा कर दिया है।
हमले का बदला ले रहे राहुल!
कांग्रेस में नेतृत्व में बदलाव की मांग को राहुल के अलावा किसी और को अध्यक्ष बनाने की मांग समझी जा रही है। क्योंकि चिट्ठी में जिन बातों का ज़िक्र है उससे यही मतलब निकलता है। मसलन अध्यक्ष पूर्ण कालिक हो, कार्यकर्ताओं के लिए सहज उपलब्ध हो। राहुल गांधी पर ही अंशकालिक राजनीतिज्ञ होने के आरोप लगते रहे हैं। जिस तरह चिट्ठी में राहुल का नाम लिए बग़ैर उन पर हमला बोला गया है। इसी तरह अब चिट्ठी लिखने वालों को धीरे-धीरे सबक़ सिखाया जा रहा है। यह सिलसिला कहां जाकर रुकता है, यह देखना बेहद दिलचस्प होगा।
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