पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और
यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने ‘द हिंदू’ अखबार के लिए एक लेख लिखा है। उनके लेख का शीर्षक है ‘थोपी गई शांति भारत की समस्याओं को हल नहीं कर सकती’। लेख में उन्होंने मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा है।
लेख में सोनिया गांधी ने
राजनीति से जुड़े तमाम पहलुओं पर अपने विचार रखे और आगे की राह के संकेत भी दिए कि
आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की रणनीति क्या होगी। इस लेख को शरद पवार के
इंटरव्यू के बाद बिखरती दिख रही विपक्षी एकता को संवारने के तौर पर भी देखा जा रहा
है।
उन्होंने लिखा, “प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी और केंद्र की बीजेपी सरकार लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को बहुत
सिस्टमैटिक तरीके से खत्म कर रही है। पिछले दिनों हमने इसको संसद में खत्म होते
देखा है।” संसद की कार्रवाई का हवाला देते
हुए लिखा कि बीजेपी सरकार ने विपक्ष को जनता की आवाज उठाने से रोका। मीडिया को
डरा-धमका कर उसकी स्वतंत्रता छीन ली है। सांसदों की सदस्यता रद्द की जा रही है।
जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का
मुद्दा उठाते हुए उन्होंने लिखा कि दूसरी पार्टियों के नेता जिनके खिलाफ किसी भी
प्रकार की जांच चल रही होती है, उसके बीजेपी में जाते ही सभी मामले 'चमत्कारिक रूप से' बंद हो जाते
है। पिछले कुछ सालों में जांच एजेंसियों द्वारा दायर किये ज्यादातर मामले विपक्षी
नेताओं के खिलाफ हैं।
सोनिया गांधी ने अपने लेख में
राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक परिदृश्य में हो रही लगभग सभी घटनाओं पर सरकार को घेरा।
उन्होंने अडानी समूह पर आई हिंडनबर्ग रिपोर्ट और उस पर सरकार की प्रतिक्रिया पर भी
प्रधानमंत्री को घेरा। उन्होंने देश में बढ़ रही महंगाई
और बेरोजगारी के मसले पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को भी कटघरे में खड़ा किया
और लिखा कि उन्होंने हालिया बजट भाषण में इस पर कोई बात नहीं की।
सोनिया गांधी ने अपने लेख में
भाजपा और आरएसएस पर देश में नफरत और हिंसा को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया और कहा
कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार इस तरह की घटनाओं की 'अनदेखी' की। प्रधानमंत्री मोदी ने एक
बार भी शांति या सद्भाव का आह्वान नहीं किया है और न ही अपराधियों पर लगाम लगाने
के लिए काम किया। अब धार्मिक त्योहार दूसरों को डराने और धमकाने के अवसर बन गए हैं, जबकि वे खुशी
और उत्सव के अवसर होते थे। अब धर्म, भोजन, जाति, लिंग या भाषा के आधार पर भेदभाव
किया जाता है, धमकी दी जाती है जबकि पहले ऐसा नहीं होता था।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार पर न्यायपालिका को नीचा दिखाने का आरोप लगाया, और कानून मंत्री किरेन रिजिजू की भाषा पर सवाल भी उठाया।
सोनिया ने लिखा कि आने वाले दिन
काफी अहम है। कांग्रेस पार्टी समान विचारों वाले दलों के साथ हाथ मिलाकर
भारत के संविधान की रक्षा के लिए हर संभव कोशिश करेगी। सोनिया गांधी का यह लेख ऐसे समय
पर आया जब आगामी लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकता के प्रयास किये जा रहे हैं।
यूपीए की चेयरपर्सन होने के नाते गठबंधन के किसी भी फैसले पर कोई भी फैसला सोनिया
गांधी ही करेंगी।
कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल
अडानी मसले पर लगातार केंद्र सरकार पर हमला कर रहे हैं। इसकी शुरुआत राहुल गांधी
ने पहले ही कर दी थी, हिंडनबर्ग रिपोर्ट से पहले। लेकिन बीते दिनों एनसीपी प्रमुख शरद पवार
द्वारा अडानी का बचाव करने और संसद का सत्र बर्बाद होने के लिए विपक्ष को ही
जिम्मेदार ठहराया गया था। पवार ने इस इंटरव्यू में राहुल गांधी की उद्योगपतियों पर
हमला करने की राजनीति पर भी सवाल उठाया था। लेकिन सोनिया गांधी ने इस मसले पर लेख
में साफ कर दिया कि कांग्रेस इस तरह के मुद्दों पर आगे भी मुखर रहेगी।
शरद पवार के इंटरव्यू को
विपक्षी एकता के मिशन में पलीता लगाने के तौर पर देखा गया जा रहा है, ऐसे में सोनिया
गांधी का यह लेख विपक्षी एकता की राह शायद थोड़ी सी आसान कर दे, क्योंकि गैर कांग्रेसी दलों में सोनिया गांधी इकलौती ऐसी नेता हैं जो
कांग्रेस से बाहर भी सभी दलों को स्वीकार्य हैं।
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